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Bihar News : बिहार के मूर्तिकारों का गांव.. यहां घर-घर बनती हैं बेशकीमती मूर्तियां, विदेशों तक है डिमांड

बिहार के गया में एक गांव ऐसा जहां घर घर मूर्ति बनाने का काम होता है. इस गांव का इतिहास भी काफी रोचक है. सबके पास अपना काम होने की वजह से यहां के लोग पलायन नहीं करते. छोटी से छोटी मूर्ति से लेकर बड़ी से बड़ी मूर्ति यहां तराशी जाती है. गांव में दिन और रात पत्थर काटने की आवाजें सुनाई देती हैं. पढ़ें पूरी खबर-

बिहार के गया में मूर्तिकारों का गांव
बिहार के गया में मूर्तिकारों का गांव
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Published : Aug 19, 2023, 6:00 AM IST

Updated : Aug 19, 2023, 12:00 PM IST

खास है बिहार का ये गांव, नहीं होता पलायन, बसते हैं घर-घर मूर्तिकार

गया : बिहार के गया का पत्थरकट्टी गांव संभवत राज्य का ऐसा गांव है, जहां एक दो नहीं बल्कि 500 से अधिक मूर्ति बनाने वाले कारीगर हैं. यह कारीगर कहीं बाहर के नहीं, बल्कि स्थानीय लोग हैं. इस गांव में पलायन नाम की कोई चीज नहीं है. गांव में प्रवेश करते ही चर्र-चर्र की आवाज सुनाई देने लगती है. पत्थर काटते और मूर्ति को आकार देते कारीगर कदम कदम पर मिल जाते हैं. पहाड़ से घिरे इस गांव की सड़क हो या फिर अंदर का इलाका, हर ओर यही नजारा होता है. यहां 20 रुपए से लेकर 20 लाख तक की मूर्तियां बनाई जाती है. इन मूर्तियों की बिक्री देश के तकरीबन हर राज्यों के अलावा विदेशी लोगों की भी पसंद यहां की कारीगरी है. यही वजह है कि जापान, स्वीटजरलैंड समेत अन्य देशों में भी यह की मूर्तियां पर्यटक द्वारा ले जाई जाती है.

ये भी पढ़ें- दुबई में सबसे ऊंची मूर्ति के साथ थीम आधारित दुर्गा पूजा की तैयारी

सदियों पुराना है गांव का इतिहास : इस गांव का इतिहास 17 वीं शताब्दी से मिलना शुरू हो जाता है. बताया जाता है कि 1720 ईस्वी में यहां राजस्थान से गौड़ परिवार को लाया गया था. उस समय इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने गौड़ परिवार को यहां लाया था. तब विष्णुपद मंदिर निर्माण में जो पत्थर लगाए जाने थे, वह पत्थरकट्टी के ही चयनित हुए थे. विष्णुपद मंदिर बनाने में यहीं का पत्थर लगा था और यहीं से ब्लाग बनाकर मंदिर में लगा था. इस तरह इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा विष्णुपद मंदिर का निर्माण कराया गया था, जिसके निर्माण की कारीगरी का कोई जोड़ नहीं है. ऐसे में यहां के कलाकारों की कारीगरी को समझा जा सकता है.



घर-घर में हैं मूर्ति के कलाकार : पत्थरकट्टी गांव में 250 से 300 के बीच घर हैं आबादी हजार में है. यहां हर घर में मूर्ति के कारीगर हैं. एक एक घर में सारी फैमिली तो कहीं एक या दो जरूर मिल जाएंगे. हर घर के पास पत्थरों की कटाई का काम दिन भर चलता रहता है और उसे मूर्ति के कारीगर उसे आकार देते रहते हैं. बड़ी बात यह है, कि गांव में पलायन नाम की चीज नहीं है, क्योंकि मूर्ति के कारीगरों के गांव में काम ही काम है. दिन भर इन्हें मूर्तियां बनाने से फुर्सत नहीं मिलती. ऐसे में कोई बाहर जाने की सोच भी नहीं सकता.



