अल्मोड़ा : अमिताभ बच्चन को उनकी मां तेजी बच्चन मुन्ना कहकर बुलाती थीं. पिता ने उनका नाम 'इंकलाब' रखा था. एक बार सुमित्रा नंदन पंत हरिवंश राय बच्चन के घर गए. उन्होंने अमिताभ को देखकर पूछा इसका नाम क्या है. हरिवंश राय बच्चन ने कहा 'इंकलाब'. सुमित्रा नंदन पंत को ये नाम कुछ जमा नहीं. उन्होंने बच्चन से बच्चे का नाम 'अमिताभ' रखने को कहा. तब से मां के 'मुन्ना' और पिता के 'इंकलाब' का नाम अमिताभ हो गया. बाद की कहानी पूरी दुनिया जानती है. ठीक दीवार फिल्म के उस डायलॉग की तरह, जिसमें अमिताभ कहते हैं- 'जहां हम खड़े हो जाते हैं, लाइन वहीं से शुरू हो जाती है' की तरह.
पंत का गांव है बदहाल
उन्हीं सुमित्रा नंदन पंत का घर और गांव आज बदहाल है. देश में हिंदी साहित्य में पहला ज्ञानपीठ पुस्कार पाने वाले नामचीन कवि सुमित्रा नंदन पंत का पैतृक गांव आज सुविधाओं से महरूम है. सरकारों की बेरुखी के कारण हालात यह हैं कि इतने बड़े साहित्यकार का पैतृक घर भी आज बदहाली के आंसू बहा रहा है.
जिला मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूर सोमेश्वर-कौसानी मार्ग पर स्थित स्यूनाराकोट गांव प्रकृति के सुकुमार व छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत का पैतृक गांव है. यहां मौजूद उनका पैतृक घर वर्तमान में झाड़ियों से घिरा पूरी तरह बंजर अवस्था में है.
डोली के सहारे हैं मरीज
इतने नामचीन कवि के इस गांव में आज तक विकास की कोई किरण नहीं पहुंच पायी है. यही कारण है कि ममरछीना कस्बे से इस गांव को जाने वाली सड़क बदहाल पड़ी हुई है. इसकी सुध लेने वाला तक कोई नहीं है. गांव में कोई बीमार होने पर ग्रामीण मरीज को डोली के सहारे मुख्य सड़क तक पहुंचाते हैं. सरकारों की गांव के प्रति इस बेरुखी के चलते गांव वासी काफी क्षुब्ध हैं. मजेदार बात यह है कि अल्मोड़ा संसदीय सीट से पहले सांसद बने डीडी पंत का पैतृक गांव भी यही है.
हिंदी का पहला ज्ञानपीठ पुरस्कार पंत को मिला था
स्यूनाराकोट के निवासी जो वर्तमान में देहरादून में रहते हैं राकेश पंत का कहना है कि प्रसिद्ध छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत को पूरा देश जानता है. उन्हें हिंदी साहित्य में 1968 में पहला ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला था. तब से कितनी सरकारें आयीं कितनी गयीं लेकिन आज तक उनके गांव के साथ ही उनके पैतृक घर की किसी ने सुध नहीं ली.
गांव से लोगों ने किया पलायन
आज उनका पैतृक घर बदहाल पड़ा है, जबकि इस घर को एक संग्रहालय के रूप में विकसित किया जाना चाहिए था. वहीं ग्रामीण जगदीश सिंह का कहना है कि इतने बड़े साहित्यकार के गांव की उपेक्षा की गई है. आज गांव मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जी रहा है. यहां शिक्षा, स्वास्थ्य समेत मूलभूत सुविधाओं का अभाव है. उनका कहना है कि सुविधाओं की कमी के कारण कई लोग इस गांव से पलायन कर चुके हैं. यहां खेत बंजर पड़े हुए हैं.
वहीं ग्रामीण आनंद राम का कहना है इस क्षेत्र के नेता सिर्फ चुनाव के दौरान ही वोट मांगने गांव आते हैं. उसके बाद गायब हो जाते हैं. इस कारण आज तक गांव में विकास नहीं हो पाया है.
ग्रामीण चित्रा पंत का कहना है कि यहां सबसे बड़ी समस्या यहां स्वास्थ्य की है. एक तो इस मार्ग को आने वाली सड़क बदहाल है. वहीं नजदीक में कोई अस्पताल नहीं होने के कारण उन्हें मरीज को डोली के सहारे पहले मुख्य सड़क तक ले जाना पड़ता है. इसके बाद वहां से उसे जिला मुख्यालय अल्मोड़ा ले जाना पड़ता है.
कौन थे सुमित्रानंदन पंत
सुमित्रा नंदन पंत का जन्म 20 मई 1900 को अल्मोड़ा जिले के कौसानी के पास स्यूनाराकोट गांव में हुआ था. जन्म के छह घंटे बाद ही मां का देहांत हो गया था. इनकी दादी ने इनका लालन-पालन किया. दादी ने इनका नाम गुसाईं दत्त रखा. सुमित्रा नंदन पंत की प्रारंभिक शिक्षा कौसानी गांव के स्कूल में हुई. फिर वो वाराणसी गए. यहां जयनारायण हाईस्कूल में शिक्षा प्राप्त की. इसके बाद इलाहाबाद के म्योर सेंट्रल कॉलेज से इंटर किया. 1921 में असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए.
प्रसिद्ध छायावादी कवि थे पंत
हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार स्तंभों में से ये एक हैं. सुमित्रानंदन पंत नये युग के प्रवर्तक के रूप में आधुनिक हिन्दी साहित्य में उदित हुए. पंत ऐसे साहित्यकारों में गिने जाते हैं, जिनका प्रकृति चित्रण समकालीन कवियों में सबसे बेहतरीन था.
आकर्षक व्यक्तित्व के धनी सुमित्रानंदन पंत के बारे में साहित्यकार राजेन्द्र यादव ने कहा था कि 'पंत अंग्रेज़ी के रूमानी कवियों जैसी वेशभूषा में रहकर प्रकृति केन्द्रित साहित्य लिखते थे.'
पंत ने महात्मा गाँधी और कार्ल मार्क्स से प्रभावित होकर उन पर रचनाएं लिख डालीं. हिंदी साहित्य के विलियम वर्ड्सवर्थ कहे जाने वाले इस कवि ने महानायक अमिताभ बच्चन को ‘अमिताभ’ नाम दिया था.
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पद्मभूषण, ज्ञानपीठ पुरस्कार और साहित्य अकादमी पुरस्कारों से नवाजे जा चुके पंत की रचनाओं में समाज के यथार्थ के साथ-साथ प्रकृति और मनुष्य की सत्ता के बीच टकराव भी होता था. हरिवंश राय ‘बच्चन’ और श्री अरविंदो के साथ उनकी ज़िंदगी के अच्छे दिन गुजरे. आधी सदी से भी अधिक लंबे उनके रचनाकाल में आधुनिक हिंदी कविता का एक पूरा युग समाया हुआ है.