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Deep Ocean Mission: खनिज खोज पर ₹150 करोड़ का आवंटन, एक फूटी कौड़ी भी खर्च नहीं, संसदीय समिति ने मांगा जवाब - कांग्रेस के जयराम रमेश

संसद की एक समिति ने 'डीप ओशन मिशन' (Deep Ocean Mission) के तहत 150 करोड़ रुपये की कुल आवंटित निधि में से जनवरी 2022 तक एक पैसा भी खर्च नहीं होने पर आश्चर्य व्यक्त किया है. कांग्रेस सांसद जयराम रमेश की अध्यक्षता वाली समिति ने पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय से इस संबंध में विस्तार से जानकारी मांगी है. समिति ने आवंटित राशि खर्च न होने पर असंतोष भी व्यक्त किया है.

congress mp jairam ramesh
कांग्रेस के जयराम रमेश
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Published : Mar 21, 2022, 3:25 PM IST

नई दिल्ली : संसद में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की वर्ष 2022-23 की अनुदान की मांगों पर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय से संबंधित स्थायी समिति ने एक रिपोर्ट पेश की है. समिति की अध्यक्षता कांग्रेस सांसद जयराम रमेश कर रहे हैं. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि डीप ओशन मिशन के तहत आवंटित 150 करोड़ रुपये में एक भी पैसा खर्च नहीं किया गया है. यह जानकारी जनवरी, 2022 तक की है. संसद के बजट सत्र के दूसरे चरण में गत 15 मार्च को यह रिपोर्ट पेश की गई. समिति ने इस बात पर भी चिंता व्यक्त की कि मंत्रालय अपनी अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों को सुदृढ़ करने के लिए प्रशिक्षित जनशक्ति की कमी के कारण चुनौतियों का सामना कर रहा है.

कांग्रेस के जयराम रमेश की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2021-22 के लिए मंत्रालय को 'गहरे समुद्र मिशन' (डीप ओशन मिशन) के तहत 150 करोड़ रुपए की कुल निधि आवंटित की गई. रिपोर्ट के अनुसार, समिति को यह देख कर आश्चर्य होता है कि मंत्रालय द्वारा 31 जनवरी 2022 तक एक पैसे का भी उपयोग नहीं किया गया है. समिति ने गहरा समुद्र मिशन योजना के तहत आवंटित निधियों के प्रति मंत्रालय के उदासीन रवैये को गंभीरता लेते हुए मंत्रालय को उन कारणों के बारे में उसे विस्तार से अवगत कराने को कहा है जिनके चलते वह निधियों का संतोषजनक ढंग से उपयोग नहीं कर सका.

रिपोर्ट के अनुसार, समिति आगे नोट करती है, इस मिशन के तहत 5 वर्षों अर्थात 2021 से 2026 तक की अवधि के लिए कुल वित्तीय परिव्यय 4077 करोड़ रुपए है जिसमें से 2823.40 करोड़ रूपये 3 वर्षों अर्थात 2021 से 2024 की अवधि के पहले चरण के लिये अनुमानित है. इसमें कहा गया है कि मिशन के परिकल्पित उद्देश्यों को देखते हुए मंत्रालय द्वारा बजटीय सहायता का पूर्ण और इष्टतम उपयोग करना अनिवार्य है इसलिए समिति मंत्रालय से सिफारिश करती है कि वह मिशन के तहत आवंटित की जा रही निधि का सर्वोत्तम उपयोग करने में कोई कसर ना छोड़े .

गौरतलब है कि समुद्र में 6000 मीटर की गहराई पर कई प्रकार के खनिज हैं जिनके बारे में अध्ययन नहीं हुआ है. इस मिशन के तहत खनिजों के बारे में अध्ययन एवं सर्वेक्षण का काम किया जायेगा. इसके अलावा जलवायु परिवर्तन एवं समुद्र के जलस्तर में वृद्धि सहित गहरे समुद्र में होने वाले परिवर्तनों के बारे में भी अध्ययन किया जायेगा. गहरे समुद्र संबंधी मिशन के तहत जैव विविधता के बारे में भी अध्ययन किया जायेगा. इसके तहत समुद्रीय जीव विज्ञान के बारे में जानकारी जुटाने के लिये उन्नत समुद्री स्टेशन (एडवांस मरीन स्टेशन) की स्थापना की जायेगी. इसके अलावा थर्मल एनर्जी का अध्ययन किया जायेगा.

