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बोधगया में आज से कालचक्र पूजा : विदेशियों की इसमें क्यों होती है आस्था, जानें

बौद्ध धर्म के सबसे बड़ा आयोजन बोधगया में होने जा रहा है. आयोजन में हिस्सा लेने लिए दुनिया भर से जुटे बौध धर्म गुरुओं और अनुयायियों के लिए सुरक्षा सहित अन्य व्यवस्था विशेष रूप से की गई है. पढ़ें पूरी खबर..

कालचक्र पूजा का महत्व
कालचक्र पूजा का महत्व
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Published : Dec 29, 2022, 8:13 AM IST

गया: बिहार के बोधगया में अब तक 18 बार कालचक्र पूजा आयोजित (Kalachakra Puja in Bodh Gaya) की जा चुकी है. इस वर्ष 19 वीं बार फिर से बोधगया में 3 दिवसीय कालचक्र पूजा का आयोजन होने जा रहा है. आयेजन में हिस्सा लेने दुनिया भर से बौद्ध धर्म के अनुयायी जुटें हैं. 29 से 31 दिसंबर तक कालचक्र मैदान में कालचक्र पूजा के दौरान बौद्ध धर्म गुरु टीचिंग करेंगे. बोधगया में कालचक्र पूजा का महत्व इससे समझा जा सकता है कि आयोजन में वर्तमान में बौद्ध धर्म के सबसे बड़े धर्म गुरु दलाई लामा (Dalai Lama ) हिस्सा ले रहे हैं.

ये भी पढ़ें-वटपा बौद्ध मठ में 2 दिवसीय सेमिनार का शुभारंभ, दलाई लामा ने की विश्व शांति की कामना

बोधगया में आज से कालचक्र पूजा : तीन दिनों कालचक्र मैदान में दलाई लामा अपने अनुयायियों को जीवन के बुनियादी सिद्धांत बताएंगे. 29, 30 और 31 दिसंबर को तीन दिनों के लिए विशेष शैक्षणिक सत्र होगा. गुरुवार सुबह 8 से कालचक्र मैदान में दलाई लामा विश्व शांती की प्रार्थना के साथ पूजा का शुभारंभ करेंगे. प्रवचन सत्र सुबह 8 बजे से 11:30 बजे तक चलेगा. कालचक्र मैदान में अध्यात्म, दर्शन और विज्ञान का संगम होगा. पूजा को लेकर बोधगया में आस्था का सैलाब उमड़ चुका है. कई देशों के बोद्ध श्रद्धालुओं से बोधगया संगम स्थल बन गया है.

विश्व भर से जुटें हैं बौद्ध धर्म के अनुयायीः बोधगया में आयोजित होने वाले कालचक्र पूजा में भारत सहित विश्व भर से बौद्ध धर्म मानने वाले बौद्ध भिक्षु और बौद्ध धर्म के अनुयायी बोधगया में जुटे हैं. इनमें मुख्य रूप से लाओस, कम्बोडिया, भूटान, थाईलैण्ड, म्यानमार और श्रीलंका से बड़ी संख्या में बौध अनुयायी पहुंचे हैं. बता दें कि ये छह देश "अधिकृत" 'बौद्ध देश' हैं, क्योंकि इन देशों के संविधानों में बौद्ध धम्म को 'राजधर्म' या 'राष्ट्रधर्म' का दर्जा मिला हुआ है.

क्या है कालचक्र पूजा? : कालचक्र पूजा की अगुवाई बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा करते (Importance Of Kalachakra Puja) हैं. कालचक्र पूजा के आयोजन पर पूरे विश्व के बौद्ध श्रद्धालु जुटते हैं. जानकारी के लिए बता दें, कि जिस स्थान पर कालचक्र पूजा होती है, उसका नाम कालचक्र हो जाता है. कालचक्र पूजा में तांत्रिक पूजा होती है. उसमें खास लोग ही भाग लेते हैं. बताया जाता है कि कालचक्र पूजा के दौरान जिन भी मंत्रों व सूत्रों का जाप किया जाता है, उसे पेंटिंग के माध्यम से दर्शाया जाता है. इस तरह एक पूरा चक्र बन जाता है. इसे कालचक्र पूजा कहा जाता है.

