कटिहार: कोरोना वायरस ने दुनिया भर में तबाही मचा दिया है. भारत में भी इसका गहरा असर है. दूसरे राज्यों में तो लोगों के पास पैसे हैं, जिससे वो अपनी जरूरत के सामान तो ले सकते हैं, लेकिन बिहार में किसानों के सामने कोरोना है तो वहीं पीछे भुखमरी. आलम ये है कि अन्नदाता अपनी फसलों को सस्ते दामों पर बेच रहा है.
सीमांचल के किसान इसलिए परेशान हैं, क्योंकि पहले उसे कोरोना ने बेबस कर दिया और अब बाजार की मंदी उसका खून चूस रही है. मक्का की फसल डाउन होने से किसानों की लागत तक नहीं निकल पा रही है. अगली फसल का इंतजार लंबा होता जा रहा है, क्योंकि अब तक पिछली फसल खेत में ही है.
'कर्ज कैसे चुकाएंगे'
किसानों ने कर्ज लेकर खेती की थी. अब जब फसल बिक ही नहीं रही तो कर्ज के पैसे देने की चिंता अन्नदाता के माथे पर है. समस्याओं के मकड़जाल में अन्नदाता की निगाहें अब सरकार पर टिकी हैं. किसानों का कहना है कि मखाना, मछली के किसानों को सरकार संकट से उबारने के लिये ब्रांडिंग कर रही हैं और धान, गेहूं की तरह मक्के की सरकारी खरीद नहीं हैं और ना ही मक्का किसान को सरकार से समर्थन मूल्य नसीब है.
'पीला सोना को सरकारी मदद नहीं'
पीला सोना के नाम से मशहूर सीमांचल का मक्का, किसानों की रीढ़ माना जाता है. जिससे किसानों की वार्षिक जीवनरेखा तय होती है. यहां की अस्सी फीसदी आबादी खेती से रिश्ता रखती है, कोई मक्का के उपज से बेटी के हाथ पीले करने की हसरत रखता है, तो कोई किसान बेचे फसल की आमदनी से जमीन-जायदाद तक खरीद किस्मत संवारता है, लेकिन इस बार कोरोना संकट के बीच इनके 'पीला सोना' ने दगा दे दिया है.
लॉकडाउन 4.0 में इन्हें राहत नहीं
दरअसल, सरकार ने लॉकडाउन के चौथे चरण में जब लोगों को थोड़ी रियायत दी. तो खेती के बाजार पर मंदी की मार पड़ी है और इसी दौरान किसानों का मक्का तैयार हो चुका है. अब हालात ऐसे हैं कि इस मक्के का कोई लेवल नहीं हैं और यदि कीमत ऐसे मिल भी रही है तो खेती पर आई लागत भी नहीं निकल पा रही.
किसानों ने क्या कहा
स्थानीय किसान रूपनारायण दास बताते हैं कि इस बार घर से लागत लग रही है. पिछली बार दाम अच्छे मिले थे. कैसे खेती करेगा किसान, कमड़तोड़ मेहनत है, खून-पसीने से खेती करनी पड़ती है. वहीं, स्थानीय किसान अवधेश कुमार मंडल बताते हैं कि लॉक डाउन में गाड़ी-घोड़ा सब बंद हैं. पिछले साल 2450 रुपये मक्के का रेट था, लेकिन इस बार उसे 1050 में भी कोई नहीं पूछ रहा.
'बेटी की शादी का सपना टूटा'
स्थानीय किसान धर्मेंद्र मंडल बताते हैं कि सोचा था कि इस बार मक्का बेच बेटी के हाथ पीले करुंगा. लड़का भी देख रखा था, लेकिन अब बेटी की सगाई क्या, पेट-भात पर भी आफत है. क्या करें, कुछ समझ में नहीं आता.