20 रुपए से लेकर 20 लाख तक की बनाते हैं मूर्तियां : यहां के कलाकार की कलाकारी अब भी जमीन पर है. यहां महज 20 रुपए में भी मूर्तियां मिल जाती हैं. कीमत की बात करें, तो यह 20 लाख रुपए तक भी पहुंचती है. यहां एक-एक लोगों के द्वारा समय-समय पर 10-15 लाख की मूर्तियां बिक्री की जाती है. यहां की बनाई मूर्तियां देश भर में प्रसिद्ध है.



विदेशी पर्यटकों की भी है पसंद : यहां की मूर्तियां देश के विभिन्न राज्यों में जाती है. यहां काले पत्थर वही लिए जाते हैं जो कि पहाड़ी से अलग होते हैं. उन पत्थरों से आकार दिया जाता है. इसके अलावा ग्रेनाइट पत्थर, लाल पत्थर राजस्थान और यूपी के मिर्जापुर से मंगाए जाते हैं. बड़े पैमाने पर राजस्थान, यूपी से पत्थर की खरीदी यहां के कलाकार करते हैं. यहां के लोग बताते हैं, कि हमारी मूर्तियां देश के तकरीबन सभी राज्यों में जाती है. इसके अलावा विदेशियों की भी यह पसंद है. स्विट्जरलैंड, जापान के अलावे अन्य देशों की भी बात करें तो वहां भी हमारी मूर्तियां जाती है. वहीं, बोधगया आने वाले पर्यटक यहां जरूर रुकते हैं और मूर्तियों की पसंद करते हैं. भगवान बुद्ध की मूर्तियां विदेशी पर्यटक ले जाते हैं.



पीढ़ी दर पीढ़ी चला कारोबार : यह मूर्ति बनाने का कारोबार पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है. इस गांव की पहचान ही मूर्तियों के कलाकार से जानी जाती है. यहां के लोग बताते हैं कि वह पत्थरों के लिए पहाड़ पर कभी ब्लास्ट नहीं करते. यहां सभी की एक राय होती है और उसी के अनुसार जो पत्थर पहाड़ से अलग होते हैं, वही लिए जाते हैं. इसके अलावा अन्य पत्थर बाहरी राज्यों से मंगाए जाते हैं.



हर घर के बाहर मिल जाएगी आदमकद प्रतिमा : यहां हर घर के बाहर आदमकद प्रतिमा बनाते लोग मिल जाएंगे. क्योंकि ज्यादातर डिमांड आदमकद प्रतिमा की होती है. वैसे यहां हर देवी देवता की प्रतिमा बनाई जाती है. सावन के दिनों में शिवलिंग भी यहां बड़े पैमाने पर बनाए जा रहे हैं. यहां के लोगों का कहना है कि यहां हर तरह की प्रतिमा बना दी जाती है. किसी भी प्रकार की प्रतिमा बनाना उनके लिए चुनौती जरा भी नहीं है. यहां के कलाकार पूरी तरह से निपुण है. 17वीं शताब्दी से जो यहां मूर्ति के कलाकारों का गांव विकास के राह पर चल पड़ा, वह अब आगे बढ़ता ही जा रहा है.



15 लाख तक की मूर्तियां बेची : यहां के रहने वाले रविंद्र नाथ गौड़ बताते हैं कि उन्होंने अब तक करीब 15 लाख तक की कीमत में मूर्ति बेची है. माउंटेन मैन दशरथ मांझी की प्रतिमा जो गहलौर घाटी में लगी है, वह 3.50 लाख में बिकी थी. वहीं, बोधगया में स्थापित करने के लिए भगवान बुद्ध की प्रतिमा भी हमारे यहां से ली जाती है. इसके अलावा आर्डर के मुताबिक काम होते रहते हैं. रविंद्र नाथ गौड़ बताते हैं कि हमारे यहां 1 इंच की मूर्ति 20 रुपए में मिल जाती है, जबकि ऐसे भी ग्राहक आते हैं जिनके ऑर्डर के अनुसार और वजन के अनुसार 20 लाख तक की मूर्तियों का निर्माण यहां होता है. हमारा पत्थरकट्टी गांव मूर्ति के कारोबार से पूरी तरह से जुड़ा हुआ है. यहां किसी प्रकार का पलायन नाम की कोई चीज नहीं है. यहां सभी लोग आत्मनिर्भर हैं.