समिति का दृढ़ मत है कि यदि मंत्रालय की योजनाओं, कार्यक्रमों एवं कार्यकलापों को पर्याप्त रूप से वित्त पोषित किया जाता है तो भी अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों के लिए प्रसिद्ध प्रशिक्षित जनशक्ति के बिना वांछित परिणाम प्राप्त नहीं किए जा सकते. रिपोर्ट में कहा गया है, 'ऐसे में इस विषय पर तत्काल आधार पर आवश्यक हस्तक्षेप करना अनिवार्य है. समिति मंत्रालय को आवश्यक कार्रवाई करने की सिफारिश करती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कुशल कार्य बल के अभाव में मंत्रालय के अनुसंधान एवं विकास कार्यकलाप नहीं रूके.'

संसद के बजट सत्र से जुड़ी अन्य खबरें-

समिति ने अतिरिक्त 500 जनशक्ति की भर्ती एवं प्रशिक्षण के लिए मंत्रालय द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में भी सूचित करने को कहा है. रिपोर्ट में कहा गया है कि आंकड़ों के अध्ययन से पता चलता है कि केंद्रीय क्षेत्र की योजनाओं के तहत मंत्रालय का समग्र वित्तीय प्रदर्शन जनवरी 2022 तक बहुत उत्साहजनक नहीं रहा है. इसमें कहा गया है कि, '2369.54 करोड़ रुपए के कुल बजटीय आवंटन में से मंत्रालय केवल 1379.98 करोड़ रुपए का ही उपयोग कर सका जो वित्त वर्ष 2021 - 2022 के लिए मंत्रालय को उपलब्ध कराए गए धन के संशोधित प्राप्ति आवंटन का सिर्फ 58.23 प्रतिशत है.' हालांकि, समिति ने उम्मीद जताई है कि मंत्रालय वित्तीय वर्ष 2021 की शेष अवधि के दौरान 989.56 करोड़ रुपए की शेष राशि का बेहतर उपयोग करने में सक्षम होगा.

बता दें कि बता दें कि जून, 2021 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता वाली आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने गहरे समुद्र में संसाधनों का पता लगाने के मकसद से 'गहरे समुद्र अभियान' को मंजूरी दी थी. गहरे समुद्र अभियान से जुड़ा प्रस्ताव पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस) ने दिया था. केंद्र सरकार के फैसले के मुताबिक अभियान को चरणबद्ध तरीके से लागू करने के लिए 5 वर्ष की अवधि की अनुमानित लागत 4,077 करोड़ रुपए होगी. पहले 3 वर्षों (2021-2024) के लिए पहले चरण की अनुमानित लागत 2823.4 करोड़ रुपये होगी. पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओइएस) इस महत्वाकांक्षी अभियान को लागू करने वाला नोडल मंत्रालय है. इस अभियान के तहत कई बिंदुओं पर काम करने का प्रस्ताव है.

गहरे समुद्र में खनन और मानवयुक्त पनडुब्बी के लिए प्रौद्योगिकियों का विकास : योजना के मुताबिक तीन लोगों को समुद्र में 6,000 मीटर की गहराई तक ले जाने के लिए वैज्ञानिक सेंसर और उपकरणों के साथ एक मानवयुक्त पनडुब्बी विकसित की जाएगी.

महासागर जलवायु परिवर्तन सलाहकार सेवाओं का विकास : इसके तहत मौसम से लेकर दशकीय समय के आधार पर महत्वपूर्ण जलवायु परिवर्तनों को लेकर एक समूह का विकास किया जाएगा. इससे तटीय पर्यटन में भी मदद मिलेगी.

गहरे समुद्र में सर्वेक्षण और अन्वेषण : इसका उद्देश्य हिंद महासागर के मध्य-महासागरीय भागों के साथ बहु-धातु हाइड्रोथर्मल सल्फाइड खनिज के संभावित स्थलों का पता लगाना और उनकी पहचान करना है. महासागर से ऊर्जा और मीठा पानी हासिल करना भी गहरे समुद्र मिशन के तहत परियोजना का मकसद है. महासागर जीवविज्ञान के लिए उन्नत समुद्री स्टेशन बनाने का उद्देश्य महासागरीय जीव विज्ञान और इंजीनियरिंग में मानव क्षमता और उद्यम का विकास करना है.

