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Year Ender 2022 Congress President : 24 साल बाद मिला कांग्रेस को 'गैर गांधी' अध्यक्ष - एक नजर में 2022

24 साल बाद कांग्रेस पार्टी को गांधी परिवार से इतर कोई अध्यक्ष मिला. 22 साल बाद कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुआ. दलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाले 80 वर्षीय मल्लिकार्जुन खड़गे ने 17 अक्टूबर को हुए चुनाव में अपने प्रतिद्वंद्वी 66 वर्षीय शशि थरूर को मात दी. पार्टी के 137 साल के इतिहास में छठी बार अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुआ था.

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Published : Dec 27, 2022, 2:27 PM IST

हैदराबाद : लंबे समय से कांग्रेस के अंदर अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर सुगबुगाहट हो रही थी. कांग्रेस को मिल रही लगातार चुनावी हार के बाद से कई नेताओं ने पार्टी संगठन में बदलाव की मांग की. सबकी नजरें अध्यक्ष पद की ओर थी. पार्टी को लंबे समय से अध्यक्ष की तलाश थी. राहुल गांधी के हटने के बाद सोनिया गांधी कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में यह पद संभाल रहीं थीं. कांग्रेस के अधिकांश नेताओं ने राहुल गांधी से अध्यक्ष पद संभालने की प्रार्थना की. पर, राहुल गांधी इसके लिए तैयार नहीं हुए. सोनिया गांधी स्वास्थ्य कारणों से इस पद के लिए तैयार नहीं थीं. ऐसे में अध्यक्ष कौन बने, यह सवाल कांग्रेस को परेशान कर रहा था. तभी पार्टी ने अध्यक्ष पद के चुनाव की घोषणा कर दी.

sonia and kharge
सोनिया गांधी ने मल्लिकार्जुन खड़गे

पार्टी में अध्यक्ष पद के लिए चुनाव तो अवश्य हुआ, लेकिन उसको लेकर आंतरिक रस्सा-कशी भी खूब चली. पर्दे के पीछे से बहुत सारी स्थितियों को 'कंट्रोल' किया गया. कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव की जब घोषणा की गई थी, तो खड़गे का नाम सामने नहीं आया था. ऐसा माना जा रहा था कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पार्टी अध्यक्ष बनेंगे. राजनीतिक सूत्रों ने यह भी बताया कि गहलोत को आलाकमान की हरी झंडी मिल चुकी थी. 22 अगस्त को उन्होंने औपचारिक तौर पर अध्यक्ष चुनाव लड़ने की घोषणा भी कर दी. पर, गहलोत को यह 'मंजूर' नहीं था. वैसे, औपचारिक तौर पर गहलोत ने ऐसा कभी कहा नहीं. दरअसल, वह चाहते थे कि प्रदेश की जिम्मेदारी निभाने के साथ-साथ ही अध्यक्ष पद की भी जवाबदेही निभाएं. इस बाबत उन्होंने अपना बयान भी दिया था. उन्होंने कहा था कि वह एक साथ कई भूमिका निभा सकते हैं.

इधर पार्टी हलकों में यह खबर चल पड़ी कि गहलोत के अध्यक्ष बनते ही राजस्थान की कमान सचिन पायलट को दे दी जाएगी. इस खबर की भनक जैसे ही गहलोत और उनके समर्थकों को लगी, वे चौकन्ने हो गए. गहलोत चाहते थे कि यदि उन्हें सीएम पद से हटने को कहा जाएगा, तो इसकी जगह पर उनकी 'पसंद' का कोई व्यक्ति सीएम बने. वह कतई नहीं चाहते थे कि पायलट को यह जिम्मेदारी दी जाए. वैसे औपचारिक तौर पर उन्होंने इस तरह का कोई बयान नहीं दिया. इसके बाद अंदरूनी राजनीति शुरू हो गई. खींचतान बढ़ी. कांग्रेस ने अपने दो पर्यवेक्षकों, अजय माकन और मल्लिकार्जुन खड़गे, को राजस्थान भेजा.

