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नवादा: 150 साल पुराना तालाब उपेक्षा का शिकार, जीर्णोद्धार की जोह रहा बाट

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Published : Jul 8, 2019, 1:37 PM IST

गौरतलब है कि करीब डेढ़ सौ साल पहले जल संचयन, लोक कल्याण और धार्मिक अनुष्ठान के लिए गांव के लिए साव जी ने अपनी जमीन दान देकर इसका निर्माण कराया था. लेकिन अब न तो यहां जल संचयन किया जाता है और ना ही धार्मिक अनुष्ठानों के कार्य.

उपेक्षित पड़ा तलाब

नवादा: जिले के पकरीबरावां प्रखंड के धमौल गांव स्थित लगभग डेढ़ सौ वर्ष पुराना तालाब उपेक्षित पड़ा हुआ है. पिछले दो तीन सालों से सही से बारिश नहीं होने के कारण यह तालाब पूरी तरह सूख चुका है. ग्रामीणों के द्वारा इसके जीर्णोद्धार की मांगें लागातर की जा रही है. फिर भी यहां के जनप्रतिनिधि और प्रशासनिक अधिकारी कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं. वहीं, सरकार के द्वारा जल संरक्षण की बात कही जा रही है. इसके लिए कहीं-कहीं तालाबों का जीर्णोद्धारभी किया जा रहा है.

उपेक्षित पड़ा तलाब

स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि यह तालाब कभी गांव में पानी के लिए सबसे बड़ा स्रोत हुआ करता था. वहीं, आज खुद पानी के लिए तरस रहा है. करीब 4 एकड़ 61 डिसमिल में फैले इस तालाब पर अब अतिक्रमणकारियों का कब्जा होने लगा है. जिसकी वजह से तालाब दिनों-दिन यह सिकुड़ते जा रहा है. पहले यहां मछली पालन भी होता था. इसका समय-समय पर उड़ाही नहीं होने के कारण पानी की समस्या बनी हुई है. साथ ही पंचायत के मुखिया और सरपंच पर आरोप लगाते हुए कहा कि वह सब इस पर कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं.

क्या कहते हैं जनप्रतिनिधि

वहीं, गांव के सरपंच उपेंद्र सिंह ने कहा कि हमलोगों ने कई प्रयास किए, अंचलाधिकारी को लिखे उनके माध्यम कार्रवाई की बात भी हुई लेकिन उसपर कोई अमल नहीं हुआ. जिसके वजह से तालाब जीर्णशीर्ण अवस्था में पड़ा है. जबकि इस तालाब के सूखने से गांव में पानी का दिक्कत सामने आने लगी है. कई चापाकल सूख गये हैं.

तालाब निर्माण के ये थे प्रमुख उद्देश्य

गौरतलब है कि करीब डेढ़ सौ साल पहले जल संचयन, लोक कल्याण और धार्मिक अनुष्ठान के लिए गांव के लिए साव जी ने अपनी जमीन दान देकर इसका निर्माण कराया था. लेकिन अब न तो यहां जल संचयन किया जाता है और ना ही धार्मिक अनुष्ठानों के कार्य. वहीं, गांव में मूर्ती पूजा करने पर लोगों को मूर्ति विसर्जन के लिए कोसों दूर जाना पड़ता है.

नवादा: जिले के पकरीबरावां प्रखंड के धमौल गांव स्थित लगभग डेढ़ सौ वर्ष पुराना तालाब उपेक्षित पड़ा हुआ है. पिछले दो तीन सालों से सही से बारिश नहीं होने के कारण यह तालाब पूरी तरह सूख चुका है. ग्रामीणों के द्वारा इसके जीर्णोद्धार की मांगें लागातर की जा रही है. फिर भी यहां के जनप्रतिनिधि और प्रशासनिक अधिकारी कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं. वहीं, सरकार के द्वारा जल संरक्षण की बात कही जा रही है. इसके लिए कहीं-कहीं तालाबों का जीर्णोद्धारभी किया जा रहा है.

उपेक्षित पड़ा तलाब

स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि यह तालाब कभी गांव में पानी के लिए सबसे बड़ा स्रोत हुआ करता था. वहीं, आज खुद पानी के लिए तरस रहा है. करीब 4 एकड़ 61 डिसमिल में फैले इस तालाब पर अब अतिक्रमणकारियों का कब्जा होने लगा है. जिसकी वजह से तालाब दिनों-दिन यह सिकुड़ते जा रहा है. पहले यहां मछली पालन भी होता था. इसका समय-समय पर उड़ाही नहीं होने के कारण पानी की समस्या बनी हुई है. साथ ही पंचायत के मुखिया और सरपंच पर आरोप लगाते हुए कहा कि वह सब इस पर कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं.

