नई दिल्ली: चारधाम राजमार्ग विस्तार मामले को लेकर आज भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. इसके बाद उच्चतम न्यायालय ने सड़कों के चौड़ीकरण पर केंद्र के आवेदन पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.
आज सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि, 'आज हम उस स्थिति का सामना कर रहे हैं जहां देश की रक्षा करनी पड़ती है. हम एक बहुत ही कमजोर स्थिति में हैं. हमें देश की रक्षा करनी है और यह सुनिश्चित करना है कि हमारी सेना के लिए जो भी सुविधाएं उपलब्ध हो सकती हैं उन्हें दी जाएं जैसे हिमालयी क्षेत्रों में सड़कें.'
जिरह के दौरान वेणुगोपाल ने कहा कि, 'हम ये नहीं कह सकते कि हम केवल लड़ने तक सीमित हैं. चाहे जो भी स्थिति हो, भूस्खलन हो, भारी बारिश हो, बर्फबारी हो, ये सेना की लड़ाई होती है और इसलिए यह आवश्यक है. पहाड़ों पर भूस्खलन का खतरा है. इसलिए ऐसी स्थिति उत्पन्न होने पर हम क्या करेंगे और खाद्य सामग्री आदि की आपूर्ति करने के लिए सड़कों की आवश्यकता है'.
देश की सुरक्षा को जरूरी बताया था: इससे पहले मंगलवार को हुई सुनवाई में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि वो इस तथ्य की अनदेखी नहीं कर सकता कि एक शत्रु है जिसने सीमा तक बुनियादी ढांचा विकसित कर लिया है और सेना को सीमा तक बेहतर सड़कों की जरूरत है जहां 1962 के युद्ध के बाद से कोई व्यापक परिवर्तन नहीं हुआ है. उच्चतम न्यायालय ने भारत-चीन सीमा गतिरोध का जिक्र करते हुए आश्चर्य जताया कि क्या कोई संवैधानिक अदालत देश की रक्षा के लिए सेना की आवश्यकता को दरकिनार कर कह सकती है कि पर्यावरण की सुरक्षा रक्षा जरूरतों पर भारी है.
उत्तराखंड में चारधाम राजमार्ग परियोजना: सर्वोच्च अदालत 8 सितंबर, 2020 के आदेश में संशोधन के अनुरोध वाली केंद्र की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय को महत्वाकांक्षी चारधाम राजमार्ग परियोजना पर 2018 के परिपत्र का पालन करने के लिए का गया है. यह सड़क चीन सीमा तक जाती है. इस रणनीतिक 900 किलोमीटर की परियोजना का मकसद उत्तराखंड के चार पवित्र शहरों-यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ को हर मौसम में चालू रहने वाली सड़क सुविधा प्रदान करना है.
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ ने कहा कि, हम इस तथ्य से इनकार नहीं कर सकते कि इतनी ऊंचाई पर देश की सुरक्षा दांव पर है. क्या भारत के उच्चतम न्यायालय जैसा सर्वोच्च संवैधानिक न्यायालय हाल की कुछ घटनाओं को देखते हुए सेना की जरूरतों को दरकिनार कर सकता है? क्या हम कह सकते हैं कि पर्यावरण संरक्षण देश की रक्षा जरूरतों से ऊपर होगा? या हमें यह कहना चाहिए कि रक्षा चिंताओं का ध्यान इस तरह रखा जाना चाहिए ताकि आगे कोई पर्यावरणीय क्षति न हो.
सर्वोच्च अदालत ने कहा सड़कों को अपग्रेड करने की जरूरत: पीठ ने कहा था कि, सतत विकास होना चाहिए और इसे पर्यावरण के साथ संतुलित किया जाना चाहिए क्योंकि अदालत इस तथ्य से अनजान नहीं रह सकती कि इन सड़कों को ‘अपग्रेड’ करने की जरूरत है. इस दौरान न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा था कि, 'मैं पर्वतारोहण के लिए कई बार हिमालय गया हूं. मैंने उन सड़कों को देखा है. ये सड़कें ऐसी हैं कि कोई भी दो वाहन एक साथ नहीं गुजर सकते हैं. ये सड़कें ऐसी हैं कि उन्हें सेना के भारी वाहनों की आवाजाही के लिए उन्नयन की आवश्यकता है. 1962 के युद्ध के बाद से कोई व्यापक परिवर्तन नहीं हुआ है'.
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पीठ ने एक एनजीओ के वकील से कहा कि सरकार पहाड़ में आठ-लेन या 12-लेन का राजमार्ग बनाने के लिए अनुमति नहीं मांग रही है, बल्कि केवल दो-लेन का राजमार्ग बनाने की मांग कर रही है.