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छत्तीसगढ़ : देसी धान से बस्तर को महका रही महिला किसान प्रभाती

परदादी सास और सास की विरासत को आगे बढ़ाते हुए 'प्रभाती भारत' ने भी लगभग 400 किस्म के देसी धान बीज का संरक्षण किया है. खास बात ये हैं कि इस धान को लगाने के लिए किसी तरह के रासायनिक खाद का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. पूरी तरह से जैविक खाद से तैयार हुआ यह धान कैंसर और डायबिटीज के मरीजों के लिए भी फायदेमंद हैं.

छत्तीसगढ़
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Published : Jul 29, 2021, 9:13 PM IST

जगदलपुर : छत्तीसगढ़ को 'धान का कटोरा' कहा जाता है. प्रदेश के अधिकतर किसान धान की फसल पर आश्रित है. पिछले कुछ सालों से किसान अच्छे उत्पादन को देखते हुए हाइब्रिड धान पर विशेष ध्यान दे रहे हैं. छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्सों में ही देसी धान उगाया जा रहा है. इसमें से मुख्य रूप से बस्तर शामिल है. जहां एक महिला किसान देसी धान लगाने के पिछले 15 सालों से किसानों को जागरूक कर रही हैं. प्रभाती भारत के पास 400 प्रजाति के देसी धान का कलेक्शन हैं. जिसे अपने एक एकड़ के खेत में लगाती है. प्रभाती बताती हैं कि पिछली तीन पीढ़ियों से उनके परिवार की महिलाएं देसी धान को संरक्षित करने का काम करती आ रही है.

देसी धान से बस्तर को महका रही महिला किसान प्रभाती

जगदलपुर शहर से लगे छोटे गारावांड गांव की एक महिला किसान ने 400 प्रकार के धान को संरक्षित (Protection of 400 types of paddy) कर रखा है. इसमें बस्तर संभाग के साथ ही पड़ोसी राज्य ओडिशा के भी कुछ देसी धान के बीज है. महिला किसान 'प्रभाती भारत' अपने डेढ़ एकड़ की जमीन में हर साल इन 400 प्रजाति की धान की फसल उगाती हैं. महिला किसान अपने साथ कुछ ग्रामीण महिलाओं को जोड़कर देसी धान की फसल के लिए जागरूक कर रही हैं. बस्तर जिले में प्रभाती भारत एकलौती महिला किसान हैं. जिन्होंने 400 से ज्यादा वैरायटी के धान को संरक्षित कर रखा है.

महिला किसान
महिला किसान

महिला किसान प्रभाती के साथ ग्रामीण महिला स्व सहायता समूह की टीम भी है. जो बीज सरंक्षण की दिशा में काम कर रही है. महिला किसान प्रभाती भारत ने बताया कि उन्हें बीज संरक्षण की प्रेरणा उनकी सास व पति विजय भारत से मिली और वे पिछले 15 सालों से बीज संरक्षण पर अपना विशेष ध्यान दे रही हैं. उन्होंने बताया कि उनके पास स्थित धान पूरी तरह से बस्तर संभाग का लोकल धान है. वे जब भी बस्तर के ग्रामीण अंचलों में जाती तो वहां पर अलग-अलग प्रकार के धान के बीज इकट्ठे करने लगती है. इसी के चलते उनके पास 400 से ज्यादा वैरायटी के धान संरक्षित है. जिसे वे अपने पास रखे हुए हैं.