क्या कहते हैं जनप्रतिनिधि

वहीं, गांव के सरपंच उपेंद्र सिंह ने कहा कि हमलोगों ने कई प्रयास किए, अंचलाधिकारी को लिखे उनके माध्यम कार्रवाई की बात भी हुई लेकिन उसपर कोई अमल नहीं हुआ. जिसके वजह से तालाब जीर्णशीर्ण अवस्था में पड़ा है. जबकि इस तालाब के सूखने से गांव में पानी का दिक्कत सामने आने लगी है. कई चापाकल सूख गये हैं.

तालाब निर्माण के ये थे प्रमुख उद्देश्य

गौरतलब है कि करीब डेढ़ सौ साल पहले जल संचयन, लोक कल्याण और धार्मिक अनुष्ठान के लिए गांव के लिए साव जी ने अपनी जमीन दान देकर इसका निर्माण कराया था. लेकिन अब न तो यहां जल संचयन किया जाता है और ना ही धार्मिक अनुष्ठानों के कार्य. वहीं, गांव में मूर्ती पूजा करने पर लोगों को मूर्ति विसर्जन के लिए कोसों दूर जाना पड़ता है.

Intro:नवादा। जिले के पकरीबरावां प्रखंड के धमौल गांव स्थित लगभग डेढ़ सौ वर्ष पुरानी तालाब अपना अस्तित्व बचाने की जद्दोजहद में लगी हुई है। पिछले दो तीन सालों से सही से बारिश नहीं होने के कारण यह तालाब पूरी तरह सूख चुका है लागातर ग्रामीणों के द्वारा इसके जीर्णोद्धार की मांगें की जा रही है बावजूद न यहां के जनप्रतिनिधियों आंखें खुली है और न किसी प्रशासनिक अधिकारी की। कभी पानी सबसे बड़ा स्रोत हुआ करता था यह तालाब आज खुद पानी के लिए तरस रहा है।




Body:तालाब पर अतिक्रमणकारियों का कब्ज़ा बना चिंता का विषय

करीब 4 एकड़ 61 डिसमिल में फैले इस तालाब पर अब अतिक्रमणकारियों का कब्ज़ा होने लगा है जिसके वजह से तालाब दिनोदिन सिकुड़ती जा रही है।


तालाब निर्माण के ये थे प्रमुख उद्देश्य

करीब डेढ़ सौ वर्ष पहले जल संचयन, लोक कल्याण और धार्मिक अनुष्ठान के लिए गांव के लिए साव जी ने अपनी जमीन दान देकर कराया था इसका निर्माण लेकिन अब न तो यहां जल संचयन हो पाती है और न ही धार्मिक अनुष्ठानों के कार्य। लोगों को मूर्ति विसर्जन के लिए कोसों दूर जाना पड़ता है।

क्या कहते हैं ग्रामीण

ग्रामीण पवन कुमार कहते हैं यह तालाब सैकड़ों वर्ष पुरानी है दो चार वर्षों से बारिश नहीं होने के कारण सूखा पड़ा है पहले यहां मछली पालन भी होता था। इसका समय-समय पर उड़ाही नहीं होने के कारण पानी की समस्या बनी हुई है और दिनोदिन अतिक्रमण का शिकार भी होता जा रहा है। वहीं, मंटू का कहना है कि, इसपे कोई मुखिया या सरपंच ध्यान नहीं दे रहा है।

क्या कहते हैं जनप्रतिनिधि

वहीं गांव के सरपंच उपेंद्र सिंह का कहना है, हमलोग प्रयास किए। अंचलाधिकारी को लिखे। उनके माध्यम से माफी भी हुई लेकिन उस माफी के बाद कोई अमल नहीं हुआ जिसके वजह से तालाब जीर्णशीर्ण अवस्था में पड़ा है। जबकि इस तालाब के सूखने से गांव में पानी का लेयर भी प्रभावित हुआ है सारे चापाकल करीब-करीब सुख चुके हैं। यह तालाब हमलोगों के लिए डैम का काम करता था साथ ही यह देवस्थान का तालाब है इसके निकट दुर्गा मंदिर है। मूर्ति विसर्जन के लिए दो से ढाई किमी दूर जाना पड़ता है। हमलोगों का प्रयास हुआ लेकिन यह अब तक विफल है अभी तक निराशा हाथ लगी हुई है।

बाइट- पवन कुमार,ग्रामीण
बाइट- मंटू, ग्रामीण
बाइट- उपेंद्र सिंह, सरपंच


Conclusion:एक ओर सरकार जल संचयन के लिए नित नए तालाब निर्माण के लिए कह रही वहीं, दूसरी ओर वर्षों पुरानी अपने उद्धारक का बात जोह रहा है।
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