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बच्चों की पढ़ाई पर कोरोना और नक्सलियों का असर, घटती साक्षरता दर कर रही तस्दीक

बस्तर संभाग के सुकमा, बीजापुर, नारायणपुर में नक्सलियों के प्रभाव के कारण पहले से ही स्कूल ठीक से संचालित नहीं हो पाते हैं. नक्सली अंदरूनी इलाके में स्कूल भवन तोड़ने के साथ ही कई बच्चों को अपनी पाठशाला में शामिल कर लेते हैं. ऐसे में कोरोना के प्रभाव के कारण यहां शिक्षा व्यवस्था पर दोहरी मार पड़ी है.

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Published : Jul 21, 2021, 5:42 PM IST

जगदलपुर : कोरोना महामारी के कारण नक्सल प्रभावित बस्तर में स्कूली बच्चों की पढ़ाई बेहद प्रभावित हुई है. इस दौरान संभाग के सुकमा, बीजापुर, नारायणपुर में बच्चे पूरी तरह से शिक्षा से वंचित हो गए हैं. नक्सल प्रभावित इलाकों में मोबाइल नेटवर्क और इंटरनेट कनेक्टिविटी का न होना और कई गरीब आदिवासी परिवारों के पास एंड्राइड फोन नहीं होने के कारण बच्चे पढ़ाई से दूर हो गए हैं.

सरकार के प्रयास

छत्तीसगढ़ में नए शैक्षणिक सत्र की शुरुआत हो चुकी है. कोरोना के चलते फिलहाल स्कूल तो नहीं खोले गए, लेकिन बच्चों की पढ़ाई का नुकसान न हो इसके लिए प्राथमिक और माध्यमिक शाला के छात्रों के लिए मोहल्ला क्लास संचालित की जा रही है. यह कक्षाएं संचालित तो की जा रही हैं, लेकिन ग्रामीण अंचलों में मोहल्ला कक्षाओं की स्थिति भी काफी खराब बनी हुई है. खासतौर पर सुकमा जिले के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में मोहल्ला क्लास नहीं के बराबर लगाए जा रहे हैं.

बच्चों की पढ़ाई पर कोरोना और नक्सलियों का असर

क्या नक्सली उठा रहे इसका फायदा?

बस्तर में नक्सलियों के प्रभाव के कारण पहले से ही स्कूल ठीक से संचालित नहीं हो पाते हैं. नक्सली अंदरूनी इलाके में स्कूल भवन तोड़ने के साथ ही कई बच्चों को अपनी पाठशाला में शामिल कर लेते हैं. ऐसे में कोरोना के प्रभाव के कारण यहां शिक्षा व्यवस्था पर दोहरी मार पड़ी है.

बस्तर में उल्टा क्यों ? ग्रामीण चाहते हैं स्कूल खुले, शहरवालों के लिए ऑनलाइन क्लास अच्छी

छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के दक्षिण बस्तर का क्षेत्र जहां की 70% आबादी आदिवासी है, सुविधाओं का अभाव हो, वहां ऑनलाइन पढ़ाई किसी सपने से कम नहीं है. अंदरूनी क्षेत्रों में मोबाइल नेटवर्क नहीं होने की वजह से यहां के अधिकांश बच्चे ऑनलाइन क्लास से नहीं जुड़ पाते हैं. दूसरी तरफ राज्य शासन ने वैकल्पिक तौर पर मोहल्ला क्लास की शुरुआत करने के निर्देश दिए थे, लेकिन नक्सल प्रभावित इलाकों में यह योजना भी दम तोड़ती दिख रही है. नक्सल प्रभावित ग्रामीण अंचलों में न ही कोई मोहल्ला क्लास लगाई जाती है और न ही यहां मोबाइल नेटवर्क की सुविधा है. लिहाजा बच्चे पिछले डेढ़ साल से शिक्षा से वंचित हैं.

सुकमा और बीजापुर में स्थिति खराब

यहां सबसे बुरी स्थिति सुकमा और बीजापुर जिले की है. पहले ही नक्सलियों का खौफ और फिर कोरोना काल की वजह से स्कूल बंद होने से बच्चे पढ़ नहीं पा रहे हैं. हालांकि अधिकारियों के दौरे के वक्त यहां कुछ दिनों के लिए क्लास जरूर लगाई जाती है, लेकिन यह केवल खानापूर्ति के लिए होती है. उसके बाद फिर से क्लास लगाना बंद कर दिया जाता है.

