पटना: बिहार के बाढ़ (Bihar Flood) पीड़ित गले तक पहुंचे पानी में जिंदगी की जंग (Flood Condition) लड़ते हैं. अपने से ज्यादा अपने परिवार की चिंता उन्हें खाए जाती है. खाना, पीने के पानी और सर के ऊपर छत की तलाश की जाती है. विधाता का खेल ऐसा कि तलाश कभी खत्म होने का नाम ही नहीं लेती है. लेकिन अब जल संसाधन विभाग (Water Resources Department) की ओर से एक बड़ा कदम उठाने की तैयारी हो रही है.
उत्तर बिहार के बाद गंगा (Ganga River) में उफान से राजधानी पटना सहित 12 जिलों पर खतरा है. खासकर गंगा किनारे जो शहर हैं उनकी मुश्किलें बढ़ी हुई हैं. 2016 में गंगा में जबरदस्त उफान आया था और एक बार फिर से गंगा पूरे उफान पर है.
पटना जिले के अधिकांश घाटों पर पिछले कई दिनों से गंगा का जलस्तर खतरे के निशान से ऊपर है. जल संसाधन विभाग छोटी नदियों को जोड़ने पर गंभीरता से विचार कर रहा है क्योंकि अधिकांश छोटी नदियों का पानी गंगा में ही आकर मिलता है. छोटी नदियों के उफान से भी गंगा की स्थिति भयावह होती है.
इस बारे में बिहार के जल संसाधन मंत्री संजय झा ने कहा कि नदियों को जोड़ने पर विभाग गंभीरता से विचार कर रहा है. इस साल उत्तर बिहार में जून में ही रिकॉर्ड बारिश हो गई और नदियों का जलस्तर रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया. नेपाल से आने वाली नदियों के कारण बाढ़ की स्थिति गंभीर होती है उस पर तो बहुत कुछ काम नहीं हो रहा है लेकिन राज्य के अंदर कई छोटी नदियां हैं जिस पर बाढ़ के बाद उन्हें जोड़ने को लेकर काम शुरू होगा.
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बिहार में छोटी नदियों में उफान के कारण भी तबाही मचती रही है. सिरोही नदी दरभंगा और मधुबनी में तबाही मचाती रही है. लखनदेई बाया, अधवारा सिरोही, कनकई , परियानी, सुरसर, जहानाबाद में फल्गु, औरंगाबाद में पुनपुन, नालंदा जिले में पचाने, एकंगर सराय में फल्गु का दाया, कराई परशुराय भूतही नदी जहानाबाद जिले में रतनी, फरीदपुर में बेल दईया जैसी कई नदियां है जो बरसात के दिनों में तबाही मचाती हैं. और फिर गंगा का जलस्तर भी बढ़ा देती हैं.
वहीं एएनसिन्हा शोध संस्थान के विशेषज्ञ प्रो विद्यार्थी विकास का कहना है कि नदियों को जोड़ने की योजना पर चर्चा लंबे समय से होती रही है. बिहार सरकार यदि साइंटिफिक तरीके से इस पर काम करेगी तो निश्चित रूप से इसका लाभ मिलेगा लेकिन अवैज्ञानिक तरीके से काम करने पर नुकसान भी हो सकता है.
2016 में पटना सहित गंगा से सटे अधिकांश जिलों में जलस्तर ने नई ऊंचाईयों को छुआ था. इस बार भी गंगा उसी ऊंचाई के करीब पहुंच गई है और इसलिए सरकार की भी चिंता बढ़ गई है. मुख्यमंत्री ने खुद निरीक्षण किया है और अलर्ट रहने का निर्देश भी दिया है. 2016 में कुछ प्रमुख घाटों की स्थिति इस प्रकार से थी. गांधी घाट 50.52, 49.85 तक पहुंच गई थी. वहीं दीघा घाट 52.52, 51.18 तो हाथीदेह में 43.1 7, 42.90 पर पहुंच गई थी. जबकि भागलपुर में जलस्तर 34.72, 34.01 था.
बक्सर, भोजपुर, सारण, वैशाली, पटना, समस्तीपुर, बेगूसराय, खगड़िया, लखीसराय, मुंगेर, भागलपुर और कटिहार 12 जिलों से होकर गंगा बहती है और इन जिलों के कई शहर पर गंगा में जलस्तर बढ़ने के कारण बाढ़ का खतरा है.