रोजगार के भी अवसर मिलेंगे
जानकारों का मानना है कि गहरे समुद्र में खनन के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकियों का रणनीतिक महत्व है. सरकार का कहना है कि अग्रणी संस्थानों और निजी उद्योगों के सहयोग से प्रौद्योगिकियों को स्वदेश में ही निर्मित करने का प्रयास किया जाएगा. एक भारतीय शिपयार्ड में गहरे समुद्र में खोज के लिए एक शोध पोत बनाया जाएगा जो रोजगार के अवसर पैदा करेगा. भारत सरकार के विजन में ब्लू इकोनॉमी को भी विशेष स्थान दिया गया है. प्रस्ताव के मुताबिक डीप ओशन मिशन भारतीय उद्योगों में भी रोजगार के अवसर प्रदान करेगा. इसके अलावा, विशेष उपकरणों, जहाजों के डिजाइन, विकास और निर्माण और आवश्यक बुनियादी ढांचे की स्थापना से भारतीय उद्योग, विशेष रूप से एमएसएमई और स्टार्ट-अप के विकास को गति मिलने की उम्मीद है.

भारत की समुद्री स्थिति अद्वितीय
सरकार का मानना है कि विश्व के लगभग 70 प्रतिशत भाग में महासागर मौजूद हैं. गहरे समुद्र का लगभग 95 प्रतिशत हिस्सा अभी तक खोजा नहीं जा सका है. भारत की सीमाएं तीन तरफ से महासागरों से घिरी हैं. लगभग 30 प्रतिशत आबादी तटीय क्षेत्रों में रहती है. सरकार का कहना है कि भारत की समुद्री स्थिति अद्वितीय है. इसकी 7,517 किमी लंबी तटरेखा नौ तटीय राज्यों और 1,382 द्वीपों का आवास है.

सतत विकास के लिए महासागर विज्ञान के दशक
महासागर मत्स्य पालन और जलीय कृषि, पर्यटन, आजीविका और नील व्यापार का समर्थन करने वाला एक प्रमुख आर्थिक कारक है. महासागर, तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के भोजन के अलावा, ऊर्जा, खनिजों, औषधियों, मौसम और जलवायु के भी भंडार हैं. बता दें कि संयुक्त राष्ट्र (यूएन) ने 2021-2030 के दशक को सतत विकास के लिए महासागर विज्ञान के दशक (Decade of Ocean Science for Sustainable Development) के रूप में घोषित किया है.

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली : संसद में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की वर्ष 2022-23 की अनुदान की मांगों पर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय से संबंधित स्थायी समिति ने एक रिपोर्ट पेश की है. समिति की अध्यक्षता कांग्रेस सांसद जयराम रमेश कर रहे हैं. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि डीप ओशन मिशन के तहत आवंटित 150 करोड़ रुपये में एक भी पैसा खर्च नहीं किया गया है. यह जानकारी जनवरी, 2022 तक की है. संसद के बजट सत्र के दूसरे चरण में गत 15 मार्च को यह रिपोर्ट पेश की गई. समिति ने इस बात पर भी चिंता व्यक्त की कि मंत्रालय अपनी अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों को सुदृढ़ करने के लिए प्रशिक्षित जनशक्ति की कमी के कारण चुनौतियों का सामना कर रहा है.

कांग्रेस के जयराम रमेश की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2021-22 के लिए मंत्रालय को 'गहरे समुद्र मिशन' (डीप ओशन मिशन) के तहत 150 करोड़ रुपए की कुल निधि आवंटित की गई. रिपोर्ट के अनुसार, समिति को यह देख कर आश्चर्य होता है कि मंत्रालय द्वारा 31 जनवरी 2022 तक एक पैसे का भी उपयोग नहीं किया गया है. समिति ने गहरा समुद्र मिशन योजना के तहत आवंटित निधियों के प्रति मंत्रालय के उदासीन रवैये को गंभीरता लेते हुए मंत्रालय को उन कारणों के बारे में उसे विस्तार से अवगत कराने को कहा है जिनके चलते वह निधियों का संतोषजनक ढंग से उपयोग नहीं कर सका.

