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अफगानिस्तान पर दिल्ली क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता उम्मीद से बेहतर रही : सूत्र - दिल्ली क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की अध्यक्षता में बुधवार को हुई वार्ता में रूस, ईरान, कजाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान के उनके समकक्षों ने भाग लिया. सूत्रों ने बताया कि अफगानिस्तान की मौजूदा स्थिति और क्षेत्र की प्रमुख चुनौतियों के आकलन को लेकर वार्ता में शामिल देशों की राय में असाधारण समानता थी.

दिल्ली क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता
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Published : Nov 11, 2021, 5:25 AM IST

नई दिल्ली : रूस, ईरान और पांच मध्य एशियाई देशों के शीर्ष सुरक्षा अधिकारियों के साथ अफगानिस्तान के विषय पर बुधवार को हुई 'दिल्ली क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता' भारत की उम्मीद से बेहतर रही. आधिकारिक सूत्रों ने बुधवार को यह जानकारी दी.

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल की अध्यक्षता में बुधवार को हुई वार्ता में रूस, ईरान, कजाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान के उनके समकक्षों ने भाग लिया.

सूत्रों ने बताया कि अफगानिस्तान की मौजूदा स्थिति और क्षेत्र की प्रमुख चुनौतियों के आकलन को लेकर वार्ता में शामिल देशों की राय में असाधारण समानता थी.

एक सूत्र ने कहा, 'इनमें सुरक्षा की स्थिति, आतंकवाद का बढ़ता खतरा और आसन्न मानवीय संकट जैसे मामले शामिल थे.'

उन्होंने कहा, 'राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों ने मानवीय मदद की आवश्यकता पर गौर किया और जोर दिया कि इसके लिए थल एवं वायु मार्ग उपलब्ध रहने चाहिए और किसी को इस प्रक्रिया को बाधित नहीं करना चाहिए.'

सूत्रों ने बताया कि अधिकारियों ने इस बात पर भी जोर दिया कि किसी द्विपक्षीय एजेंडे के चलते किसी को भी वार्ता प्रक्रिया का बहिष्कार नहीं करना चाहिए.

उल्लेखनीय है कि भारत ने चीन और पाकिस्तान को भी इस वार्ता के लिए आमंत्रित किया था, लेकिन दोनों देशों ने इसमें शामिल नहीं होने का फैसला किया.

'अफगान भूमि का इस्तेमाल आतंकवाद के लिए नहीं होना चाहिए'

वार्ता में भारत, रूस, ईरान और पांच मध्य एशियाई देशों ने यह सुनिश्चित करने की दिशा में काम करने का संकल्प लिया कि अफगानिस्तान को वैश्विक आतंकवाद का पनाहगाह नहीं बनने दिया जाएगा. साथ ही, उन्होंने काबुल में एक खुली और अफगान समाज के सभी तबकों के प्रतिनिधित्व के साथ सही मायने में समावेशी सरकार का गठन करने का आह्वान किया.

सुरक्षा वार्ता में आठ देशों के शीर्ष सुरक्षा अधिकारियों ने अफगानिस्तान की संप्रभुता, एकता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने तथा इसके अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप नहीं करने की जरूरत पर भी जोर दिया, जिसे तालिबान का समर्थन कर रहे पाकिस्तान के लिए एक परोक्ष संदेश के रूप में देखा जा रहा है.

दिल्ली क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता के अंत में इन आठ देशों ने एक घोषणापत्र में यह बात दोहराई कि आतंकवादी गतिविधियों को पनाह, प्रशिक्षण, साजिश रचने देने या वित्तपोषण करने देने में अफगान भू-भाग का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए.

प्रधानमंत्री से सुरक्षा अधिकारियों की मुलाकात

वार्ता के बाद अधिकारियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से संयुक्त रूप से मुलाकात की, जिस दौरान पीएम मोदी ने अफगानिस्तान के संदर्भ में क्षेत्र के देशों द्वारा ध्यान केंद्रित किये जाने वाले चार पहलुओं पर जोर दिया.

आधिकारिक बयान के मुताबिक प्रधानमंत्री ने चार पहलुओं पर जोर दिया, जिनमें अफगानिस्तान में एक समावेशी सरकार की जरूरत, अफगान भू-भाग का आतंकवादी समूहों द्वारा इस्तेमाल किये जाने को कतई बर्दाश्त नहीं करने का रुख अपनाना, अफगानिस्तान से मादक पदार्थ व हथियारों की तस्करी को रोकने की एक रणनीति और उस देश में बढ़ते मानवीय संकट का समाधान करना शामिल है.