rahul, ashok gehlot, sachin pilot
राहुल गांधी के साथ अशोक गहलोत और सचिन पायलट

जिन दिन राजस्थान के विधायकों के साथ पर्यवेक्षकों की बैठक होनी थी, उस दिन विधायक उनसे मिलने ही नहीं आए. उलटे कांग्रेस के 82 विधायकों ने विधानसभा स्पीकर सीपी जोशी के सामने इस्तीफा पेश करने का दावा कर दिया. ये सभी विधायक गहलोत के समर्थक बताए जा रहे थे. गहलोत से जब इस बाबत पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि यह सब उनके बस में नहीं है. कांग्रेस विधायक प्रताप सिंह खाचरियावास ने कहा कि 10-15 विधायकों की सुनवाई हो रही है. जबकि अन्य विधायकों की उपेक्षा हो रही है. पार्टी हमारी नहीं सुनती. निश्चित तौर पर उनका इशारा सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों की ओर था.

खुद गहलोत ने एक टीवी चैनल को दिए गए इंटरव्यू में सचिन पायलट के लिए 'गद्दार' जैसे शब्दों का अप्रत्यक्ष रूप से प्रयोग किया. उनका इशारा था कि सचिन पायलट पहले भी भाजपा की शह पर विरोध कर चुके हैं, लेकिन उनके पक्ष में पर्याप्त विधायक ही नहीं थे.

इन सारे प्रकरण से आलाकमान नाराज हो गया. गहलोत दिल्ली आए. 29 सितंबर को उन्होंने सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद अध्यक्ष का चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान कर दिया. इसके बाद मलिल्कार्जुन खड़गे का नाम सामने आया. उनके सामने शशि थरूर खड़े थे. थरूर ने शुरुआत में ही घोषणा कर दी थी कि वह अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ेंगे. वैसे, शशि थरूर बार-बार यह कहते रहे कि खड़गे को आधिकारिक उम्मीदवार बताया गया. उनके अनुसार वे जहां-जहां अपना प्रचार करने गए, उनकी उपेक्षा की गई. कांग्रेस पर्यवेक्षकों ने उनके आरोपों को दरकिनार कर दिया.

shashi tharoor
शशि थरूर

जिस दिन मतगणना हो रही थी, उस दिन भी थरूर की टीम ने चुनाव में अनियमितताओं का मुद्दा उठाया. उनके एजेंट सलमान सोज थे. उन्होंने बैलेट बॉक्स के लिए अनाधिकारिक सील, पोलिंग बूथ पर अनधिकृत लोगों की मौजूदगी, मतदान प्रक्रिया में गलत काम और पोलिंग शीट के नहीं होने का मुद्दा उठाया. पर चुनाव प्रभारी मधुसूदन मिस्त्री ने उनके सारे आरोपों को सिरे से नकार दिया. उलटे उन्होंने कहा कि थरूर मीडिया के सामने दूसरा चेहरा रखते हैं, जबकि कांग्रेस दफ्तर में बिल्कुल अलग चेहरा रखते हैं. खड़गे जब अध्यक्ष बने, तो उन्होंने अपनी टीम में थरूर को शामिल नहीं किया.

अध्यक्ष के पद के लिए दो और नाम सामने आए थे. एक नाम मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का था. दरअसल, जब यह तय हो चुका था कि गहलोत अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने के लिए इच्छुक नहीं हैं और उसके बाद उन्होंने औपचारिक रूप से रेस से बाहर रहने का ऐलान कर दिया, तब दिग्विजय सिंह ने अपनी दावेदारी पेश करने की घोषणा कर दी. 29 सितंबर को वे नामांकन पत्र लेकर आ गए. इसके बाद सिंह ने खड़गे और केसी वेणुगोपाल से बात की. इस बीच अचानक ही मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम सामने आ गया. खड़गे का नाम सामने आते ही दिग्विजय सिंह ने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली. दिग्विजय सिंह के अलावा झारखंड के केएन त्रिपाठी ने भी रेस में आने की घोषणा की थी.