ऐसे तो नदियों को जोड़ने की योजना लंबे समय से चर्चा में है. कोसी, मेची नदी उत्तर बिहार में बहने वाली नदी है और इसे जोड़ने के लिए लंबे समय से प्रयास होता रहा है. कई बार डीपीआर केंद्र को भेजा गया. स्वीकृति भी दी है इस पर 5000 करोड़ से अधिक की राशि खर्च होने का अनुमान है.हालांकि इसमें बहुत काम अभी नहीं हुआ है. इसमें नहर भी बनाया जाएगा लेकिन छोटी नदियों को जोड़ने पर बिहार सरकार पहली बार गंभीरता से विचार कर रही है और जल संसाधन विभाग को इसके लिए टास्क भी दिया गया है. आगे विशेषज्ञों की भी मदद ली जाएगी.
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सरकार बाढ़ से बचाव के लिए हर साल हजारों करोड़ खर्च करती रही है. यही नहीं गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती, कोसी, अधवारा, कमला, घाघरा, पुनपुन, चंदन, महानंदा, गंगा, सोन, किउल जैसी 12 नदियों पर 3789 किलोमीटर से अधिक लंबाई में तटबंध भी बनाए गए हैं और लगभग 40 लाख हेक्टेयर बाढ़ से सुरक्षित करने का दावा भी किया जाता रहा है.
बाढ़ से मुंगेर में भी भारी तबाही होती है. इस साल की बात करें तो हजारों एकड़ में दियारा का इलाका पानी में डूब चुका है. एनडीआरएफ लोगों को सुरक्षित स्थान पर निकालने में लगा है. गंगा खतरे के निशान से 20 सेंटीमीटर ऊपर बह रही है. इस साल भी यहां 2 दर्जन से अधिक पंचायत बुरी तरह प्रभावित हैं.
लगभग हजारों एकड़ दियारा की भूमि जलमग्न हो गई है. 1000 से अधिक गरीबों का आशियाना डूब चुका है. एनडीआरएफ द्वारा लगतार राहत और बचाव कार्य युद्ध स्तर पर चल रहा है. मुंगेर जिले के बरियारपुर प्रखंड के सभी 11 पंचायत ,सदर प्रखंड के 6 पंचायत और जमालपुर प्रखंड के 3 पंचायत बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हैं. इन पंचायतों में लगभग 1000 से अधिक मकानों में बाढ़ का पानी घुस गया है.
हालांकि बिहार में कुल बाढ़ प्रभावित इलाका 68 लाख हेक्टेयर से अधिक है. इतने तटबंध के बाद भी बाढ़ से बिहार के लोगों को निजात नहीं मिल पाया है. लेकिन अब सरकार छोटी नदियों को जोड़ कर बाढ़ से निजात दिलाने की तैयारी कर रही है.
साल 2020 में बिहार के 12 जिले बुरी तरह बाढ़ की चपेट में रहे और 23 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हुए.वहीं साल 2013 के जुलाई महीने में आई बाढ़ में 200 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी. बाढ़ का असर राज्य के 20 जिलों पड़ा था और लगभग 50 लाख लोग प्रभावित हुए थे. वहीं बात साल 2011 की करें तो 25 जिलों बाढ़ से प्रभावित हुए थे. 71.43 लाख लोगों के जनजीवन पर असर पड़ा था. बाढ़ से 249 लोगों ने जान गंवाई थी. 2008 में बाढ़ का मंजर और भी भयावह था. 18 जिले बाढ़ की चपेट में आए. इसकी वजह से करीब 50 लाख लोग प्रभावित हुए और 258 लोगों की जान गई.
हर साल की तरह इस साल भी बिहार में बाढ़ ने दस्तक दे दी है. सवाल ये उठता है कि आखिर बाढ़ से कब तक बिहार की एक बड़ी आबादी जूझती रहेगी. हर साल लोगों को उम्मीद बंधती है कि बाढ़ की समस्या से निजात मिलेगी और जिंदगी की जंग खत्म होगी. लेकिन ऐसा हो नहीं पाता है. अब बाढ़ से बचाव के लिए छोटी नदियों को जोड़ने पर जल संसाधन विभाग विचार कर रहा है लेकिन इस पर काम कब तक पूरा होता है इसका इंतजार किया जा रहा है लेकिन तब तक हर साल बाढ़ से लोगों की जंग जारी रहेगी.