रिपोर्ट के अनुसार, समिति आगे नोट करती है, इस मिशन के तहत 5 वर्षों अर्थात 2021 से 2026 तक की अवधि के लिए कुल वित्तीय परिव्यय 4077 करोड़ रुपए है जिसमें से 2823.40 करोड़ रूपये 3 वर्षों अर्थात 2021 से 2024 की अवधि के पहले चरण के लिये अनुमानित है. इसमें कहा गया है कि मिशन के परिकल्पित उद्देश्यों को देखते हुए मंत्रालय द्वारा बजटीय सहायता का पूर्ण और इष्टतम उपयोग करना अनिवार्य है इसलिए समिति मंत्रालय से सिफारिश करती है कि वह मिशन के तहत आवंटित की जा रही निधि का सर्वोत्तम उपयोग करने में कोई कसर ना छोड़े .

गौरतलब है कि समुद्र में 6000 मीटर की गहराई पर कई प्रकार के खनिज हैं जिनके बारे में अध्ययन नहीं हुआ है. इस मिशन के तहत खनिजों के बारे में अध्ययन एवं सर्वेक्षण का काम किया जायेगा. इसके अलावा जलवायु परिवर्तन एवं समुद्र के जलस्तर में वृद्धि सहित गहरे समुद्र में होने वाले परिवर्तनों के बारे में भी अध्ययन किया जायेगा. गहरे समुद्र संबंधी मिशन के तहत जैव विविधता के बारे में भी अध्ययन किया जायेगा. इसके तहत समुद्रीय जीव विज्ञान के बारे में जानकारी जुटाने के लिये उन्नत समुद्री स्टेशन (एडवांस मरीन स्टेशन) की स्थापना की जायेगी. इसके अलावा थर्मल एनर्जी का अध्ययन किया जायेगा.

समिति का दृढ़ मत है कि यदि मंत्रालय की योजनाओं, कार्यक्रमों एवं कार्यकलापों को पर्याप्त रूप से वित्त पोषित किया जाता है तो भी अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों के लिए प्रसिद्ध प्रशिक्षित जनशक्ति के बिना वांछित परिणाम प्राप्त नहीं किए जा सकते. रिपोर्ट में कहा गया है, 'ऐसे में इस विषय पर तत्काल आधार पर आवश्यक हस्तक्षेप करना अनिवार्य है. समिति मंत्रालय को आवश्यक कार्रवाई करने की सिफारिश करती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कुशल कार्य बल के अभाव में मंत्रालय के अनुसंधान एवं विकास कार्यकलाप नहीं रूके.'

संसद के बजट सत्र से जुड़ी अन्य खबरें-

समिति ने अतिरिक्त 500 जनशक्ति की भर्ती एवं प्रशिक्षण के लिए मंत्रालय द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में भी सूचित करने को कहा है. रिपोर्ट में कहा गया है कि आंकड़ों के अध्ययन से पता चलता है कि केंद्रीय क्षेत्र की योजनाओं के तहत मंत्रालय का समग्र वित्तीय प्रदर्शन जनवरी 2022 तक बहुत उत्साहजनक नहीं रहा है. इसमें कहा गया है कि, '2369.54 करोड़ रुपए के कुल बजटीय आवंटन में से मंत्रालय केवल 1379.98 करोड़ रुपए का ही उपयोग कर सका जो वित्त वर्ष 2021 - 2022 के लिए मंत्रालय को उपलब्ध कराए गए धन के संशोधित प्राप्ति आवंटन का सिर्फ 58.23 प्रतिशत है.' हालांकि, समिति ने उम्मीद जताई है कि मंत्रालय वित्तीय वर्ष 2021 की शेष अवधि के दौरान 989.56 करोड़ रुपए की शेष राशि का बेहतर उपयोग करने में सक्षम होगा.

बता दें कि बता दें कि जून, 2021 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता वाली आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने गहरे समुद्र में संसाधनों का पता लगाने के मकसद से 'गहरे समुद्र अभियान' को मंजूरी दी थी. गहरे समुद्र अभियान से जुड़ा प्रस्ताव पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस) ने दिया था. केंद्र सरकार के फैसले के मुताबिक अभियान को चरणबद्ध तरीके से लागू करने के लिए 5 वर्ष की अवधि की अनुमानित लागत 4,077 करोड़ रुपए होगी. पहले 3 वर्षों (2021-2024) के लिए पहले चरण की अनुमानित लागत 2823.4 करोड़ रुपये होगी. पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओइएस) इस महत्वाकांक्षी अभियान को लागू करने वाला नोडल मंत्रालय है. इस अभियान के तहत कई बिंदुओं पर काम करने का प्रस्ताव है.