सुकमा के जिला शिक्षा अधिकारी जेके प्रसाद ने ईटीवी भारत से फोन पर चर्चा करते हुए बताया कि कोरोना की वजह से सुकमा जिले की अंदरूनी इलाकों में खासकर नक्सल प्रभावित ग्रामीण अंचलों में बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हुई है. यहां ऑनलाइन क्लास लेना संभव नहीं है और इसकी सबसे बड़ी वजह है, मोबाइल नेटवर्क का न होना. उन्होंने कहा कि कई लोगों के पास एंड्रॉयड फोन नहीं हैं. हालांकि कुछ शिक्षक अंदरूनी क्षेत्रों में जाकर बच्चों को पढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन जितनी शिक्षा बच्चों को मिलनी चाहिए वह नहीं मिल पा रही. जिसके कारण अंदरूनी क्षेत्र के ग्रामीण बच्चे पिछले कुछ महीनों से शिक्षा से वंचित हुए हैं.

कक्षाएं लगाने के लिए शिक्षा विभाग पूरी कोशिश कर रहा : जिला शिक्षा अधिकारी

जिला शिक्षा अधिकारी का कहना है कि शिक्षा विभाग पूरी कोशिश कर रहा है कि बच्चों की कक्षाएं लगाई जाएं. मोहल्ला क्लास लगाने के लिए भी सभी शिक्षकों को कहा गया है. कोरोना संक्रमण के दौर में नक्सल प्रभावित गांवों के अलावा कई शहरी इलाकों में भी बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हुई है. अधिकतर बच्चे ऑनलाइन क्लास में नहीं जुड़ पा रहे हैं. इतना ही नहीं ऑनलाइन पढ़ाई के लिए रजिस्ट्रेशन केवल 50 फीसदी रह गया है. शहरी इलाकों में नेटवर्क होने के बावजूद भी कई बच्चे ऑनलाइन क्लास से नहीं जुड़ते.

लाउडस्पीकर से पढ़ाई

बस्तर कलेक्टर का कहना है कि जिले के ग्रामीण अंचलों में शिक्षा प्रभावित न हो इसके लिए आमचो बस्तर लाउडस्पीकर से शिक्षा की शुरुआत की गई थी. अभी भी अधिकतर ग्रामीण अंचलों में लाउडस्पीकर के माध्यम से बच्चों को शिक्षा दी जा रही है. जिन इलाकों में मोबाइल नेटवर्क नहीं है, उन इलाकों में मोहल्ला क्लास भी संचालित किया जा रहा है. कलेक्टर ने कहा कि शुरुआती दिनों में कई जगहों में अभिभावक अपने बच्चों को मोहल्ला क्लास में नहीं भेज रहे थे, लेकिन अब धीरे-धीरे जिले में कोरोना का प्रकोप कम होने के साथ ही अभिभावक अपने बच्चों को मोहल्ला क्लास में भेज रहे हैं.

बस्तर कलेक्टर ने आगे कहा कि कोरोना काल की वजह से जिले में शिक्षा प्रभावित हुई है. शिक्षा विभाग के साथ-साथ जिला प्रशासन की टीम भी ग्रामीण अंचलों में शिक्षा पर विशेष ध्यान दे रही है. साथ ही बच्चे शिक्षा से वंचित न हो इसके लिए प्रशासन पूरा प्रयास कर रहा है. उन्होंने कहा कि आने वाले नए शिक्षा सत्र से बच्चों के सिलेबस पूरी तरह से कंप्लीट हो, इसके लिए भी शिक्षकों को खास दिशा निर्देश दिए गए हैं.

साक्षरता प्रतिशत में आई कमी

कोरोना संक्रमण के कारण पिछले 2 सालों से बस्तर संभाग में साक्षरता प्रतिशत में काफी कमी आई है. पूरे बस्तर संभाग का साक्षरता प्रतिशत 51.5% है. साथ ही बस्तर संभाग के सुकमा जिले का साक्षरता दर सबसे कम 42% है. जानकारों के मुताबिक, नक्सल प्रभावित जिलों में पढ़ाई के स्तर के घटने का फायदा नक्सली उठा सकते हैं.