खास है बिहार का ये गांव, नहीं होता पलायन, बसते हैं घर-घर मूर्तिकार

गया : बिहार के गया का पत्थरकट्टी गांव संभवत राज्य का ऐसा गांव है, जहां एक दो नहीं बल्कि 500 से अधिक मूर्ति बनाने वाले कारीगर हैं. यह कारीगर कहीं बाहर के नहीं, बल्कि स्थानीय लोग हैं. इस गांव में पलायन नाम की कोई चीज नहीं है. गांव में प्रवेश करते ही चर्र-चर्र की आवाज सुनाई देने लगती है. पत्थर काटते और मूर्ति को आकार देते कारीगर कदम कदम पर मिल जाते हैं. पहाड़ से घिरे इस गांव की सड़क हो या फिर अंदर का इलाका, हर ओर यही नजारा होता है. यहां 20 रुपए से लेकर 20 लाख तक की मूर्तियां बनाई जाती है. इन मूर्तियों की बिक्री देश के तकरीबन हर राज्यों के अलावा विदेशी लोगों की भी पसंद यहां की कारीगरी है. यही वजह है कि जापान, स्वीटजरलैंड समेत अन्य देशों में भी यह की मूर्तियां पर्यटक द्वारा ले जाई जाती है.

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सदियों पुराना है गांव का इतिहास : इस गांव का इतिहास 17 वीं शताब्दी से मिलना शुरू हो जाता है. बताया जाता है कि 1720 ईस्वी में यहां राजस्थान से गौड़ परिवार को लाया गया था. उस समय इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने गौड़ परिवार को यहां लाया था. तब विष्णुपद मंदिर निर्माण में जो पत्थर लगाए जाने थे, वह पत्थरकट्टी के ही चयनित हुए थे. विष्णुपद मंदिर बनाने में यहीं का पत्थर लगा था और यहीं से ब्लाग बनाकर मंदिर में लगा था. इस तरह इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा विष्णुपद मंदिर का निर्माण कराया गया था, जिसके निर्माण की कारीगरी का कोई जोड़ नहीं है. ऐसे में यहां के कलाकारों की कारीगरी को समझा जा सकता है.



घर-घर में हैं मूर्ति के कलाकार : पत्थरकट्टी गांव में 250 से 300 के बीच घर हैं आबादी हजार में है. यहां हर घर में मूर्ति के कारीगर हैं. एक एक घर में सारी फैमिली तो कहीं एक या दो जरूर मिल जाएंगे. हर घर के पास पत्थरों की कटाई का काम दिन भर चलता रहता है और उसे मूर्ति के कारीगर उसे आकार देते रहते हैं. बड़ी बात यह है, कि गांव में पलायन नाम की चीज नहीं है, क्योंकि मूर्ति के कारीगरों के गांव में काम ही काम है. दिन भर इन्हें मूर्तियां बनाने से फुर्सत नहीं मिलती. ऐसे में कोई बाहर जाने की सोच भी नहीं सकता.



20 रुपए से लेकर 20 लाख तक की बनाते हैं मूर्तियां : यहां के कलाकार की कलाकारी अब भी जमीन पर है. यहां महज 20 रुपए में भी मूर्तियां मिल जाती हैं. कीमत की बात करें, तो यह 20 लाख रुपए तक भी पहुंचती है. यहां एक-एक लोगों के द्वारा समय-समय पर 10-15 लाख की मूर्तियां बिक्री की जाती है. यहां की बनाई मूर्तियां देश भर में प्रसिद्ध है.