कालचक्र पूजा का महत्वः मूल रूप से तिब्बत से कालचक्र पूजा की परंपरा शुरू हुई थी, उसके बाद कई देशों और भारत में कालचक्र पूजा (What is kalachakra puja) की शुरुआत हुई. इस पूजा में तांत्रिक साधना से विश्व शांति की कामना की जाती है. वहीं इसमें जीवित लोगों के लिए शांति और मृत लोगों के लिए मोक्ष की कामना की जाती है.

3 दिन की होगी टीचिंग: 22 दिसंबर को बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा बोधगया पहुंचे हैं. वह करीब 1 माह तक बोधगया में प्रवास करेंगे. इस क्रम में 3 दिन 29, 30 और 31 दिसंबर को बौद्ध धर्म गुरु कालचक्र मैदान में टीचिंग करेंगे. इसमें नागार्जुन का पाठ होगा और 21 तारा देवी का अभिषेक किया जाएगा. तिब्बती पूजा समिति से जुड़े आम जी बाबा ने बताया कि गुरु जी प्रवचन करेंगे और अभिषेक देंगे. वहीं नए साल में कालचक्र मैदान से बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा की लंबी आयु के लिए पूजा की जाएगी. इसमें 50 से 60 हजार श्रद्धालु शामिल होंगे, जो कि पूरे विश्व से आते हैं. इसमें भाग लेने नेपाल, भूटान, यूरोप, अमेरिका समेत सभी देशों से श्रद्धालु आते हैं. बता दें कि 3 दिन की टीचिंग के दौरान बोधिसत्व की दीक्षा दी जाएगी.

कालचक्र पूजा का पहला दिन: कालचक्र पूजा के पहले दिन मंडला निर्माण के लिए धर्मगुरू द्वारा भूमि पूजन किया जाता है. उसके बाद तांत्रिक विधि विधान से मंडाला का निर्माण धर्मगुरू की देखरेख में बौद्ध लामाओं द्वारा किया जाता है. इसके लिए भूमि का चयन उत्तर-पूर्व दिशा में होता है. चयनित भूमि पर एक गड्डा खोदा जाता है और फिर इसी गड्डे से निकली मिट्टी से गड्डे को भरा जाता है. माना जाता है कि यदि मिट्टी गडडे से अधिक हो तो शुभ होता है. जबकि अगर कम पड़ जाए तो अशुभ होता है.

कालचक्र पूजा का दूसरा दिन: कालचक्र पूजा के दूसरे दिन मंडल स्थल को बुरी आत्माओं से दूर रखने के लिए लामाओं द्वारा पारंपरिक वेशभूषा में नृत्य किया जाता है. फिर मंडाला के लिए पवित्र रेखा खींची जाती है. यानी मंडाला के इर्द गिर्द तिब्बती भाषा में श्लोक उकेरा जाता है. मंडाला निर्माण में तीन दिन का समय लग जाता है.

कालचक्र पूजा का तीसरा दिन: कालचक्र पूजा के अंतिम दिन धर्मगुरू के दीर्घायु की कामना की जाती है. और फिर मंडाला को आम श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खोल दिया जाता है. मंडाला निर्माण में लगे सामग्री को पानी में विसर्जित कर दिया जाता है.

