जयपुर. जयपुर की ब्लू पॉटरी की ख्याति हमारे देश में नहीं, बल्कि सात समंदर पार से आने वाले सैलानियों के बीच भी है. यही कारण है कि इन दिनों जयपुर आने वाले सैलानियों को जितना जयपुर की हेरिटेज विरासत रिझा रही है, उतना ही ब्लू पॉटरी भी आकर्षित कर रही है. ये विदेशी पर्यटक अपने परिवार के साथ जयपुर में एक दिन से लेकर हफ्ते भर की वर्कशॉप के जरिए ब्लू पॉटरी सीख रहे हैं. खास बात यह है कि टूर ऑपरेटर इस वक्त को अपने पैकेज में शामिल कर रहे हैं, तो वहीं सीखने की इच्छा रखने वाले सैलानी ट्रेनिंग के लिए पैसा भी खर्च कर रहे हैं.
पर्यटक कला की ओर हो रहे आकर्षित : पर्यटन कारोबारी संजय कौशिक बताते हैं कि राजस्थान आने वाले सैलानियों को इन दिनों जितना विरासत की कला रिझा रही है. उतना ही वे खुद इस कला को समझने के लिए अपना वक्त लगा रहे हैं. यही कारण है कि अब टूर फाइनल करने के दौरान उनसे अलग-अलग क्राफ्ट को सीखने और समझने की डिमांड की जाती है. सैलानी बाकायदा इसके लिए पैसा भी खर्च कर रहे हैं. पर्यटक ब्लू पॉटरी के साथ-साथ कुकिंग आर्ट (कलनेरी आर्ट), सांगानेरी ब्लॉक प्रिंटिंग, मीनाकारी, बगरू हैंड प्रिंटिंग का हुनर सीखने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं. संजय कौशिक कहते हैं कि सरकारी स्तर पर भी यदि पर्यटकों को राजस्थान से जुड़ी विभिन्न कलाओं के बारे में जानने और सीखने के लिए प्रोत्साहित किया जाए, तो पर्यटन के क्षेत्र की असीम संभावनाओं से और अधिक लाभ लिया जा सकता है. हाल में उनके यहां आए अमेरिका के एक दल ने पूरे परिवार के साथ सांगानेर में ब्लू पॉटरी की वर्कशॉप में भाग लिया. इसी तरह यूके, फ्रांस और इटली से आने वाले सैलानी भी राजस्थान से जुड़ी विभिन्न कलाओं में अपनी दिलचस्पी दिखा चुके हैं. ये पर्यटक इन कलाओं से जुड़ी जगह पर पूरा दिन बिताने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं.
कला को बढ़ावा और प्रदेश का सम्मान एक साथ : ब्लू पॉटरी की जानी-मानी कलाकार गरिमा सैनी बताती हैं कि उनके यहां कई विदेशी सैलानी इस कला का हुनर सीखने के लिए वर्कशॉप में भाग लेने के लिए पहुंचते हैं. आमतौर पर यह टूरिस्ट एक दिन की वर्कशॉप के लिए आते हैं, लेकिन कुछ लोग एक हफ्ते और 15 दिन की वर्कशॉप में भी भाग लेते हैं. इन लोगों को क्ले आर्ट के हुनर की बारीकियां सीखने के साथ-साथ ब्लू पॉटरी के इतिहास से भी रूबरू करवाया जाता है. यह लोग वर्कशॉप में भाग लेने के बाद खुद के हाथ की बनाई कलाकृतियों को लेकर घर लौटते हैं और राजस्थान की यादों को हमेशा के लिए अपने साथ संजो कर ले जाते हैं. गरिमा ने यह सुझाव भी दिया है कि सरकारी स्तर पर भी इस तरह की कला को अंतरराष्ट्रीय मंच देने के लिए वर्कशॉप का आयोजन कर सकते हैं, जिससे राजस्थान आने वाले विदेशी सैलानी ना सिर्फ हमारी ऐतिहासिक विरासत से रूबरू होंगे, बल्कि हमारी ऐतिहासिक कला से वाकिफ होंगे.
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समृद्ध है ब्लू पॉटरी का इतिहास : जयपुर की ब्लू पॉटरी कला का नाम क्ले से बने सामान पर नीले रंग की डाई का उपयोग करने से पड़ा. इसे तैयार करने में मिट्टी का उपयोग नहीं किया जाता है, बल्कि क्वार्ट्ज पत्थर के पाउडर, कांच के पाउडर, मुल्तानी मिट्टी, बोरेक्स, कतीरा गोंद और पानी को मिलाकर तैयार किया जाता है. कई जगह कतीरा गोंद पाउडर और साजी (सोडा बाइकार्बोनेट) का भी उपयोग किया जाता है. औसतन, एक प्रोडक्ट को पूरा होने में कम से कम 10 दिन लगते हैं.
ब्लू पॉटरी कला अकबर के समय ईरान से लाहौर आई थी. इसके बाद जयपुर के महाराजा रामसिंह प्रथम लाहौर से इसे जयपुर लेकर आए. फिर महाराजा रामसिंह द्वितीय ने इसके विकास पर जोर दिया. तब जयपुर के चूड़ामन और कालूराम कुम्हार को इस कला को सीखने के लिए दिल्ली भेजा गया था. साल 1950 के करीब यह कला लुप्त होने की कगार पर थी, तब कृपाल सिंह शेखावत ने इसे पुनः जीवंत किया.