बस्तर को महका रही महिला किसान प्रभाती
बस्तर को महका रही महिला किसान प्रभाती

देसी धान की किस्मों को विलुप्त होने से बचाने की कोशिश

प्रभाती भारत (Prabhati Bharat) ने बताया कि वे 400 से ज्यादा वैरायटी के धान को सुरक्षित कर उसमें तरह-तरह के प्रयोग कर रही हैं. मल्टीविटामिन, कैंसर, डायबिटीज समेत कई बीमारियों से लड़ने वाली वैरायटी भी उन्होंने तैयार किया है. साथ ही धान की 400 से ज्यादा किस्मों को विलुप्त होने से बचाने के लिए हर साल उन्हें रोपती है. फसल तैयार होने तक पूरी देखभाल करते हैं. उन्होंने बताया कि डेढ़ एकड़ की जमीन पर लगभग 400 अलग-अलग प्रजाति के धान उगाने में काफी मेहनत लगने के साथ ही उन्हें इस बात का भी ध्यान देना होता है कि किसी भी तरह कोई भी धान की फसल आपस में न मिल पाए. इसके लिए वे बकायदा हर धान के नाम के साथ ही उसकी नंबरिंग भी करते हैं.

देसी धान
देसी धान

जैविक खाद से करती है धान की खेती

बीज उगाने के साथ ही फसल तैयार होने तक करीब 130 से 150 दिन लगते हैं. इस दौरान धान को उगाने के लिए केवल गोबर खाद का इस्तेमाल किया जाता है. पूरी तरह से ऑर्गेनिक रूप से इसकी खेती की जाती है. देसी धान के संरक्षण के लिए और हर साल इसे रोपने के लिए उन्होंने खुद केंचुआ खाद तैयार किया है. जिसकी मदद से उनकी फसल काफी अच्छी होती है. किसी भी तरह की रासायनिक खाद का इस्तेमाल नहीं करती. यही वजह है कि हर साल उनकी एक एकड़ की जमीन पर देसी धान की महक पूरे गांव व बस्तर में फैलती है.

देसी धान
देसी धान

महिला किसान ने बताया कि एक धान की फसल में करीब दो से ढाई क्विंटल धान का उत्पादन होता है. शौकीन तौर पर वह इन तैयार हुए चावल को घर में ही खाने के रूप में इस्तेमाल करते हैं. हालांकि वे आसपास के किसानों को भी प्रोत्साहित करने के लिए सभी धान की प्रजाति के बीज किसानों की मांग पर उन्हें देती हैं. प्रभाती भारत का कहना है कि उनका मुख्य उद्देश्य बस्तर में हाइब्रिड धान की पैदावार को खत्मकर देसी धान के लिए लोगों को जागरूक करना है. ताकि सभी लोग स्वस्थ रह सके और उन्हें किसी तरह की कोई बीमारी ना हो.

पढ़ें : वैक्सीन लेने के बाद बोले लालू, मोदी राज में पीछे चला गया देश

प्रभाती भारत ने बताया कि उनके पास एंटी कैंसर और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली दो प्रमुख वैरायटी लायचा और गठवन है. इसके अलावा ब्लैक राइस, रेड राइस और रानी बीज, राम लक्ष्मण, जावा फूल, तुलसीगढ़, बुधकमल, पंचरत्न, साहालोटी, लोकटा मांझी, खण्डसगर, जामवंत, नरिहर, गोल मिर्च, कुसुम भोग, सोना धान, केदार भोग, शंकर भोग जैसे ऐसे धान के बीज हैं जिससे डायबिटीज रोगियों के साथ ही अन्य बीमारियों से जूझ रहे मरीजों के लिए यह देसी राइस रामबाण हैं.

देसी धान
देसी धान
इसके अलावा उन्होंने सुगंधित एचएमटी चावल की ऐसी किस्म विकसित की है, जिसका उत्पादन अन्य बीजों की तुलना में ज्यादा है. जिसमें मुख्य रूप से काला जीरा, काली मिर्च और हलसागर ऐसे धान की वैरायटी हैं. जिनका चावल पकने के बाद मोटा दिखता है लेकिन खाने में स्वादिष्ट और बेहद सुगंधित हैं.

