नई दिल्ली : अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा लगातार बढ़ता जा रहा है. हालात इस कदर खराब हो चले हैं कि अफगान सुरक्षा बलों को भी अपनी जान बचाकर शहरों को छोड़ना पड़ रहा है. अफगानिस्तान संकट पर ईटीवी भारत ने भारत में अफगान राइट्स एक्टिविस्ट निसार अहमद शेरजई से खास बातचीत की. इस दौरान शेरजई कहा कि तालिबान के पीछे पाकिस्तान का हाथ है. पाकिस्तानी सेना ने तालिबान को ट्रेनिंग दी है. पाकिस्तानी फौज के सैनिक तालिबान के साथ मिलकर अफगानिस्तान में हमला कर रहे हैं. तालिबान ने अफगानिस्तान के 18 प्रांतो पर कब्जा कर लिया है.
उन्होंने कहा,' मैं पूरी दुनिया से अपील करता हूं कि अफगानिस्तान के साथ दें. हिंदुस्तान सरकार से भी मेरी अपील है कि अफगानिस्तान का मदद करे. हिंदुस्तान तो अफगानिस्तान का सच्चा दोस्त है. अफगानिस्तान को बचाने का अभी भी एक मौका है. अफगानिस्तानी लोग इस समय बुरे दौर से गुजर रहे हैं.'
यह भी पढ़ें- जैश और लश्कर के 10,000 आतंकियों को तालिबान में भर्ती कर रहा पाक : अफगान अधिकारी
शेरजई ने कहा,' 20 साल से अमेरिका और नाटो की फौज अफगानिस्तान में थीं. इन सालों में दुनिया ने अफगानिस्तान का साथ नहीं दिया. उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि अमेरिका ने अफगानिस्तान जो कुछ किया है, वह अपने फायदे के लिए किया है. अमेरिका और नाटो की सेना जब से अफगानिस्तान से निकल रही है, तभी से अफगानिस्तान में बुरे हालात शुरू हुए हैं. इसके बाद भी हमारी सरकार तालिबान से निबटने की कोशिश कर रही है.
अफगानिस्तान में बहुत बुरे हालात
अफगानिस्तान में इस समय में कैसी स्थिति है. इस पर उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में हालात बहुत खराब है. लोगों के पास अफगानिस्तान से निकलने के लिए पैसे भी नहीं है. मैं भारत सरकार से अपील करता हूं कि वह इन लोगों की मदद करें. शेरजई ने कहा कि हिंदुस्तान ने पिछले 20 सालों में अफगानिस्तान के लिए बहुत कुछ किया है. हिंदुस्तान ने अफगानिस्तान के साथ सच्ची दोस्ती निभाई है. पूरी दुनिया जानती है कि अमेरिका और नाटो के सैनिकों ने अफगानिस्तान के साथ क्या किया है.
अफगान सरकार से क्या उम्मीदे हैं, इस पर शेरजई ने कहा कि अफगानिस्तान सरकार ने 20 सालों में लोगों के साथ सख्ती नहीं बरती. पिछले 20 वर्षों में पूरी दुनिया ने अफगानिस्तान को पैसा दिया है. इन सालों में हिंदुस्तान ने भी अफगानिस्तान को काफी पैसे दिये. लेकिन इन पैसे को अफगानिस्तान सरकार ने सही तरीके से इस्तेमाल नहीं किया है. जिसका खामियाजा आज यहां की पूरी आवाम भुगत रही है.
तालिबान पूरी दुनिया के लिए बन सकता है खतरा
शेरजई ने कहा कि अगर तालिबान काबुल पर कब्जा कर लेता है तो यह न केवल अफगानिस्तान के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए खतरा है. पूरी दुनिया जानती है कि तालिबान को आईएसआई का समर्थन प्राप्त है. अगर तालिबान सत्ता में आता है, तो यह न केवल हमारे लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए खतरा बन सकता है. इसलिए, मैं अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अफगानिस्तान और उसके लोगों का समर्थन करने की अपील करता हूं.
शेरजई ने कहा कि पहले अफगानिस्तान के लोग तालिबान द्वारा उत्पन्न खतरे के कारण पाकिस्तान, ईरान या भारत, खालिस्तान भाग कर चले जाते थे, लेकिन अब उनके लिए सभी दरवाजे बंद हैं. आतंकी समूह अब महिलाओं को अपने आतंकवादियों से शादी करने के लिए मजबूर कर रहा है.
