सरगुजा: छत्तीसगढ़ में साल 2018 के चुनाव के लिए कांग्रेस ने रीजनल लीडरशिप को जिम्मेदारी सौंपी. सरगुजा से टीएस सिंहदेव, दुर्ग से भूपेश बघेल, बिलासपुर क्षेत्र से चरणदास महंत, बस्तर में मोहन मरकाम जैसे नेताओं को कांग्रेस ने जिम्मेदारी दी. इन नेताओं को उनके क्षेत्रों में इतना प्रभावी दिखाया गया कि लोगों में लोकल नेता के प्रति अपनेपन का भाव जगा. अब विधानसभा चुनाव 2023 के पहले एक बार फिर कांग्रेस अपने डिसेंट्रलाइज लीडरशिप फॉर्मूले की तरफ आगे बढ़ती दिख रही है.
फिर याद आया कांग्रेस को डिसेंट्रलाइज लीडरशिप फॉर्मूला: दरअसल कांग्रेस में कई नेता लगभग साइडलाइन हो गए. पूरी सत्ता या कांग्रेस मुख्यमंत्री के चेहरे पर ही केंद्रित हो गई. लेकिन चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस हाईकमान को अपने सामूहिक नेतृत्व वाले फार्मूले की याद आई. जिसके बाद लगातार उपेक्षित चल रहे टीएस सिंहदेव को उप मुख्यमंत्री बनाकर उनकी पावर बढ़ा दी गई.
"2018 के चुनाव से पहले हर क्षेत्र के अपने नेता थे. हर क्षेत्र में लोगों को ये लग रहा था कि हमारे क्षेत्र से सीएम हो सकता है. जब सीएम बनने की बात आई तो 4 दावेदार थे. इस बार इनके पास सीएम का चेहरा है.''-मनोज गुप्ता, वरिष्ठ पत्रकार
बस्तर साधने के लिये सांसद दीपक बैज को पीसीसी चीफ बना दिया गया. बस्तर के ही एक हिस्से में प्रभाव रखने वाले पूर्व पीसीसी चीफ मोहन मरकाम को भी मंत्री पद देकर संतुष्ट कर लिया गया. दुर्ग संभाग में खुद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल प्रभावी हैं.
''कांग्रेस सामूहिक नेतृत्व के साथ काम करती है. कांग्रेस में बूथ स्तर की टीम को महत्व दिया जाता है. भाजपा में मोदी और अमित शाह चेहरा होते हैं. कांग्रेस में ऐसा नहीं होता है. कांग्रेस बूथ स्तर से लोगों की जिम्मेदारी तय करती है. इसी तरह क्षेत्र में नेताओं को जिम्मेदारी दी जाती है. यह संवैधानिक भी है.''-जेपी श्रीवास्तव, उपाध्यक्ष, पीसीसी
भाजपा के पास क्या काट है: कांग्रेस के डिसेंट्रलाइज फार्मूले की काट पर भाजपा की पुरानी दलील है. भाजपा कांग्रेस के डिसेंट्रलाइज फार्मूले को सिर फुटव्वल का डैमेज कंट्रोल बता रही है. भाजपा का कहना है कि कांग्रेस के लिए सत्ता सेवा के बजाय मलाई चाटने का साधन बन गया है. सिंहदेव ने नाराजगी जताई तो उन्हें उप मुख्यमंत्री बना दिया. मोहन मरकाम जब अपनी ही सरकार के खिलाफ डीएमएफ फंड के घोटाले की बात करते हैं तो उन्हें हटा दिया. वो नाराज ना हो जाएं इसलिए 3 महीने के लिये मंत्री पद दे दिया. इधर मंत्री पद से इस्तीफा लेने से नाराज हुए प्रेमसाय टेकाम को संतुष्ट करने के लिए नीति आयोग का अध्यक्ष बना दिया.
क्या कांग्रेस को फिर मिलेगा फायदा: कांग्रेस एक बार फिर डिसेंट्रलाइज फार्मूले पर काम कर रही है. चुनाव से पहले एक बार फिर कांग्रेस सतर्क हो गई है. सरगुजा और बस्तर से दो दो आदिवासी मंत्री देकर सत्ता संगठन का संतुलन किया गया है. मुख्यमंत्री ओबीसी हैं, इसलिए प्रदेश अध्यक्ष आदिवासी समाज से बनाया गया है और दीपक बैज को जिम्मेदारी दी गई है. यह कयास भी लगाए जा रहे हैं कि बिलासपुर और रायपुर क्षेत्र में भी कांग्रेस वहां प्रभावी नेताओं को जिम्मेदारी सौंप सकती है या डैमेज कंट्रोल के लिए नेताओं की पावर बढ़ा सकती है. सियासी गलियारे में कांग्रेस के फार्मूले की चर्चा है. हालांकि सियासी जानकारों का मानना है कि कांग्रेस की स्थिति अच्छी तो है लेकिन इस बार साल 2018 जैसी सफलता शायद ही मिल पाए.
''इस बार नहीं लगता कि डिसेंट्रलाइज फार्मूले का लाभ साल 2018 की तरह मिल पाएगा, लेकिन कांग्रेस इस दिशा में काम कर रही है."-मनोज गुप्ता, वरिष्ठ पत्रकार
कांग्रेस कभी एक चेहरे पर चुनाव नहीं लड़ती है. वो कई चेहरों को सामने रखती है. सामूहिक नेतृत्व में जीत के बाद किसी एक को मुखिया बनाया जाता है. कांग्रेस हमेशा से ही इस फार्मूले पर ही चुनाव लड़ते आई है. भाजपा की तरह किसी एक चमत्कारी चेहरे को प्रोजेक्ट करना कांग्रेस की नीति नहीं रही है. अब देखना ये है कि साढ़े 4 साल तक एक ही लीडर पर केंद्रित रहने वाली कांग्रेस को इस डिसेंट्रलाइज फार्मूले का कितना लाभ मिल पाता है.