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OBC-EBC आयोग बनाएगी नीतीश सरकार, हाईकोर्ट से पुनर्विचार याचिका वापस लिया - बिहार नगर निकाय चुनाव 2022

बिहार नगर निकाय चुनाव 2022 का रास्ता साफ हो गयी है. चीफ जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने राज्य सरकार और अन्य की पुनर्विचार याचिकाओं की सुनवाई की. राज्य सरकार ने कोर्ट को बताया कि अति पिछडे वर्ग के राजनीतिक पिछड़ेपन के लिए एक विशेष कमीशन का गठन किया गया है.

Patna High Court Etv Bharat
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Published : Oct 19, 2022, 6:29 PM IST

पटना: राज्य में नगर निकाय के चुनाव (Bihar Nagar Nikay Chunav 2022) का रास्ता अति पिछडों के आरक्षण के साथ साफ कर दिया गया है. चीफ जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने राज्य सरकार और अन्य की पुनर्विचार याचिकाओं की सुनवाई (review petition of bihar government) की. राज्य सरकार ने पटना हाई कोर्ट (Patna High Court) को बताया कि अति पिछडे वर्ग के राजनीतिक पिछड़ेपन के लिए एक विशेष कमीशन का गठन किया गया है. ये कमीशन राज्य में अति पिछड़े वर्ग में राजनीतिक पिछड़ेपन पर अध्ययन कर राज्य सरकार को रिपोर्ट सौपेंगी. इसके बाद राज्य सरकार के रिपोर्ट के आधार पर राज्य चुनाव आयोग राज्य में नगर निकाय चुनाव कराएगा. कोर्ट ने इसके साथ ही राज्य सरकार और अन्य द्वारा दायर पुनर्विचार याचिकाओं को निष्पादित कर दिया है.

ये भी पढ़ें: 'नायक नहीं खलनायक हैं नीतीश कुमार' ..नगर निकाय में पिछड़ा आरक्षण पर बोले सम्राट चौधरी

''राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि पहले भी ईबीसी आयोग की तरफ से जांच की जा चुकी है. फिर भी ईबीसी कमीशन को राज्य सरकार ईबीसी के पॉलिटिकल बैकवॉर्डनेस को देखने के लिए डेडिकेटेड कमीशन के रूप में रेफरेंस करेगी. वो ईबीसी कमीशन रेफरेंस के उपरांत देखेगी कि सुप्रीम कोर्ट के द्वारा जो आदेश आए हैं, उनके अनुकूल ये सारे मापदंड पूर्ण करते हैं. उसके उपरांत ईबीसी कमीशन एक रिपोर्ट समिट करेगी. उस रिपोर्ट के आलोक में राज्य चुनाव आयोग इलेक्शन कराएगा. राज्य चुनाव आयोग की तरफ से भी वरीय अधिवक्ता ने अपना पक्ष रखा. उन्होंने कहा कि ईबीसी कमीशन की ओर से जो रिपोर्ट आएगी उस आधार पर चुनाव होगा. समय सीमा को लेकर कोर्ट ने कोई निर्देश नहीं दिया है. हालांकि ये साफ हो गया कि नगर निकाय चुनाव में अति पिछड़ों को जो आरक्षण देना था, वो आरक्षण के साथ ही चुनाव होगा.''- ललित किशोर, एडवोकेट जनरल, बिहार

आरक्षण से यादव और कुशवाहा को किया गया था बाहरः पटना हाईकोर्ट में नगर निकाय चुनाव को लेकर याचिका दायर करने वाले सुनील कुमार राय के साथ 19 याचिकाकर्ता थे. इसमें से कुल 15 मामलों की सुनवाई एक साथ की गई. मुख्य याचिकाकर्ता यादव जाति से आते हैं, क्योंकि नगर निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण में यादव और कुशवाहा को बाहर कर दिया गया था. इसलिए इस वर्ग के उम्मीदवार नाराज थे और चाहते थे कि उन्हें भी आरक्षण मिले. अब यदि बिना आरक्षण का चुनाव होता है तो इन्हें भी उम्मीदवार बनने का मौका मिल जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश ट्रिपल टेस्ट की अनदेखी : बिहार में अभी 50 फीसदी के आसपास ही आरक्षण दिया गया है. उसमें भी 50 फीसदी महिलाओं को आरक्षण दिया गया है, लेकिन पिछड़ों को जो आरक्षण दिया गया उसमें सुप्रीम कोर्ट के आदेश ट्रिपल टेस्ट की अनदेखी की गई. सुप्रीम कोर्ट ने आयोग बनाकर अति पिछड़ों के ट्रिपल टेस्ट करने का फैसला 2021 में ही दिया था और उस आदेश का पालन नीतीश सरकार ने नहीं की और उसके कारण पटना हाईकोर्ट ने नगर निकाय चुनाव पर रोक लगा दी थी.