पढ़ेंः छत्तीसगढ़ : अपहरण किए गए 7 ग्रामीणों को नक्सलियों ने अंतिम चेतावनी देकर छोड़ा

जगदलपुर : कोरोना महामारी के कारण नक्सल प्रभावित बस्तर में स्कूली बच्चों की पढ़ाई बेहद प्रभावित हुई है. इस दौरान संभाग के सुकमा, बीजापुर, नारायणपुर में बच्चे पूरी तरह से शिक्षा से वंचित हो गए हैं. नक्सल प्रभावित इलाकों में मोबाइल नेटवर्क और इंटरनेट कनेक्टिविटी का न होना और कई गरीब आदिवासी परिवारों के पास एंड्राइड फोन नहीं होने के कारण बच्चे पढ़ाई से दूर हो गए हैं.

सरकार के प्रयास

छत्तीसगढ़ में नए शैक्षणिक सत्र की शुरुआत हो चुकी है. कोरोना के चलते फिलहाल स्कूल तो नहीं खोले गए, लेकिन बच्चों की पढ़ाई का नुकसान न हो इसके लिए प्राथमिक और माध्यमिक शाला के छात्रों के लिए मोहल्ला क्लास संचालित की जा रही है. यह कक्षाएं संचालित तो की जा रही हैं, लेकिन ग्रामीण अंचलों में मोहल्ला कक्षाओं की स्थिति भी काफी खराब बनी हुई है. खासतौर पर सुकमा जिले के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में मोहल्ला क्लास नहीं के बराबर लगाए जा रहे हैं.

बच्चों की पढ़ाई पर कोरोना और नक्सलियों का असर

क्या नक्सली उठा रहे इसका फायदा?

बस्तर में नक्सलियों के प्रभाव के कारण पहले से ही स्कूल ठीक से संचालित नहीं हो पाते हैं. नक्सली अंदरूनी इलाके में स्कूल भवन तोड़ने के साथ ही कई बच्चों को अपनी पाठशाला में शामिल कर लेते हैं. ऐसे में कोरोना के प्रभाव के कारण यहां शिक्षा व्यवस्था पर दोहरी मार पड़ी है.

बस्तर में उल्टा क्यों ? ग्रामीण चाहते हैं स्कूल खुले, शहरवालों के लिए ऑनलाइन क्लास अच्छी

छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के दक्षिण बस्तर का क्षेत्र जहां की 70% आबादी आदिवासी है, सुविधाओं का अभाव हो, वहां ऑनलाइन पढ़ाई किसी सपने से कम नहीं है. अंदरूनी क्षेत्रों में मोबाइल नेटवर्क नहीं होने की वजह से यहां के अधिकांश बच्चे ऑनलाइन क्लास से नहीं जुड़ पाते हैं. दूसरी तरफ राज्य शासन ने वैकल्पिक तौर पर मोहल्ला क्लास की शुरुआत करने के निर्देश दिए थे, लेकिन नक्सल प्रभावित इलाकों में यह योजना भी दम तोड़ती दिख रही है. नक्सल प्रभावित ग्रामीण अंचलों में न ही कोई मोहल्ला क्लास लगाई जाती है और न ही यहां मोबाइल नेटवर्क की सुविधा है. लिहाजा बच्चे पिछले डेढ़ साल से शिक्षा से वंचित हैं.

सुकमा और बीजापुर में स्थिति खराब

यहां सबसे बुरी स्थिति सुकमा और बीजापुर जिले की है. पहले ही नक्सलियों का खौफ और फिर कोरोना काल की वजह से स्कूल बंद होने से बच्चे पढ़ नहीं पा रहे हैं. हालांकि अधिकारियों के दौरे के वक्त यहां कुछ दिनों के लिए क्लास जरूर लगाई जाती है, लेकिन यह केवल खानापूर्ति के लिए होती है. उसके बाद फिर से क्लास लगाना बंद कर दिया जाता है.

