पटनाः विवाद बहादुर नाम से पहचान बनाने वाले राजद विधायक फतेह बहादुर सिंह एक बार फिर हिन्दू देवी-देवताओं के बारे में विवादित बयान दिया है. सोमवार को शीतकालीन सत्र में शामिल होने आए विधायक ने मीडिया को बयान देते हुए कहा कि भगवान राम और उनके सभी पात्र काल्पनिक हैं. इस दौरान विधायक ने सुप्रीम कोर्ट और ललई यादव का भी हवाला दिया.
"ललई यादव जी की सच्ची रामायण है. उन्होंने रामायण और उनके सभी पात्र को काल्पनिक बताया है. जिस बात को 1976 में सुप्रीम कोर्ट ने मान लिया, तो हमें मानने में क्या दिक्कत है." -फतेह बहादुर सिंह, राजद विधायक
'मेरे बयान से बिचौलिया को दिक्कत': जब मीडिया ने विधायक से पूछा कि आपके नेता भी पूजा पाठ करते हैं? उन्होंने कहा कि अगर भगवान हैं तो उनके और भक्त के बीच बिचौलिया का क्या काम है. भक्त भगवान की डायरेक्ट पूजा क्यों नहीं कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि उनके बयान से भक्त को नहीं बल्कि बीच वाले बिचौलिया को दिक्कत हो रही है.
"भगवान हैं तो उनके और जनता के बीच किसी को रहना चाहिए क्या? क्षेत्र में लोग कह रहे हैं कि बिचौलिया की वजह से धांधली हो रही है. तो भगवान और जनता के बीच में बिचौलिये की क्या जरूरत है भाई? जिनको डायरेक्ट पूजा करना होगा करेंगे. इससे केवल विचौलिया को तकलीफ हो रही है." -फतेह बहादुर सिंह, राजद विधायक
'लालू यादव से बड़ा कोई देवता नहीं': जब मीडिया ने पूछा कि आप पूजा पाठ करते हैं या नहीं? इसपर विधायक ने कहा कि 'मैं भी पूजा पाठ करता हूं. जो हमें सबकुछ देता है, उन माता-पिता की पूजा करता हूं. उन्होंने हमें ज्ञान दिया. सावित्री बाई ने महिला को शिक्षा का अधिकार और बाबा भीमराव अंबेडकर ने संवैधानिक अधिकार और लालू प्रसाद यादव ने बिहार के गरीब, दलित और पिछड़ों को जुबांन दिया. इससे बड़ा कोई देवता नहीं है.
'ब्राह्मन पांखडी हैं': हालांकि इस दौरान विधायक ने यह भी कहा कि मैं पूजा करने मना नहीं कर रहा हूं, लेकिन जो फालतू खर्च किया जा रहा है, वह गलत है. उन्होंने भगवान और भक्त के बीच बिचौलिया के सवाल पर ब्राह्मन को भी नहीं छोड़ा. कहा कि पूजा कराने वाले ब्राह्मन पांखडी, अंधविश्वास फैलाने वाले होते हैं.
कौन हैं ललई यादव: ललई सिंह यादव एक लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता थे, उत्तर प्रदेश के रहने वाले लेखक ललई यादव ने 1968 में ईवी रामासामी नायकर 'पेरियार' की अंग्रेजी पुस्तक 'रामायण : अ ट्रू रीडिंग' का हिन्दी रूपांतरण 'सच्ची रामायण' प्रकाशित किया था. जिसमें भगवान राम को काल्पनिक बताया था. इस पर यूपी सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया और किताब को जब्त कर लिया था. इसके विरोध में लेखक ललई यादव पहले इलाहाबाद कोर्ट इसके बाद सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए थे.
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाईः सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर तीन जजों की खंडपीठ ने सुनवाई की. बेंच के अध्यक्ष न्यायमूर्ति वीआर कृष्णा अय्यर सहित तीन जजों ने 16 सितंबर 1976 को राज्य सरकार की अपील को खारिज करते हुए ललई यादव के पक्ष में फैसला सुनाया. कोर्ट ने सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंध को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन बताया था.