सुशील मोदी ने नीतीश कुमार को घेरा : बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और बीजेपी सांसद सुशील मोदी ने हाईकोर्ट के फैसले पर नीतीश सरकार को घेरा. सुशील मोदी ने उदाहरण देते हुए अपशब्द का भी इस्तेमाल किया. उन्होंने कहा, ''नीतीश कुमार को मुंहकी खानी पड़ी. कोर्ट के सामने आत्म समर्पण करना पड़ा. यही निर्णय पहले कर दिया होता तो यह फजीहत नहीं होती. नीतीश कुमार की हालत उस पठान जैसी है, जिसने 40 #@!%&# भी खाए और 40 प्याज भी खाया.''

2010 में सुप्रीम कोर्ट ने तय किया था मानक : दिसंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्य सरकार तय मानकों को पूरा न होने तक स्थानीय निकाय चुनाव में आरक्षण की अनुमति तक नहीं दी जा सकती है. चुनाव के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में मानक तय किए थे. सुप्रीम कोर्ट ने तीन जांच के मानक (Supreme Court On OBC Reservation) के तहत राज्य को प्रत्येक स्थानीय निकाय में ओबीसी के पिछड़ेपन पर आंकड़े जुटाने के लिए एक विशेष आयोग गठित करने और आयोग की सिफारिशों के आलोक में प्रत्येक स्थानीय निकाय में आरक्षण का अनुपात तय करने की जरूरत बताई. साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, और ओबीसी के लिए इस तरह के आरक्षण की सीमा में कुल सीटों की संख्या के 50 प्रतिशत को पार नहीं कर पाये.

क्या कहा था सुप्रीम कोर्ट ने: सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जब तक ‘तीन जांच' की अर्हता को राज्य सरकार पूरी नहीं करती है. तबतक राज्य के निकाय चुनाव में ओबीसी सीट को सामान्य श्रेणी की सीट ही मानकर फिर से बताया जाये. जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की इस बात का जिक्र किया कि अगर नगर निकाय चुनाव 10 अक्टूबर 2022 को है और हाईकोर्ट इस याचिका पर पहले ही सुनवाई कर देता है, तो यह नगर निकाय चुनाव के उम्मीदवारों के लिए सही होगा. हाईकोर्ट के बेंच की पीठ ने कहा है कि ‘मुख्य न्यायाधीश 23 सितंबर 2022 को समाप्त हो रहे मौजूदा सप्ताह के दौरान सुविधानुसार याचिका की सुनवाई कर सकते हैं'.

पटना: राज्य में नगर निकाय के चुनाव (Bihar Nagar Nikay Chunav 2022) का रास्ता अति पिछडों के आरक्षण के साथ साफ कर दिया गया है. चीफ जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने राज्य सरकार और अन्य की पुनर्विचार याचिकाओं की सुनवाई (review petition of bihar government) की. राज्य सरकार ने पटना हाई कोर्ट (Patna High Court) को बताया कि अति पिछडे वर्ग के राजनीतिक पिछड़ेपन के लिए एक विशेष कमीशन का गठन किया गया है. ये कमीशन राज्य में अति पिछड़े वर्ग में राजनीतिक पिछड़ेपन पर अध्ययन कर राज्य सरकार को रिपोर्ट सौपेंगी. इसके बाद राज्य सरकार के रिपोर्ट के आधार पर राज्य चुनाव आयोग राज्य में नगर निकाय चुनाव कराएगा. कोर्ट ने इसके साथ ही राज्य सरकार और अन्य द्वारा दायर पुनर्विचार याचिकाओं को निष्पादित कर दिया है.

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''राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि पहले भी ईबीसी आयोग की तरफ से जांच की जा चुकी है. फिर भी ईबीसी कमीशन को राज्य सरकार ईबीसी के पॉलिटिकल बैकवॉर्डनेस को देखने के लिए डेडिकेटेड कमीशन के रूप में रेफरेंस करेगी. वो ईबीसी कमीशन रेफरेंस के उपरांत देखेगी कि सुप्रीम कोर्ट के द्वारा जो आदेश आए हैं, उनके अनुकूल ये सारे मापदंड पूर्ण करते हैं. उसके उपरांत ईबीसी कमीशन एक रिपोर्ट समिट करेगी. उस रिपोर्ट के आलोक में राज्य चुनाव आयोग इलेक्शन कराएगा. राज्य चुनाव आयोग की तरफ से भी वरीय अधिवक्ता ने अपना पक्ष रखा. उन्होंने कहा कि ईबीसी कमीशन की ओर से जो रिपोर्ट आएगी उस आधार पर चुनाव होगा. समय सीमा को लेकर कोर्ट ने कोई निर्देश नहीं दिया है. हालांकि ये साफ हो गया कि नगर निकाय चुनाव में अति पिछड़ों को जो आरक्षण देना था, वो आरक्षण के साथ ही चुनाव होगा.''- ललित किशोर, एडवोकेट जनरल, बिहार