विजय भारत को पिता से मिली धान के बीज संरक्षित करने की विरासत

महिला किसान प्रभाती भारत के पति विजय भारत ने बताया कि उनका परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी खेती-किसानी करते आ रहा है. 400 प्रजाति के धान संरक्षण करने की प्रेरणा उन्हें अपने पिता से मिली. उनके पिता विशाल लाल भारत ने पूरे बस्तर संभाग में 400 प्रजाति के धान बीज कलेक्ट किया था. उसके बाद से उन्होंने इस पर शोध करना शुरू किया. पिता के मृत्यु के बाद उनकी पत्नी और माता ने धान की प्रजाति को सुरक्षित करना शुरू किया. धीरे-धीरे पूरे बस्तर संभाग के साथ ही पड़ोसी राज्य ओडिशा से भी धान के बीज उन्होंने संरक्षण किए. हर साल इन धान के बीज को रोपना शुरू किया. उन्होंने बताया कि उनके घर समेत फार्महाउस में पूरे 400 प्रजाति के धान की बालियां रखी हुई है. जिसे देखने दूरदराज से भी लोग आते हैं.

शुरुआती दौर में जगदलपुर कृषि विद्यालय के वैज्ञानिक और रविशंकर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर द्वारा उन्हें देसी धान उगाने और धान को संरक्षित कर रखने के लिए प्रोत्साहित किया. समय-समय पर उनकी पत्नी का मार्गदर्शन भी किया. यही वजह है कि अब हर साल वे 400 प्रकार के धान के बीज रोपते हैं. ग्रामीणों को इसके लिए ट्रेनिंग भी दी जाती है. देसी धान के बीज को बचाने के लिए बीज बैंक भी बनाया जा रहा है. आने वाले समय में केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अधीन पौध किस्म संरक्षण बोर्ड अधिकार को भी एक- एक किलो बीज भेजे जाने की बात कही है.

इस परिवार की जागरूकता का असर भी क्षेत्र में दिख रहा है. स्थानीय किसान भी अपने खेतों में देसी धान के बीज पिछले कई सालों से उगा रहे हैं, किसान ने बताया कि विजय भारत और उनकी पत्नी प्रभाती भारत लगातार किसानों को देसी धान बीज के लिए जागरूक कर रहे हैं. यही वजह है कि उनके आसपास के गांव के किसान भी देसी धान के बीज उगा रहे हैं. साथ ही अपने अपने खेतों में धान के अलग-अलग किस्मों की फसल भी ले रहे हैं.

जगदलपुर : छत्तीसगढ़ को 'धान का कटोरा' कहा जाता है. प्रदेश के अधिकतर किसान धान की फसल पर आश्रित है. पिछले कुछ सालों से किसान अच्छे उत्पादन को देखते हुए हाइब्रिड धान पर विशेष ध्यान दे रहे हैं. छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्सों में ही देसी धान उगाया जा रहा है. इसमें से मुख्य रूप से बस्तर शामिल है. जहां एक महिला किसान देसी धान लगाने के पिछले 15 सालों से किसानों को जागरूक कर रही हैं. प्रभाती भारत के पास 400 प्रजाति के देसी धान का कलेक्शन हैं. जिसे अपने एक एकड़ के खेत में लगाती है. प्रभाती बताती हैं कि पिछली तीन पीढ़ियों से उनके परिवार की महिलाएं देसी धान को संरक्षित करने का काम करती आ रही है.

देसी धान से बस्तर को महका रही महिला किसान प्रभाती

जगदलपुर शहर से लगे छोटे गारावांड गांव की एक महिला किसान ने 400 प्रकार के धान को संरक्षित (Protection of 400 types of paddy) कर रखा है. इसमें बस्तर संभाग के साथ ही पड़ोसी राज्य ओडिशा के भी कुछ देसी धान के बीज है. महिला किसान 'प्रभाती भारत' अपने डेढ़ एकड़ की जमीन में हर साल इन 400 प्रजाति की धान की फसल उगाती हैं. महिला किसान अपने साथ कुछ ग्रामीण महिलाओं को जोड़कर देसी धान की फसल के लिए जागरूक कर रही हैं. बस्तर जिले में प्रभाती भारत एकलौती महिला किसान हैं. जिन्होंने 400 से ज्यादा वैरायटी के धान को संरक्षित कर रखा है.