सुकमा के जिला शिक्षा अधिकारी जेके प्रसाद ने ईटीवी भारत से फोन पर चर्चा करते हुए बताया कि कोरोना की वजह से सुकमा जिले की अंदरूनी इलाकों में खासकर नक्सल प्रभावित ग्रामीण अंचलों में बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हुई है. यहां ऑनलाइन क्लास लेना संभव नहीं है और इसकी सबसे बड़ी वजह है, मोबाइल नेटवर्क का न होना. उन्होंने कहा कि कई लोगों के पास एंड्रॉयड फोन नहीं हैं. हालांकि कुछ शिक्षक अंदरूनी क्षेत्रों में जाकर बच्चों को पढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन जितनी शिक्षा बच्चों को मिलनी चाहिए वह नहीं मिल पा रही. जिसके कारण अंदरूनी क्षेत्र के ग्रामीण बच्चे पिछले कुछ महीनों से शिक्षा से वंचित हुए हैं.

कक्षाएं लगाने के लिए शिक्षा विभाग पूरी कोशिश कर रहा : जिला शिक्षा अधिकारी

जिला शिक्षा अधिकारी का कहना है कि शिक्षा विभाग पूरी कोशिश कर रहा है कि बच्चों की कक्षाएं लगाई जाएं. मोहल्ला क्लास लगाने के लिए भी सभी शिक्षकों को कहा गया है. कोरोना संक्रमण के दौर में नक्सल प्रभावित गांवों के अलावा कई शहरी इलाकों में भी बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हुई है. अधिकतर बच्चे ऑनलाइन क्लास में नहीं जुड़ पा रहे हैं. इतना ही नहीं ऑनलाइन पढ़ाई के लिए रजिस्ट्रेशन केवल 50 फीसदी रह गया है. शहरी इलाकों में नेटवर्क होने के बावजूद भी कई बच्चे ऑनलाइन क्लास से नहीं जुड़ते.

लाउडस्पीकर से पढ़ाई

बस्तर कलेक्टर का कहना है कि जिले के ग्रामीण अंचलों में शिक्षा प्रभावित न हो इसके लिए आमचो बस्तर लाउडस्पीकर से शिक्षा की शुरुआत की गई थी. अभी भी अधिकतर ग्रामीण अंचलों में लाउडस्पीकर के माध्यम से बच्चों को शिक्षा दी जा रही है. जिन इलाकों में मोबाइल नेटवर्क नहीं है, उन इलाकों में मोहल्ला क्लास भी संचालित किया जा रहा है. कलेक्टर ने कहा कि शुरुआती दिनों में कई जगहों में अभिभावक अपने बच्चों को मोहल्ला क्लास में नहीं भेज रहे थे, लेकिन अब धीरे-धीरे जिले में कोरोना का प्रकोप कम होने के साथ ही अभिभावक अपने बच्चों को मोहल्ला क्लास में भेज रहे हैं.

बस्तर कलेक्टर ने आगे कहा कि कोरोना काल की वजह से जिले में शिक्षा प्रभावित हुई है. शिक्षा विभाग के साथ-साथ जिला प्रशासन की टीम भी ग्रामीण अंचलों में शिक्षा पर विशेष ध्यान दे रही है. साथ ही बच्चे शिक्षा से वंचित न हो इसके लिए प्रशासन पूरा प्रयास कर रहा है. उन्होंने कहा कि आने वाले नए शिक्षा सत्र से बच्चों के सिलेबस पूरी तरह से कंप्लीट हो, इसके लिए भी शिक्षकों को खास दिशा निर्देश दिए गए हैं.

साक्षरता प्रतिशत में आई कमी

कोरोना संक्रमण के कारण पिछले 2 सालों से बस्तर संभाग में साक्षरता प्रतिशत में काफी कमी आई है. पूरे बस्तर संभाग का साक्षरता प्रतिशत 51.5% है. साथ ही बस्तर संभाग के सुकमा जिले का साक्षरता दर सबसे कम 42% है. जानकारों के मुताबिक, नक्सल प्रभावित जिलों में पढ़ाई के स्तर के घटने का फायदा नक्सली उठा सकते हैं.

पढ़ेंः छत्तीसगढ़ : अपहरण किए गए 7 ग्रामीणों को नक्सलियों ने अंतिम चेतावनी देकर छोड़ा

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