गहरे समुद्र में खनन और मानवयुक्त पनडुब्बी के लिए प्रौद्योगिकियों का विकास : योजना के मुताबिक तीन लोगों को समुद्र में 6,000 मीटर की गहराई तक ले जाने के लिए वैज्ञानिक सेंसर और उपकरणों के साथ एक मानवयुक्त पनडुब्बी विकसित की जाएगी.

महासागर जलवायु परिवर्तन सलाहकार सेवाओं का विकास : इसके तहत मौसम से लेकर दशकीय समय के आधार पर महत्वपूर्ण जलवायु परिवर्तनों को लेकर एक समूह का विकास किया जाएगा. इससे तटीय पर्यटन में भी मदद मिलेगी.

गहरे समुद्र में सर्वेक्षण और अन्वेषण : इसका उद्देश्य हिंद महासागर के मध्य-महासागरीय भागों के साथ बहु-धातु हाइड्रोथर्मल सल्फाइड खनिज के संभावित स्थलों का पता लगाना और उनकी पहचान करना है. महासागर से ऊर्जा और मीठा पानी हासिल करना भी गहरे समुद्र मिशन के तहत परियोजना का मकसद है. महासागर जीवविज्ञान के लिए उन्नत समुद्री स्टेशन बनाने का उद्देश्य महासागरीय जीव विज्ञान और इंजीनियरिंग में मानव क्षमता और उद्यम का विकास करना है.

रोजगार के भी अवसर मिलेंगे
जानकारों का मानना है कि गहरे समुद्र में खनन के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकियों का रणनीतिक महत्व है. सरकार का कहना है कि अग्रणी संस्थानों और निजी उद्योगों के सहयोग से प्रौद्योगिकियों को स्वदेश में ही निर्मित करने का प्रयास किया जाएगा. एक भारतीय शिपयार्ड में गहरे समुद्र में खोज के लिए एक शोध पोत बनाया जाएगा जो रोजगार के अवसर पैदा करेगा. भारत सरकार के विजन में ब्लू इकोनॉमी को भी विशेष स्थान दिया गया है. प्रस्ताव के मुताबिक डीप ओशन मिशन भारतीय उद्योगों में भी रोजगार के अवसर प्रदान करेगा. इसके अलावा, विशेष उपकरणों, जहाजों के डिजाइन, विकास और निर्माण और आवश्यक बुनियादी ढांचे की स्थापना से भारतीय उद्योग, विशेष रूप से एमएसएमई और स्टार्ट-अप के विकास को गति मिलने की उम्मीद है.

भारत की समुद्री स्थिति अद्वितीय
सरकार का मानना है कि विश्व के लगभग 70 प्रतिशत भाग में महासागर मौजूद हैं. गहरे समुद्र का लगभग 95 प्रतिशत हिस्सा अभी तक खोजा नहीं जा सका है. भारत की सीमाएं तीन तरफ से महासागरों से घिरी हैं. लगभग 30 प्रतिशत आबादी तटीय क्षेत्रों में रहती है. सरकार का कहना है कि भारत की समुद्री स्थिति अद्वितीय है. इसकी 7,517 किमी लंबी तटरेखा नौ तटीय राज्यों और 1,382 द्वीपों का आवास है.

सतत विकास के लिए महासागर विज्ञान के दशक
महासागर मत्स्य पालन और जलीय कृषि, पर्यटन, आजीविका और नील व्यापार का समर्थन करने वाला एक प्रमुख आर्थिक कारक है. महासागर, तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के भोजन के अलावा, ऊर्जा, खनिजों, औषधियों, मौसम और जलवायु के भी भंडार हैं. बता दें कि संयुक्त राष्ट्र (यूएन) ने 2021-2030 के दशक को सतत विकास के लिए महासागर विज्ञान के दशक (Decade of Ocean Science for Sustainable Development) के रूप में घोषित किया है.

(पीटीआई-भाषा)

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