"गुरु जी प्रवचन करेंगे और अभिषेक देंगे. वहीं नए साल में कालचक्र मैदान से बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा की लंबी आयु के लिए पूजा की जाएगी. इसमें 50 से 60 हजार श्रद्धालु शामिल होंगे, जो कि पूरे विश्व से आते हैं. इसमें भाग लेने नेपाल, भूटान, यूरोप, अमेरिका समेत सभी देशों से श्रद्धालु आते हैं. 3 दिन की टीचिंग के दौरान बोधिसत्व की दीक्षा दी जाएगी." - ओम जी बाबा, तिब्बती पूजा समिति

गया: बिहार के बोधगया में अब तक 18 बार कालचक्र पूजा आयोजित (Kalachakra Puja in Bodh Gaya) की जा चुकी है. इस वर्ष 19 वीं बार फिर से बोधगया में 3 दिवसीय कालचक्र पूजा का आयोजन होने जा रहा है. आयेजन में हिस्सा लेने दुनिया भर से बौद्ध धर्म के अनुयायी जुटें हैं. 29 से 31 दिसंबर तक कालचक्र मैदान में कालचक्र पूजा के दौरान बौद्ध धर्म गुरु टीचिंग करेंगे. बोधगया में कालचक्र पूजा का महत्व इससे समझा जा सकता है कि आयोजन में वर्तमान में बौद्ध धर्म के सबसे बड़े धर्म गुरु दलाई लामा (Dalai Lama ) हिस्सा ले रहे हैं.

ये भी पढ़ें-वटपा बौद्ध मठ में 2 दिवसीय सेमिनार का शुभारंभ, दलाई लामा ने की विश्व शांति की कामना

बोधगया में आज से कालचक्र पूजा : तीन दिनों कालचक्र मैदान में दलाई लामा अपने अनुयायियों को जीवन के बुनियादी सिद्धांत बताएंगे. 29, 30 और 31 दिसंबर को तीन दिनों के लिए विशेष शैक्षणिक सत्र होगा. गुरुवार सुबह 8 से कालचक्र मैदान में दलाई लामा विश्व शांती की प्रार्थना के साथ पूजा का शुभारंभ करेंगे. प्रवचन सत्र सुबह 8 बजे से 11:30 बजे तक चलेगा. कालचक्र मैदान में अध्यात्म, दर्शन और विज्ञान का संगम होगा. पूजा को लेकर बोधगया में आस्था का सैलाब उमड़ चुका है. कई देशों के बोद्ध श्रद्धालुओं से बोधगया संगम स्थल बन गया है.

विश्व भर से जुटें हैं बौद्ध धर्म के अनुयायीः बोधगया में आयोजित होने वाले कालचक्र पूजा में भारत सहित विश्व भर से बौद्ध धर्म मानने वाले बौद्ध भिक्षु और बौद्ध धर्म के अनुयायी बोधगया में जुटे हैं. इनमें मुख्य रूप से लाओस, कम्बोडिया, भूटान, थाईलैण्ड, म्यानमार और श्रीलंका से बड़ी संख्या में बौध अनुयायी पहुंचे हैं. बता दें कि ये छह देश "अधिकृत" 'बौद्ध देश' हैं, क्योंकि इन देशों के संविधानों में बौद्ध धम्म को 'राजधर्म' या 'राष्ट्रधर्म' का दर्जा मिला हुआ है.

क्या है कालचक्र पूजा? : कालचक्र पूजा की अगुवाई बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा करते (Importance Of Kalachakra Puja) हैं. कालचक्र पूजा के आयोजन पर पूरे विश्व के बौद्ध श्रद्धालु जुटते हैं. जानकारी के लिए बता दें, कि जिस स्थान पर कालचक्र पूजा होती है, उसका नाम कालचक्र हो जाता है. कालचक्र पूजा में तांत्रिक पूजा होती है. उसमें खास लोग ही भाग लेते हैं. बताया जाता है कि कालचक्र पूजा के दौरान जिन भी मंत्रों व सूत्रों का जाप किया जाता है, उसे पेंटिंग के माध्यम से दर्शाया जाता है. इस तरह एक पूरा चक्र बन जाता है. इसे कालचक्र पूजा कहा जाता है.