महिला किसान
महिला किसान

महिला किसान प्रभाती के साथ ग्रामीण महिला स्व सहायता समूह की टीम भी है. जो बीज सरंक्षण की दिशा में काम कर रही है. महिला किसान प्रभाती भारत ने बताया कि उन्हें बीज संरक्षण की प्रेरणा उनकी सास व पति विजय भारत से मिली और वे पिछले 15 सालों से बीज संरक्षण पर अपना विशेष ध्यान दे रही हैं. उन्होंने बताया कि उनके पास स्थित धान पूरी तरह से बस्तर संभाग का लोकल धान है. वे जब भी बस्तर के ग्रामीण अंचलों में जाती तो वहां पर अलग-अलग प्रकार के धान के बीज इकट्ठे करने लगती है. इसी के चलते उनके पास 400 से ज्यादा वैरायटी के धान संरक्षित है. जिसे वे अपने पास रखे हुए हैं.

बस्तर को महका रही महिला किसान प्रभाती
बस्तर को महका रही महिला किसान प्रभाती

देसी धान की किस्मों को विलुप्त होने से बचाने की कोशिश

प्रभाती भारत (Prabhati Bharat) ने बताया कि वे 400 से ज्यादा वैरायटी के धान को सुरक्षित कर उसमें तरह-तरह के प्रयोग कर रही हैं. मल्टीविटामिन, कैंसर, डायबिटीज समेत कई बीमारियों से लड़ने वाली वैरायटी भी उन्होंने तैयार किया है. साथ ही धान की 400 से ज्यादा किस्मों को विलुप्त होने से बचाने के लिए हर साल उन्हें रोपती है. फसल तैयार होने तक पूरी देखभाल करते हैं. उन्होंने बताया कि डेढ़ एकड़ की जमीन पर लगभग 400 अलग-अलग प्रजाति के धान उगाने में काफी मेहनत लगने के साथ ही उन्हें इस बात का भी ध्यान देना होता है कि किसी भी तरह कोई भी धान की फसल आपस में न मिल पाए. इसके लिए वे बकायदा हर धान के नाम के साथ ही उसकी नंबरिंग भी करते हैं.

देसी धान
देसी धान

जैविक खाद से करती है धान की खेती

बीज उगाने के साथ ही फसल तैयार होने तक करीब 130 से 150 दिन लगते हैं. इस दौरान धान को उगाने के लिए केवल गोबर खाद का इस्तेमाल किया जाता है. पूरी तरह से ऑर्गेनिक रूप से इसकी खेती की जाती है. देसी धान के संरक्षण के लिए और हर साल इसे रोपने के लिए उन्होंने खुद केंचुआ खाद तैयार किया है. जिसकी मदद से उनकी फसल काफी अच्छी होती है. किसी भी तरह की रासायनिक खाद का इस्तेमाल नहीं करती. यही वजह है कि हर साल उनकी एक एकड़ की जमीन पर देसी धान की महक पूरे गांव व बस्तर में फैलती है.

देसी धान
देसी धान

महिला किसान ने बताया कि एक धान की फसल में करीब दो से ढाई क्विंटल धान का उत्पादन होता है. शौकीन तौर पर वह इन तैयार हुए चावल को घर में ही खाने के रूप में इस्तेमाल करते हैं. हालांकि वे आसपास के किसानों को भी प्रोत्साहित करने के लिए सभी धान की प्रजाति के बीज किसानों की मांग पर उन्हें देती हैं. प्रभाती भारत का कहना है कि उनका मुख्य उद्देश्य बस्तर में हाइब्रिड धान की पैदावार को खत्मकर देसी धान के लिए लोगों को जागरूक करना है. ताकि सभी लोग स्वस्थ रह सके और उन्हें किसी तरह की कोई बीमारी ना हो.

