बस्तर (छत्तीसगढ़) : नक्सलवाद, आदिवासी और प्राकृतिक सुंदरता इन तीन चीजों का जिक्र हो तो आप समझ जाइए कि बस्तर पहुंच गए हैं. बस्तर छत्तीसगढ़ के दक्षिण में बसा वो क्षेत्र है जहां की 70 फीसदी आबादी आदिवासी है. यहां जनजातीय समुदाय के लोग बड़ी संख्या में जंगलों में रहते हैं. जो अपनी अलग संस्कृति, कला और त्योहार की वजह से पहचान रखते हैं. बस्तर जहां सुविधाओं का पहुंचना टेढ़ी खीर हो, वहां ऑनलाइन शिक्षा की सफलता किसी सपने से कम नहीं है. यकीन नहीं तो बच्चों से खुद सुन लीजिए.
छात्र यशवर्धन सिंह बताते हैं कि शिक्षकों को तकनीक के साथ तारतम्य बैठाने में मुश्किलें आ रही हैं, ऐसे में कक्षाएं ठीक से संचालित नहीं हो पा रही हैं. एक छात्रा रिद्धि ने बताया कि गूगल क्लास के बारे में बताया गया है लेकिन आईडी-पासवर्ड डालने के बाद भी क्लास नहीं हो पा रही है.
बस्तर में संरचना की कमी का आलम यह है कि इलाके में न ठीक से नेटवर्क आता है न लोगों के पास स्मार्टफोन हैं. जिनके पास हैं उनके पास इंटरनेट रिचार्ज कराने के लिए पैसे नहीं है. हाल ये है कि 3 जुलाई को पूरे संभाग से सिर्फ 17 बच्चे ऑनलाइन शिक्षा के लिए उपस्थित रहे. बाकी दिनों के भी आंकड़े 30 छात्रों से पार नहीं हुए. इतना ही नहीं ऑनलाइन पढ़ाई का रजिस्ट्रेशन 50 फीसदी हो पाया है.
ऑनलाइन क्लास को लेकर स्थानीय युवती दीक्षा बताती हैं कि आस-पास के बच्चों के पास स्मार्टफोन नहीं होने के कारण बच्चों की पढ़ाई में परेशानी हो रही है. रिद्धि ने बताया कि बच्चे उनसे फोन मांगते हैं, कई बार काम न होने पर वह दे देती हैं, लेकिन ऐसी व्यवस्था में पढ़ाई तो प्रभावित हो ही रही है.
आंकड़ों पर नजर डालें तो बस्तर संभाग का साक्षरता प्रतिशत 51.5 है. इस संभाग के सुकमा जिले की साक्षरता दर 44 फीसदी है, जो सिर्फ प्रदेश ही नहीं बल्कि देश में भी निचले पायदान पर है. वहीं कांकेर की लिट्रेसी रेट 68 फीसदी है, जो संभाग में सबसे ज्यादा है. यही नहीं संभाग में शिक्षकों के करीब 7 हजार पद खाली पड़े हैं. खुद छात्र भी कह रहे हैं कि उन्हें ऑनलाइन एजुकेशन से फायदा नहीं मिल रहा है. जिसके पास फोन है भी, उसके पास इंटरनेट रिचार्ज कराने के लिए पैसे नहीं. कहीं-कहीं तो बेचारे दूसरों का फोन लेकर पढ़ाई करने को मजबूर हैं.
अभिभावकों का कहना है कि शिक्षकों को ही सही ट्रेनिंग नहीं मिली है इसलिए वे बच्चों को ठीक से नहीं पढ़ा पा रहे हैं. ऐसे में ऑनलाइन शिक्षा महज खानापूर्ति बनकर रह गई है. वे अब विकल्प की मांग कर रहे हैं.
अभिभावक रक्षा सिंह का कहना है कि सरकार को इस बात पर गंभीरता से सोचना चाहिए, जिससे बच्चों की पढ़ाई प्रभावित न हो. एक अन्य अभिभावक वर्षा साहू बताती हैं कि इलाके में नेटवर्क की परेशानी के कारण ऑनलाइन क्लास ठीक से नहीं हो पा रही है.
अधिकारियों की मानें तो बस्तर काफी पिछड़ा है. यहां गरीब परिवारों के पास मोबाइल नहीं हैं. शिक्षा विभाग के संयुक्त संचालक एएल राठिया ने बताया कि सरकार कोशिश कर रही है कि अधिकांश स्कूलों में नेटवर्क की समस्या है, लेकिन जहां तक नेटवर्क की उपलब्धता है, वहां तक ऑनलाइन क्लास के इंतजाम की कोशिशें की जा रही हैं.
कांकेर में ऑनलाइन क्लास के जिला एडमिन संजीत श्रीवास्तव बताते हैं कि अधिकांश बच्चों के पास स्मार्टफोन नहीं होने के कारण दिक्कतें हो रही हैं. उन्होंने बताया कि ऐसे लोगों की भी पढ़ाई प्रभावित न हो इसके लिए प्रयास किए जा रहे हैं.
विगत 8 अप्रैल को छत्तीसगढ़ में ऑनलाइन एजुकेशन पोर्टल 'पढ़ई तुंहर दुआर' यानी पढ़ाई आपके द्वार शुरू किया गया ताकि पढ़ाई प्रभावित न हो. जानकारों का भी मानना है कि ऑनलाइन शिक्षा बस्तर में कारगर साबित नहीं हो रही है.
ऑनलाइन शिक्षा में आने वाली समस्याओं पर ईटीवी भारत की अन्य रिपोर्ट्स-
- नेट और न ही नेटवर्क...कैसे हो देश के सबसे पिछड़े जिले नूंह में ऑनलाइन पढ़ाई
- डिजिटल पढ़ाई के लिए बिहार में इस कॉलेज के प्रधानाध्यापक ने की अनूठी पहल
- विशेष : न मोबाइल है न इंटरनेट, कैसे करें ऑनलाइन पढ़ाई?
- ऑनलाइन एजुकेशन के फायदे कम और नुकसान ज्यादा, छात्रों-अभिभावकों ने बताई अपनी पीड़ा
- जहां फोन पर बात करने के लिए नेटवर्क नहीं, वहां ऑनलाइन पढ़ाई कैसे करें बच्चे
बस्तर के हालात पर नजदीकी नजर रखने वाले संजीव पचौरी बताते हैं कि ऑनलाइन शिक्षा बस्तर में कारगर सिद्ध नहीं हो रही है. उन्होने कहा कि बच्चों को पहले ट्रेनिंग दिए जाने की जरूरत थी.
हालांकि कुछ सकारात्मक तस्वीरें भी सामने आईं हैं. नारायणपुर के बासिंग में शिक्षक देवाशीष नाथ सहित 10 शिक्षकों का एक ग्रुप है, जो बारी-बारी से पहली से आठवीं कक्षा के छात्र-छात्राओं को अलग-अलग स्थानों पर पढ़ाते हैं. उनके नाश्ते और खाने का इंतज़ाम भी करते हैं. बस्तर जिले की भाटपाल पंचायत में इंटरनेट और नेटवर्क की समस्या से परेशानी है. लिहाज़ा लाउडस्पीकर के जरिए पढ़ाई कराई जा रही है. सरपंच और ग्रामीणों ने जिला प्रशासन की मदद से गांव की 7 जगहों पर लाउडस्पीकर लगाए हैं. इन लाउडस्पीकरों की मदद से गांव के सभी बच्चे पढ़ाई करते हैं.