कालचक्र पूजा का महत्वः मूल रूप से तिब्बत से कालचक्र पूजा की परंपरा शुरू हुई थी, उसके बाद कई देशों और भारत में कालचक्र पूजा (What is kalachakra puja) की शुरुआत हुई. इस पूजा में तांत्रिक साधना से विश्व शांति की कामना की जाती है. वहीं इसमें जीवित लोगों के लिए शांति और मृत लोगों के लिए मोक्ष की कामना की जाती है.

3 दिन की होगी टीचिंग: 22 दिसंबर को बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा बोधगया पहुंचे हैं. वह करीब 1 माह तक बोधगया में प्रवास करेंगे. इस क्रम में 3 दिन 29, 30 और 31 दिसंबर को बौद्ध धर्म गुरु कालचक्र मैदान में टीचिंग करेंगे. इसमें नागार्जुन का पाठ होगा और 21 तारा देवी का अभिषेक किया जाएगा. तिब्बती पूजा समिति से जुड़े आम जी बाबा ने बताया कि गुरु जी प्रवचन करेंगे और अभिषेक देंगे. वहीं नए साल में कालचक्र मैदान से बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा की लंबी आयु के लिए पूजा की जाएगी. इसमें 50 से 60 हजार श्रद्धालु शामिल होंगे, जो कि पूरे विश्व से आते हैं. इसमें भाग लेने नेपाल, भूटान, यूरोप, अमेरिका समेत सभी देशों से श्रद्धालु आते हैं. बता दें कि 3 दिन की टीचिंग के दौरान बोधिसत्व की दीक्षा दी जाएगी.

कालचक्र पूजा का पहला दिन: कालचक्र पूजा के पहले दिन मंडला निर्माण के लिए धर्मगुरू द्वारा भूमि पूजन किया जाता है. उसके बाद तांत्रिक विधि विधान से मंडाला का निर्माण धर्मगुरू की देखरेख में बौद्ध लामाओं द्वारा किया जाता है. इसके लिए भूमि का चयन उत्तर-पूर्व दिशा में होता है. चयनित भूमि पर एक गड्डा खोदा जाता है और फिर इसी गड्डे से निकली मिट्टी से गड्डे को भरा जाता है. माना जाता है कि यदि मिट्टी गडडे से अधिक हो तो शुभ होता है. जबकि अगर कम पड़ जाए तो अशुभ होता है.

कालचक्र पूजा का दूसरा दिन: कालचक्र पूजा के दूसरे दिन मंडल स्थल को बुरी आत्माओं से दूर रखने के लिए लामाओं द्वारा पारंपरिक वेशभूषा में नृत्य किया जाता है. फिर मंडाला के लिए पवित्र रेखा खींची जाती है. यानी मंडाला के इर्द गिर्द तिब्बती भाषा में श्लोक उकेरा जाता है. मंडाला निर्माण में तीन दिन का समय लग जाता है.

कालचक्र पूजा का तीसरा दिन: कालचक्र पूजा के अंतिम दिन धर्मगुरू के दीर्घायु की कामना की जाती है. और फिर मंडाला को आम श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खोल दिया जाता है. मंडाला निर्माण में लगे सामग्री को पानी में विसर्जित कर दिया जाता है.

"गुरु जी प्रवचन करेंगे और अभिषेक देंगे. वहीं नए साल में कालचक्र मैदान से बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा की लंबी आयु के लिए पूजा की जाएगी. इसमें 50 से 60 हजार श्रद्धालु शामिल होंगे, जो कि पूरे विश्व से आते हैं. इसमें भाग लेने नेपाल, भूटान, यूरोप, अमेरिका समेत सभी देशों से श्रद्धालु आते हैं. 3 दिन की टीचिंग के दौरान बोधिसत्व की दीक्षा दी जाएगी." - ओम जी बाबा, तिब्बती पूजा समिति

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