तालिबान के हमले के बीच राय-मश्विरा जारी : गनी
इसी बीच अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने कहा है कि वह 20 वर्षों की 'उपलब्धियों' को बेकार नहीं जाने देंगे और कहा कि तालिबान के हमले के बीच 'राय-मश्विरा' जारी है. उन्होंने शनिवार को टेलीविजन के माध्यम से राष्ट्र को संबोधित किया. हाल के दिनों में तालिबान द्वारा प्रमुख क्षेत्रों पर कब्जा जमाए जाने के बाद से यह उनकी पहली सार्वजनिक टिप्पणी है.
उन्होंने कहा कि हमने सरकार के अनुभवी नेताओं, समुदाय के विभिन्न स्तरों के प्रतिनिधियों और हमारे अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों के साथ विचार-विमर्श शुरू कर दिया है. उन्होंने विस्तार से जानकारी नहीं दी, लेकिन कहा कि जल्द ही आपको इसके परिणाम के बारे में बताया जाएगा.
चरमपंथियों ने अफगानिस्तान के ज्यादातर उत्तरी, पश्चिमी और दक्षिणी हिस्से पर कब्जा कर लिया है, और अब वे राजधानी काबुल से सिर्फ 11 किलोमीटर दक्षिण में सरकारी बलों से जंग कर रहे हैं.
अमेरिका 31 अगस्त तक देश से अपनी अंतिम सैन्य टुकड़ी को वापस बुलाने वाला है, जिससे पश्चिमी देशों द्वारा समर्थित गनी की सरकार के अस्तित्व पर सवाल उठ रहे हैं. अमेरिका ने करीब 20 साल पहले 9/11 हमलों के बाद अफगानिस्तान में प्रवेश किया था.
अफगान अधिकारियों ने कहा कि तालिबान ने अफगानिस्तान की राजधानी के दक्षिण में एक प्रांत पर कब्जा कर लिया और शक्तिशाली पूर्व छत्रपों द्वारा सुरक्षा किए जा रहे उत्तर के एक प्रमुख शहर पर शनिवार तड़के चारों तरफ से हमला किया.
अमेरिका द्वारा अपने अंतिम सैनिकों को वापस बुलाने के लिए तैयार होने से तीन सप्ताह से भी कम समय पहले चरमपंथियों ने एक ख़तरनाक हमले में उत्तर, पश्चिम और दक्षिण अफगानिस्तान के अधिकतर हिस्से पर कब्जा कर लिया है जिससे चरमपंथियों के पूर्ण कब्जे या एक अन्य अफगान गृहयुद्ध की आशंका बढ़ गई है.
कौन है तालिबान
तालिबान का अफगानिस्तान में उदय 90 के दशक में हुआ. सोवियत सैनिकों के लौटने के बाद वहां अराजकता का माहौल पैदा हुआ, जिसका फायदा तालिबान ने उठाया. उसने दक्षिण-पश्चिम अफगानिस्तान से तालिबान ने जल्द ही अपना प्रभाव बढ़ाया. सितंबर 1995 में तालिबान ने ईरान सीमा से लगे हेरात प्रांत पर कब्ज़ा कर लिया. 1996 में अफगानिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति बुरहानुद्दीन रब्बानी को सत्ता से हटाकर काबुल पर कब्जा कर लिया था.
इसके बाद तालिबान ने इस्लामिक कानून को सख्ती लागू किया. मसलन मर्दों का दाढ़ी बढाना और महिलाओं का बुर्का पहनना अनिवार्य कर दिया. सिनेमा, संगीत और लड़कियों की पढ़ाई पर प्रतिबंध लगा दिया गया. बामियान में तालिबान ने यूनेस्को संरक्षित बुद्ध की प्रतिमा तोड़ दी.
2001 में जब 9/11 के हमले हुए तो तालिबान अमेरिका के निशाने पर आया. अलकायदा के ओसामा बिन लादेन को पनाह देने के आरोप में अमेरिका ने तालिबान पर हमले किए. करीब 20 साल तक अमेरिका तालिबान के साथ लड़ता रहा. 1 मई से वहां से अमेरिकी सैनिकों ने वापसी शुरू कर दी है. 11 सितंबर 2021 तक अमेरिकी सेना पूरी तरह अफगानिस्तान से हट जाएगी. अंदेशा है कि इसके बाद आईएसआई और तालिबान भारत के प्रोजेक्ट को और निशाना बनाएगी.