नई दिल्ली: पाकिस्तान में विपक्षी दलों (opposition parties in pakistan) द्वारा पीएम इमरान खान (PM Imran Khan) को घेरने और अंततः उन्हें सत्ता से बाहर करने के लिए खेला गया राजनीतिक जुआ स्पष्ट होता जा रहा है. अब यह खेल सत्ताधारी और विपक्षी गठबंधनों के बीच राजनीतिक पहेली बन गया है.
ईटीवी भारत से बात करते हुए इस्लामाबाद के एक प्रमुख पत्रकार ने बताया कि पाकिस्तान की पीपुल्स पार्टी (Peoples Party of Pakistan) के आसिफ अली जरदारी, पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) के शहबाज शरीफ और जमीयत उलेमा-ए के फजल-उर-रहमान विपक्ष के प्रमुख चेहरे हैं. वर्तमान में जब इस्लामाबाद में गहरी उथल-पुथल मची है, चाहे वह अर्थव्यवस्था में हो या सामाजिक या राजनीतिक हो या फिर सुरक्षा मामले ही क्यों ने हों, पीएम खान की सत्ता का समर्थन लगातार कम होता जा रहा है.
यही कारण है कि विपक्ष उनको प्रधानमंत्रित्व से बेदखल करने के लिए भारी जनमत के साथ सामने आ गया है. लेकिन प्रतिष्ठान (सेना) अभी लोकतांत्रिक तरीके से सोच रहा है और उसका विचार है कि उन्हें कम से कम अपना कार्यकाल पूरा करना चाहिए. यह पूछे जाने पर कि पीएम खान के अपदस्थ होने पर आदर्श उम्मीदवार कौन बन सकता है? इस्लामाबाद के पत्रकार ने जवाब दिया कि यह अनुमान लगाना आसान नहीं है कि अगला प्रधानमंत्री कौन बनेगा. लेकिन असली सवाल यह है कि पीएम खान पहले ही 3.5 साल पूरे कर चुके हैं. उनके कार्यकाल और उनकी नीतियों और कार्यों ने देश को तबाह कर दिया है. जब उनके कार्यकाल में केवल 15 महीने बचे हों और उन्हें हटा दिया जाता है तो उनके उत्तराधिकारी को संतुलन बनाने के लिए अपनी कई नीतियों को बदलना होगा जो 15-18 महीनों की अवधि में बेहद असंभव है.
पाकिस्तान में हवा का रुख क्या है? इस पर टिप्पणी करते हुए पाकिस्तानी पत्रकार नुसरत अमीन, जो कि जियो टीवी के लिए काम करती हैं, ने जवाब दिया कि राजनीतिक हलकों में क्या हो रहा है, इसके बारे में मुझे ज्यादा जानकारी नहीं है. न ही मैं भविष्य की भविष्यवाणी कर सकती हूं. लेकिन मुझे इतना जरूर पता है कि हामिद मीर, जियो न्यूज में वापस आ गये हैं और लगभग एक साल बाद अपना पहला शो कर रहे हैं. यह बहुत बड़ा बदलाव है.
पीएम खान का निष्कासन और नई दिल्ली पर प्रभाव
पीएम इमरान खान के प्रीमियर के तहत भारत-पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय संबंधों को बड़ा झटका लगा है. जबकि इस्लामाबाद में धार्मिक अतिवाद और कट्टरवाद का पैमाना बढ़ता जा रहा है. जो वास्तव में न केवल भारत के लिए बल्कि पूरे उपमहाद्वीप के लिए एक सुरक्षा खतरा है. पीएम खान नई दिल्ली को दोष देना जारी रखे हुए हैं और कभी भी कश्मीर मुद्दे को उठाने का मौका नहीं छोड़ते हैं. उसके देश में आतंकी संगठन खुलेआम घूम रहे हैं.
ईटीवी भारत से बात करते हुए ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) के सीनियर फेलो सुशांत सरीन ने कहा कि पीएम इमरान खान के कार्यकाल में भारत-पाक के बीच द्विपक्षीय संबंध खराब हुए हैं. पिछले साल एलओसी पर संघर्ष विराम हुआ था जिसका श्रेय पिछले दरवाजे की बातचीत को जाता है. जो एक तरह से संबंधों को सुचारू करने की ओर इशारा करता है. मैं केवल इतना कह सकता हूं कि निकट भविष्य में संबंधों में मधुरता की कोई संभावना नहीं है. हां, केवल यह अनुमान लगाया जा सकता है कि उनके जाने से एक तरह से पिछले दरवाजे की बातचीत की शुरुआत कुछ हद तक ही हो सकती है.
सरीन ने कहा कि इन संकटों को सादे लेंस से देखना असंभव है. यहां कुछ भी ब्लैक एंड व्हाइट नहीं है. किसी न किसी को अपने क्षितिज का विस्तार करना होगा. सरीन कहते हैं कि अभी मुझे जो महसूस हो रहा है, वह यह है कि पीएम खान को हटाने से भारत-पाक संबंधों में कुछ हद तक ही सुधार हो सकता है.
भारत के लिए सुरक्षा खतरे
अफगानिस्तान में पश्चिम समर्थित अशरफ गनी सरकार के पतन के बाद तालिबान 2.0 के फिर से उभरने से दक्षिण एशिया को अब इस्लामी आतंकवाद से गहरे खतरे का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें नई दिल्ली अपवाद नहीं है. इस सवाल पर कि तालिबान के फिर से उभरने से नई दिल्ली के सुरक्षा तंत्र पर क्या असर पड़ेगा? सुशांत सरीन ने जवाब दिया कि फिलहाल इसका सीधा असर पाकिस्तान पर पड़ रहा है. तालिबान 2.0 के बाद से आतंकवादी हमले तेज हो गए हैं.
उन्होंने कहा कि यह कभी भी गुप्त नहीं रहा कि पाकिस्तान की सहमति के बाद ही वहां से आतंकवादी हमारी धरती पर प्रवेश करते हैं. इसलिए यह दर्शाता है कि हमारी पहली समस्या पाकिस्तान के साथ है. दूसरे, इतिहास ने हमें सिखाया है कि जब भी अफगानिस्तान उथल-पुथल का सामना करता है या अस्थिर होता है तो यह निश्चित रूप से भारत को प्रभावित करता है. भारत में इस्लामी आतंकवाद और उग्रवाद की शुरूआत अफगानिस्तान में 1979 की स्थिति से लगाया जा सकता है.