ये भी पढ़ें : Year Ender 2022 : हिजाब विवाद, सड़क से लेकर कोर्ट तक गूंजता रहा मामला

हैदराबाद : लंबे समय से कांग्रेस के अंदर अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर सुगबुगाहट हो रही थी. कांग्रेस को मिल रही लगातार चुनावी हार के बाद से कई नेताओं ने पार्टी संगठन में बदलाव की मांग की. सबकी नजरें अध्यक्ष पद की ओर थी. पार्टी को लंबे समय से अध्यक्ष की तलाश थी. राहुल गांधी के हटने के बाद सोनिया गांधी कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में यह पद संभाल रहीं थीं. कांग्रेस के अधिकांश नेताओं ने राहुल गांधी से अध्यक्ष पद संभालने की प्रार्थना की. पर, राहुल गांधी इसके लिए तैयार नहीं हुए. सोनिया गांधी स्वास्थ्य कारणों से इस पद के लिए तैयार नहीं थीं. ऐसे में अध्यक्ष कौन बने, यह सवाल कांग्रेस को परेशान कर रहा था. तभी पार्टी ने अध्यक्ष पद के चुनाव की घोषणा कर दी.

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सोनिया गांधी ने मल्लिकार्जुन खड़गे

पार्टी में अध्यक्ष पद के लिए चुनाव तो अवश्य हुआ, लेकिन उसको लेकर आंतरिक रस्सा-कशी भी खूब चली. पर्दे के पीछे से बहुत सारी स्थितियों को 'कंट्रोल' किया गया. कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव की जब घोषणा की गई थी, तो खड़गे का नाम सामने नहीं आया था. ऐसा माना जा रहा था कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पार्टी अध्यक्ष बनेंगे. राजनीतिक सूत्रों ने यह भी बताया कि गहलोत को आलाकमान की हरी झंडी मिल चुकी थी. 22 अगस्त को उन्होंने औपचारिक तौर पर अध्यक्ष चुनाव लड़ने की घोषणा भी कर दी. पर, गहलोत को यह 'मंजूर' नहीं था. वैसे, औपचारिक तौर पर गहलोत ने ऐसा कभी कहा नहीं. दरअसल, वह चाहते थे कि प्रदेश की जिम्मेदारी निभाने के साथ-साथ ही अध्यक्ष पद की भी जवाबदेही निभाएं. इस बाबत उन्होंने अपना बयान भी दिया था. उन्होंने कहा था कि वह एक साथ कई भूमिका निभा सकते हैं.

इधर पार्टी हलकों में यह खबर चल पड़ी कि गहलोत के अध्यक्ष बनते ही राजस्थान की कमान सचिन पायलट को दे दी जाएगी. इस खबर की भनक जैसे ही गहलोत और उनके समर्थकों को लगी, वे चौकन्ने हो गए. गहलोत चाहते थे कि यदि उन्हें सीएम पद से हटने को कहा जाएगा, तो इसकी जगह पर उनकी 'पसंद' का कोई व्यक्ति सीएम बने. वह कतई नहीं चाहते थे कि पायलट को यह जिम्मेदारी दी जाए. वैसे औपचारिक तौर पर उन्होंने इस तरह का कोई बयान नहीं दिया. इसके बाद अंदरूनी राजनीति शुरू हो गई. खींचतान बढ़ी. कांग्रेस ने अपने दो पर्यवेक्षकों, अजय माकन और मल्लिकार्जुन खड़गे, को राजस्थान भेजा.