बयान में कहा गया है कि प्रधानमंत्री ने यह उम्मीद भी जताई कि क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता आधुनिकीकरण व प्रगतिशील संस्कृति तथा चरमपंथ रोधी प्रवृतियों की मध्य एशिया की परंपरा में नई जान फूंकने का काम करेगी.

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली : रूस, ईरान और पांच मध्य एशियाई देशों के शीर्ष सुरक्षा अधिकारियों के साथ अफगानिस्तान के विषय पर बुधवार को हुई 'दिल्ली क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता' भारत की उम्मीद से बेहतर रही. आधिकारिक सूत्रों ने बुधवार को यह जानकारी दी.

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल की अध्यक्षता में बुधवार को हुई वार्ता में रूस, ईरान, कजाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान के उनके समकक्षों ने भाग लिया.

सूत्रों ने बताया कि अफगानिस्तान की मौजूदा स्थिति और क्षेत्र की प्रमुख चुनौतियों के आकलन को लेकर वार्ता में शामिल देशों की राय में असाधारण समानता थी.

एक सूत्र ने कहा, 'इनमें सुरक्षा की स्थिति, आतंकवाद का बढ़ता खतरा और आसन्न मानवीय संकट जैसे मामले शामिल थे.'

उन्होंने कहा, 'राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों ने मानवीय मदद की आवश्यकता पर गौर किया और जोर दिया कि इसके लिए थल एवं वायु मार्ग उपलब्ध रहने चाहिए और किसी को इस प्रक्रिया को बाधित नहीं करना चाहिए.'

सूत्रों ने बताया कि अधिकारियों ने इस बात पर भी जोर दिया कि किसी द्विपक्षीय एजेंडे के चलते किसी को भी वार्ता प्रक्रिया का बहिष्कार नहीं करना चाहिए.

उल्लेखनीय है कि भारत ने चीन और पाकिस्तान को भी इस वार्ता के लिए आमंत्रित किया था, लेकिन दोनों देशों ने इसमें शामिल नहीं होने का फैसला किया.

'अफगान भूमि का इस्तेमाल आतंकवाद के लिए नहीं होना चाहिए'

वार्ता में भारत, रूस, ईरान और पांच मध्य एशियाई देशों ने यह सुनिश्चित करने की दिशा में काम करने का संकल्प लिया कि अफगानिस्तान को वैश्विक आतंकवाद का पनाहगाह नहीं बनने दिया जाएगा. साथ ही, उन्होंने काबुल में एक खुली और अफगान समाज के सभी तबकों के प्रतिनिधित्व के साथ सही मायने में समावेशी सरकार का गठन करने का आह्वान किया.

सुरक्षा वार्ता में आठ देशों के शीर्ष सुरक्षा अधिकारियों ने अफगानिस्तान की संप्रभुता, एकता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने तथा इसके अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप नहीं करने की जरूरत पर भी जोर दिया, जिसे तालिबान का समर्थन कर रहे पाकिस्तान के लिए एक परोक्ष संदेश के रूप में देखा जा रहा है.

दिल्ली क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता के अंत में इन आठ देशों ने एक घोषणापत्र में यह बात दोहराई कि आतंकवादी गतिविधियों को पनाह, प्रशिक्षण, साजिश रचने देने या वित्तपोषण करने देने में अफगान भू-भाग का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए.

प्रधानमंत्री से सुरक्षा अधिकारियों की मुलाकात

वार्ता के बाद अधिकारियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से संयुक्त रूप से मुलाकात की, जिस दौरान पीएम मोदी ने अफगानिस्तान के संदर्भ में क्षेत्र के देशों द्वारा ध्यान केंद्रित किये जाने वाले चार पहलुओं पर जोर दिया.

आधिकारिक बयान के मुताबिक प्रधानमंत्री ने चार पहलुओं पर जोर दिया, जिनमें अफगानिस्तान में एक समावेशी सरकार की जरूरत, अफगान भू-भाग का आतंकवादी समूहों द्वारा इस्तेमाल किये जाने को कतई बर्दाश्त नहीं करने का रुख अपनाना, अफगानिस्तान से मादक पदार्थ व हथियारों की तस्करी को रोकने की एक रणनीति और उस देश में बढ़ते मानवीय संकट का समाधान करना शामिल है.

बयान में कहा गया है कि प्रधानमंत्री ने यह उम्मीद भी जताई कि क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता आधुनिकीकरण व प्रगतिशील संस्कृति तथा चरमपंथ रोधी प्रवृतियों की मध्य एशिया की परंपरा में नई जान फूंकने का काम करेगी.

(पीटीआई-भाषा)

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