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रेप पीड़ित महिला ने की भ्रूण हटाने की मांग, एम्स को मेडिकल बोर्ड गठित करने का आदेश

दिल्ली हाईकोर्ट ने रेप की शिकार एक महिला के 20 हफ्ते के भ्रूण को हटाने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई की. इस दौरान कोर्ट ने दिल्ली एम्स को मेडिकल बोर्ड गठित करने का निर्देश दिया. इसके साथ ही एम्स से 24 सितंबर यानी कल तक रिपोर्ट दाखिल करने को भी कहा है.

दिल्ली हाईकोर्ट
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Published : Sep 23, 2021, 8:13 PM IST

नई दिल्ली : दिल्ली हाईकोर्ट ने दुष्कर्म की शिकार एक महिला के 20 हफ्ते के भ्रूण को हटाने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए एम्स अस्पताल को मेडिकल बोर्ड गठित करने का निर्देश दिया है. जस्टिस मुक्ता गुप्ता की बेंच ने एम्स अस्पताल को निर्देश दिया कि वो पीड़िता की कल यानी 24 सितंबर तक जांच कर रिपोर्ट दाखिल करे. इस मामले की अगली सुनवाई 27 सितंबर को होगी.

महिला की ओर से वकील अनवेश मधुकर और प्राची निर्वाण ने कोर्ट से कहा कि महिला के साथ रेप की शिकायत 23 जून को गोविंदपुरी थाने में की गई थी. जब महिला को पता चला कि वह गर्भवती है तो उसने भ्रूण को हटाना चाहा. इसके लिए उसने एम्स अस्पताल का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन एम्स अस्पताल ने भ्रूण को हटाने से इनकार कर दिया.

कोर्ट ने कहा कि महिला का भ्रूण आज की तिथि में 20 हफ्ते का है. इसलिए इस पर तत्काल कार्रवाई की जरूरत है ताकि पीड़िता भ्रूण हटाने के अपने अधिकार का इस्तेमाल कर सके. उसके बाद कोर्ट ने एम्स अस्पताल को निर्देश दिया कि 24 सितंबर तक जांच करें कि भ्रूण हटाने से महिला को कोई नुकसान तो नहीं होगा. कोर्ट ने एम्स अस्पताल को जांच रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया.

यह भी पढ़ें- अवैध अतिक्रमण हटाने के दौरान हिंसा, दो की मौत, 10 से अधिक पुलिसकर्मी घायल

बता दें कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) एक्ट की धारा 3(2) के तहत 20 हफ्ते से ज्यादा के भ्रूण को हटाने की अनुमति नहीं है. 12 से 20 हफ्ते के भ्रूण को तभी हटाया जा सकता है जब दो डॉक्टरों का पैनल इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि भ्रूण महिला के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकता है.

नई दिल्ली : दिल्ली हाईकोर्ट ने दुष्कर्म की शिकार एक महिला के 20 हफ्ते के भ्रूण को हटाने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए एम्स अस्पताल को मेडिकल बोर्ड गठित करने का निर्देश दिया है. जस्टिस मुक्ता गुप्ता की बेंच ने एम्स अस्पताल को निर्देश दिया कि वो पीड़िता की कल यानी 24 सितंबर तक जांच कर रिपोर्ट दाखिल करे. इस मामले की अगली सुनवाई 27 सितंबर को होगी.

महिला की ओर से वकील अनवेश मधुकर और प्राची निर्वाण ने कोर्ट से कहा कि महिला के साथ रेप की शिकायत 23 जून को गोविंदपुरी थाने में की गई थी. जब महिला को पता चला कि वह गर्भवती है तो उसने भ्रूण को हटाना चाहा. इसके लिए उसने एम्स अस्पताल का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन एम्स अस्पताल ने भ्रूण को हटाने से इनकार कर दिया.

कोर्ट ने कहा कि महिला का भ्रूण आज की तिथि में 20 हफ्ते का है. इसलिए इस पर तत्काल कार्रवाई की जरूरत है ताकि पीड़िता भ्रूण हटाने के अपने अधिकार का इस्तेमाल कर सके. उसके बाद कोर्ट ने एम्स अस्पताल को निर्देश दिया कि 24 सितंबर तक जांच करें कि भ्रूण हटाने से महिला को कोई नुकसान तो नहीं होगा. कोर्ट ने एम्स अस्पताल को जांच रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया.

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बता दें कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) एक्ट की धारा 3(2) के तहत 20 हफ्ते से ज्यादा के भ्रूण को हटाने की अनुमति नहीं है. 12 से 20 हफ्ते के भ्रूण को तभी हटाया जा सकता है जब दो डॉक्टरों का पैनल इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि भ्रूण महिला के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकता है.

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