हैदराबाद: 11वीं सदी के वैष्णव संत श्री रामानुजाचार्य (Sant Ramanujacharya) की स्मृति में बनाई गई 216 फुट ऊंची 'स्टैच्यू ऑफ इक्वालिटी' (Statue Of Equality) प्रतिमा का अनावरण पीएम मोदी ने 5 फरवरी को किया था, जिसके बाद लगातार कई दिग्गज श्री रामानुजाचार्य के दर्शन करने के लिए पहुंच रहे हैं. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बाद शुक्रवार को बाबा रामदेव (Baba Ramdev) ने स्टैच्यू ऑफ इक्वालिटी देखा और उन्होंने श्री रामानुजाचार्य को प्रणाम किया.
इस दौरान उनके साथ श्रीश्री त्रिदंडी चिन्ना जीयर स्वामी मौजूद थे. श्री रामानुजाचार्य ने राष्ट्रीयता, लिंग, नस्ल, जाति या पंथ की परवाह किए बिना हर इंसान की भावना के साथ लोगों के उत्थान के लिए अथक प्रयास किया था.
अमित शाह ने भी किए दर्शन
इससे पहले अमित शाह ने दर्शन कर कहा था कि रामानुजाचार्य का स्टैच्यू ऑफ इक्वालिटी आने वाले वर्षों में पूरी दुनिया को ‘विशिष्टाद्वैत’, समानता और ‘सनातन’ धर्म का संदेश देगा. रामानुजाचार्य की प्रतिमा कई वर्षों तक काम करने के लिए चेतना और उत्साह प्रदान करेगी. शाह ने 11वीं सदी के इस संत के सभी के लिए समानता के संदेश पर जोर देते हुए कहा कि रामानुजाचार्य बहुत विनम्र थे और उन्होंने कई कुरीतियों को खत्म करने का काम किया. इस प्रतिमा को देखकर मन शांति और खुशी से भर जाता है.
उन्होंने कहा कि मुझे विश्वास है कि यह रामानुजाचार्य के समानता तथा दुनियाभर में 'सनातन' धर्म के संदेश को आगे बढ़ाएगा. जब 'आक्रमणकारियों' ने भारत में मंदिरों पर हमला किया और उन्हें ध्वस्त किया तो रामानुजाचार्य ने ही घरों में ईश्वर की पूजा करने की परंपरा शुरू की, जिसके कारण 'सनातन' धर्म आज तक अस्तित्व में है.
स्टैच्यू ऑफ इक्वालिटी की प्रतिमा 'पंचधातु' से बनी है
वहीं, श्री रामानुजाचार्य की समानता के संदेश की सराहना करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था कि उनकी सरकार इसी भावना वाले 'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास' के मंत्र के साथ देश के नए भविष्य की नींव रख रही है. आज देश में एक ओर सरदार वल्लभ भाई पटेल की 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' एकता की शपथ दोहरा रही है तो रामानुजाचार्य की 'स्टैच्यू ऑफ इक्वालिटी' समानता का संदेश दे रही है. यही एक राष्ट्र के रूप में भारत की विशेषता है. प्रधानमंत्री ने त्रिदंडी चिन्ना जीयर स्वामी के आश्रम का भी दौरा किया था. श्री रामानुजाचार्य की प्रतिमा इसी आश्रम में स्थापित की गई है.
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कौन हैं रामानुजाचार्य स्वामी
रामानुजाचार्य स्वामी का जन्म 1017 में तमिलनाडु के श्रीपेरंबुदूर में हुआ था. उनके माता का नाम कांतिमती और पिता का नाम केशवचार्युलु था. भक्तों का मानना है कि यह अवतार स्वयं भगवान आदिश ने लिया था. उन्होंने कांची अद्वैत पंडितों के अधीन वेदांत में शिक्षा प्राप्त की. उन्होंने विशिष्टाद्वैत विचारधारा की व्याख्या की और मंदिरों को धर्म का केंद्र बनाया. रामानुज को यमुनाचार्य द्वारा वैष्णव दीक्षा में दीक्षित किया गया था. उनके परदादा अलवंडारू श्रीरंगम वैष्णव मठ के पुजारी थे. 'नांबी' नारायण ने रामानुज को मंत्र दीक्षा का उपदेश दिया. तिरुकोष्टियारु ने 'द्वय मंत्र' का महत्व समझाया और रामानुजम को मंत्र की गोपनीयता बकरार रखने के लिए कहा, लेकिन रामानुज ने महसूस किया कि 'मोक्ष' को कुछ लोगों तक सीमित नहीं रखा जाना चाहिए, इसलिए वह पुरुषों और महिलाओं को समान रूप से पवित्र मंत्र की घोषणा करने के लिए श्रीरंगम मंदिर गोपुरम पर चढ़ गए.