विदेशी पर्यटकों की भी है पसंद : यहां की मूर्तियां देश के विभिन्न राज्यों में जाती है. यहां काले पत्थर वही लिए जाते हैं जो कि पहाड़ी से अलग होते हैं. उन पत्थरों से आकार दिया जाता है. इसके अलावा ग्रेनाइट पत्थर, लाल पत्थर राजस्थान और यूपी के मिर्जापुर से मंगाए जाते हैं. बड़े पैमाने पर राजस्थान, यूपी से पत्थर की खरीदी यहां के कलाकार करते हैं. यहां के लोग बताते हैं, कि हमारी मूर्तियां देश के तकरीबन सभी राज्यों में जाती है. इसके अलावा विदेशियों की भी यह पसंद है. स्विट्जरलैंड, जापान के अलावे अन्य देशों की भी बात करें तो वहां भी हमारी मूर्तियां जाती है. वहीं, बोधगया आने वाले पर्यटक यहां जरूर रुकते हैं और मूर्तियों की पसंद करते हैं. भगवान बुद्ध की मूर्तियां विदेशी पर्यटक ले जाते हैं.



पीढ़ी दर पीढ़ी चला कारोबार : यह मूर्ति बनाने का कारोबार पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है. इस गांव की पहचान ही मूर्तियों के कलाकार से जानी जाती है. यहां के लोग बताते हैं कि वह पत्थरों के लिए पहाड़ पर कभी ब्लास्ट नहीं करते. यहां सभी की एक राय होती है और उसी के अनुसार जो पत्थर पहाड़ से अलग होते हैं, वही लिए जाते हैं. इसके अलावा अन्य पत्थर बाहरी राज्यों से मंगाए जाते हैं.



हर घर के बाहर मिल जाएगी आदमकद प्रतिमा : यहां हर घर के बाहर आदमकद प्रतिमा बनाते लोग मिल जाएंगे. क्योंकि ज्यादातर डिमांड आदमकद प्रतिमा की होती है. वैसे यहां हर देवी देवता की प्रतिमा बनाई जाती है. सावन के दिनों में शिवलिंग भी यहां बड़े पैमाने पर बनाए जा रहे हैं. यहां के लोगों का कहना है कि यहां हर तरह की प्रतिमा बना दी जाती है. किसी भी प्रकार की प्रतिमा बनाना उनके लिए चुनौती जरा भी नहीं है. यहां के कलाकार पूरी तरह से निपुण है. 17वीं शताब्दी से जो यहां मूर्ति के कलाकारों का गांव विकास के राह पर चल पड़ा, वह अब आगे बढ़ता ही जा रहा है.



15 लाख तक की मूर्तियां बेची : यहां के रहने वाले रविंद्र नाथ गौड़ बताते हैं कि उन्होंने अब तक करीब 15 लाख तक की कीमत में मूर्ति बेची है. माउंटेन मैन दशरथ मांझी की प्रतिमा जो गहलौर घाटी में लगी है, वह 3.50 लाख में बिकी थी. वहीं, बोधगया में स्थापित करने के लिए भगवान बुद्ध की प्रतिमा भी हमारे यहां से ली जाती है. इसके अलावा आर्डर के मुताबिक काम होते रहते हैं. रविंद्र नाथ गौड़ बताते हैं कि हमारे यहां 1 इंच की मूर्ति 20 रुपए में मिल जाती है, जबकि ऐसे भी ग्राहक आते हैं जिनके ऑर्डर के अनुसार और वजन के अनुसार 20 लाख तक की मूर्तियों का निर्माण यहां होता है. हमारा पत्थरकट्टी गांव मूर्ति के कारोबार से पूरी तरह से जुड़ा हुआ है. यहां किसी प्रकार का पलायन नाम की कोई चीज नहीं है. यहां सभी लोग आत्मनिर्भर हैं.

Last Updated : Aug 19, 2023, 12:00 PM IST
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