rahul, ashok gehlot, sachin pilot
राहुल गांधी के साथ अशोक गहलोत और सचिन पायलट

जिन दिन राजस्थान के विधायकों के साथ पर्यवेक्षकों की बैठक होनी थी, उस दिन विधायक उनसे मिलने ही नहीं आए. उलटे कांग्रेस के 82 विधायकों ने विधानसभा स्पीकर सीपी जोशी के सामने इस्तीफा पेश करने का दावा कर दिया. ये सभी विधायक गहलोत के समर्थक बताए जा रहे थे. गहलोत से जब इस बाबत पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि यह सब उनके बस में नहीं है. कांग्रेस विधायक प्रताप सिंह खाचरियावास ने कहा कि 10-15 विधायकों की सुनवाई हो रही है. जबकि अन्य विधायकों की उपेक्षा हो रही है. पार्टी हमारी नहीं सुनती. निश्चित तौर पर उनका इशारा सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों की ओर था.

खुद गहलोत ने एक टीवी चैनल को दिए गए इंटरव्यू में सचिन पायलट के लिए 'गद्दार' जैसे शब्दों का अप्रत्यक्ष रूप से प्रयोग किया. उनका इशारा था कि सचिन पायलट पहले भी भाजपा की शह पर विरोध कर चुके हैं, लेकिन उनके पक्ष में पर्याप्त विधायक ही नहीं थे.

इन सारे प्रकरण से आलाकमान नाराज हो गया. गहलोत दिल्ली आए. 29 सितंबर को उन्होंने सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद अध्यक्ष का चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान कर दिया. इसके बाद मलिल्कार्जुन खड़गे का नाम सामने आया. उनके सामने शशि थरूर खड़े थे. थरूर ने शुरुआत में ही घोषणा कर दी थी कि वह अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ेंगे. वैसे, शशि थरूर बार-बार यह कहते रहे कि खड़गे को आधिकारिक उम्मीदवार बताया गया. उनके अनुसार वे जहां-जहां अपना प्रचार करने गए, उनकी उपेक्षा की गई. कांग्रेस पर्यवेक्षकों ने उनके आरोपों को दरकिनार कर दिया.

shashi tharoor
शशि थरूर

जिस दिन मतगणना हो रही थी, उस दिन भी थरूर की टीम ने चुनाव में अनियमितताओं का मुद्दा उठाया. उनके एजेंट सलमान सोज थे. उन्होंने बैलेट बॉक्स के लिए अनाधिकारिक सील, पोलिंग बूथ पर अनधिकृत लोगों की मौजूदगी, मतदान प्रक्रिया में गलत काम और पोलिंग शीट के नहीं होने का मुद्दा उठाया. पर चुनाव प्रभारी मधुसूदन मिस्त्री ने उनके सारे आरोपों को सिरे से नकार दिया. उलटे उन्होंने कहा कि थरूर मीडिया के सामने दूसरा चेहरा रखते हैं, जबकि कांग्रेस दफ्तर में बिल्कुल अलग चेहरा रखते हैं. खड़गे जब अध्यक्ष बने, तो उन्होंने अपनी टीम में थरूर को शामिल नहीं किया.

अध्यक्ष के पद के लिए दो और नाम सामने आए थे. एक नाम मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का था. दरअसल, जब यह तय हो चुका था कि गहलोत अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने के लिए इच्छुक नहीं हैं और उसके बाद उन्होंने औपचारिक रूप से रेस से बाहर रहने का ऐलान कर दिया, तब दिग्विजय सिंह ने अपनी दावेदारी पेश करने की घोषणा कर दी. 29 सितंबर को वे नामांकन पत्र लेकर आ गए. इसके बाद सिंह ने खड़गे और केसी वेणुगोपाल से बात की. इस बीच अचानक ही मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम सामने आ गया. खड़गे का नाम सामने आते ही दिग्विजय सिंह ने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली. दिग्विजय सिंह के अलावा झारखंड के केएन त्रिपाठी ने भी रेस में आने की घोषणा की थी.

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