आरक्षण से यादव और कुशवाहा को किया गया था बाहरः पटना हाईकोर्ट में नगर निकाय चुनाव को लेकर याचिका दायर करने वाले सुनील कुमार राय के साथ 19 याचिकाकर्ता थे. इसमें से कुल 15 मामलों की सुनवाई एक साथ की गई. मुख्य याचिकाकर्ता यादव जाति से आते हैं, क्योंकि नगर निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण में यादव और कुशवाहा को बाहर कर दिया गया था. इसलिए इस वर्ग के उम्मीदवार नाराज थे और चाहते थे कि उन्हें भी आरक्षण मिले. अब यदि बिना आरक्षण का चुनाव होता है तो इन्हें भी उम्मीदवार बनने का मौका मिल जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश ट्रिपल टेस्ट की अनदेखी : बिहार में अभी 50 फीसदी के आसपास ही आरक्षण दिया गया है. उसमें भी 50 फीसदी महिलाओं को आरक्षण दिया गया है, लेकिन पिछड़ों को जो आरक्षण दिया गया उसमें सुप्रीम कोर्ट के आदेश ट्रिपल टेस्ट की अनदेखी की गई. सुप्रीम कोर्ट ने आयोग बनाकर अति पिछड़ों के ट्रिपल टेस्ट करने का फैसला 2021 में ही दिया था और उस आदेश का पालन नीतीश सरकार ने नहीं की और उसके कारण पटना हाईकोर्ट ने नगर निकाय चुनाव पर रोक लगा दी थी.

सुशील मोदी ने नीतीश कुमार को घेरा : बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और बीजेपी सांसद सुशील मोदी ने हाईकोर्ट के फैसले पर नीतीश सरकार को घेरा. सुशील मोदी ने उदाहरण देते हुए अपशब्द का भी इस्तेमाल किया. उन्होंने कहा, ''नीतीश कुमार को मुंहकी खानी पड़ी. कोर्ट के सामने आत्म समर्पण करना पड़ा. यही निर्णय पहले कर दिया होता तो यह फजीहत नहीं होती. नीतीश कुमार की हालत उस पठान जैसी है, जिसने 40 #@!%&# भी खाए और 40 प्याज भी खाया.''

2010 में सुप्रीम कोर्ट ने तय किया था मानक : दिसंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्य सरकार तय मानकों को पूरा न होने तक स्थानीय निकाय चुनाव में आरक्षण की अनुमति तक नहीं दी जा सकती है. चुनाव के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में मानक तय किए थे. सुप्रीम कोर्ट ने तीन जांच के मानक (Supreme Court On OBC Reservation) के तहत राज्य को प्रत्येक स्थानीय निकाय में ओबीसी के पिछड़ेपन पर आंकड़े जुटाने के लिए एक विशेष आयोग गठित करने और आयोग की सिफारिशों के आलोक में प्रत्येक स्थानीय निकाय में आरक्षण का अनुपात तय करने की जरूरत बताई. साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, और ओबीसी के लिए इस तरह के आरक्षण की सीमा में कुल सीटों की संख्या के 50 प्रतिशत को पार नहीं कर पाये.

क्या कहा था सुप्रीम कोर्ट ने: सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जब तक ‘तीन जांच' की अर्हता को राज्य सरकार पूरी नहीं करती है. तबतक राज्य के निकाय चुनाव में ओबीसी सीट को सामान्य श्रेणी की सीट ही मानकर फिर से बताया जाये. जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की इस बात का जिक्र किया कि अगर नगर निकाय चुनाव 10 अक्टूबर 2022 को है और हाईकोर्ट इस याचिका पर पहले ही सुनवाई कर देता है, तो यह नगर निकाय चुनाव के उम्मीदवारों के लिए सही होगा. हाईकोर्ट के बेंच की पीठ ने कहा है कि ‘मुख्य न्यायाधीश 23 सितंबर 2022 को समाप्त हो रहे मौजूदा सप्ताह के दौरान सुविधानुसार याचिका की सुनवाई कर सकते हैं'.

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