पढ़ें : वैक्सीन लेने के बाद बोले लालू, मोदी राज में पीछे चला गया देश

प्रभाती भारत ने बताया कि उनके पास एंटी कैंसर और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली दो प्रमुख वैरायटी लायचा और गठवन है. इसके अलावा ब्लैक राइस, रेड राइस और रानी बीज, राम लक्ष्मण, जावा फूल, तुलसीगढ़, बुधकमल, पंचरत्न, साहालोटी, लोकटा मांझी, खण्डसगर, जामवंत, नरिहर, गोल मिर्च, कुसुम भोग, सोना धान, केदार भोग, शंकर भोग जैसे ऐसे धान के बीज हैं जिससे डायबिटीज रोगियों के साथ ही अन्य बीमारियों से जूझ रहे मरीजों के लिए यह देसी राइस रामबाण हैं.

देसी धान
देसी धान
इसके अलावा उन्होंने सुगंधित एचएमटी चावल की ऐसी किस्म विकसित की है, जिसका उत्पादन अन्य बीजों की तुलना में ज्यादा है. जिसमें मुख्य रूप से काला जीरा, काली मिर्च और हलसागर ऐसे धान की वैरायटी हैं. जिनका चावल पकने के बाद मोटा दिखता है लेकिन खाने में स्वादिष्ट और बेहद सुगंधित हैं.

विजय भारत को पिता से मिली धान के बीज संरक्षित करने की विरासत

महिला किसान प्रभाती भारत के पति विजय भारत ने बताया कि उनका परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी खेती-किसानी करते आ रहा है. 400 प्रजाति के धान संरक्षण करने की प्रेरणा उन्हें अपने पिता से मिली. उनके पिता विशाल लाल भारत ने पूरे बस्तर संभाग में 400 प्रजाति के धान बीज कलेक्ट किया था. उसके बाद से उन्होंने इस पर शोध करना शुरू किया. पिता के मृत्यु के बाद उनकी पत्नी और माता ने धान की प्रजाति को सुरक्षित करना शुरू किया. धीरे-धीरे पूरे बस्तर संभाग के साथ ही पड़ोसी राज्य ओडिशा से भी धान के बीज उन्होंने संरक्षण किए. हर साल इन धान के बीज को रोपना शुरू किया. उन्होंने बताया कि उनके घर समेत फार्महाउस में पूरे 400 प्रजाति के धान की बालियां रखी हुई है. जिसे देखने दूरदराज से भी लोग आते हैं.

शुरुआती दौर में जगदलपुर कृषि विद्यालय के वैज्ञानिक और रविशंकर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर द्वारा उन्हें देसी धान उगाने और धान को संरक्षित कर रखने के लिए प्रोत्साहित किया. समय-समय पर उनकी पत्नी का मार्गदर्शन भी किया. यही वजह है कि अब हर साल वे 400 प्रकार के धान के बीज रोपते हैं. ग्रामीणों को इसके लिए ट्रेनिंग भी दी जाती है. देसी धान के बीज को बचाने के लिए बीज बैंक भी बनाया जा रहा है. आने वाले समय में केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अधीन पौध किस्म संरक्षण बोर्ड अधिकार को भी एक- एक किलो बीज भेजे जाने की बात कही है.

इस परिवार की जागरूकता का असर भी क्षेत्र में दिख रहा है. स्थानीय किसान भी अपने खेतों में देसी धान के बीज पिछले कई सालों से उगा रहे हैं, किसान ने बताया कि विजय भारत और उनकी पत्नी प्रभाती भारत लगातार किसानों को देसी धान बीज के लिए जागरूक कर रहे हैं. यही वजह है कि उनके आसपास के गांव के किसान भी देसी धान के बीज उगा रहे हैं. साथ ही अपने अपने खेतों में धान के अलग-अलग किस्मों की फसल भी ले रहे हैं.

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