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दो रुपये के कागज के लिफाफे का कमाल; मलिहाबाद के आम उत्पादक किसान बने मालामाल, जानिए बंपर उत्पादन का फार्मूला? - Malihabad mango farmers

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Aug 18, 2024, 7:58 PM IST

लखनऊ का मलिहाबाद इलाका दशहरी आम (Dussehri Mango) के लिए देश विदेश में मशहूर है. लेकिन पिछले कुछ सालों से लगातार घटते उत्पादन से आम उत्पादक किसान निराश हो गए थे. लेकिन फिर आई एक ऐसी तकनीक ने किसानों के चेहरे पर खुशी ला दी है. इससे ना सिर्फ उत्पादन बढ़ा बल्कि मुनाफे में भी कई गुना का इजाफा भी हुआ.

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पेपर बैग तकनीक (Photo Credit; ETV Bharat)
अवध आम उत्पादक बागवानी समिति के महासचिव उपेंद्र कुमार सिंह (Video Credit; ETV Bharat)

लखनऊ: आम को फलो का राजा कहा जाता है. दुनिया भर में करीब 1500 किस्मों के आम के वेरायटी मिलते हैं और सभी का टेस्ट अलग होता है. लेकिन जो स्वाद लखनऊ के मलिहाबाद के दशहरी आम की है. वो किसी और में कहां है. इसीलिए आम के शौखिनों को मलिहाबादी दशहरी आम का इंतजार रहता है. हर साल की अपेक्षा इस साल मलिहाबाद का आम उत्पादक किसान खुश हैं. क्योंकि इस साल उन्होंने लाखों का मुनाफा कमाया है. दरअसल किसानों के बंपर मुनाफे के पीछे पेपर बैगिंग तकनीक का इस्तेमाल है. इस खास किस्म के पेपर से किसानों ने इस साल आम की बंपर पैदावार की है. जिससे उनके चेहरे खिल उठे हैं.

अवध आम उत्पादक बागवानी समिति के महासचिव उपेंद्र कुमार सिंह ने बताया कि, इस सीजन में उत्तर प्रदेश में किसानों ने 50 लाख पेपर बैग का इस्तेमाल किया. जिससे डेढ़ हजार हेक्टेयर में लगे दशहरी आम के पैदावार पर असर दिखा. पेपर लगे आम में ना तो कीड़े लगे. ना ही उनके साइज छोटे हुए और ना ही उनका रंग फीका पड़ा. जिससे मार्केट में अच्छे दाम मिले. वहीं नान पेपर बैगिंग वाले आम की कीमत मार्केट में कम मिली.

मलिहाबाद के आम की डिमांड
मलिहाबाद के आम की डिमांड (Photo Credit; ETV Bharat)

उपेंद्र कुमार सिंह ने कार्बाइड से पकाया आम और दूसरा पेपर बैगिंग वाला आम के बीच के अंतर को बताते हुए कहा कि, जब कार्बाइड से पकाया हुआ आम हम काटते हैं तो यह अंदर से पिलपिला होता है और गुठली के आसपास जेली जमी होती है, जो आम को ज्यादा दिन तक टिकने नहीं देती है. इसीलिए की वजह से अभी तक दशहरी को देश के बाहर नहीं भेजा जा रहा था, लेकिन बैगिंग वाले आम में जेली नहीं होती है. अंदर से पिलपिला नहीं होता है, जिस वजह से यह ज्यादा दिन तक चल सकता है. इसलिए दशहरी आम को विदेशों में भी भेजा जा रहा है, जिसका सीधा फायदा किसानों को हो रहा है.

आम के प्रगतिशील किसान उपेंद्र सिंह ने कहा कि, सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर सबट्रॉपिकल हॉर्टीकल्चर (CISH) लखनऊ छोटे आम उत्पादक किसानों को ट्रेनिंग दे रही है. हम 2016 से CISH से जुड़े हैं. यहां इंटरक्रॉपिंग, मिनिमम पेस्टीसाइड, बैगिंग के तरीके सिखाए जाते हैं. बैगिंग टेकनीक अपनाने से आम की कीमत 4 गुना ज्यादा मिली है. हमने 18-25 रुपये के आम को 100 रुपये किलो में भी बेचा. CISH में आम की 775 से ज्यादा किस्मों का संरक्षण किया गया है. पुरानी किस्मों को सहेजने के साथ ही नई वैराइटी विकसित की जा रही है. इसके लिए किसानों को ट्रेनिंग दी जाती है.

आम या अन्य फलों में बैगिंग से फल में फंगल संक्रमण, मक्खी और कीट से होने वाले नुकसान के साथ ही मौसम के दुष्प्रभाव से बचाव होता है. आम निर्यातक अकरम बेग ने कहा कि, आम की फसल की अच्छी कीमत पाने के लिए किसान आम पर बैगिंग जरूर लगाएं. उन्होंने कहा कि एक पेपर बैग की कीमत 2 रुपये होती है. एक किलो में चार से पांच आम चढ़ते हैं. यानी 10 रूपये खर्च पर चार से पांच आम को क्वालिटीयुक्त बनाया जा सकता है. बैगिंग अपनाने से आम का स्वाद, स्किन कलर और साइज बेहतर होता है, जिससे फल एक्सपोर्ट लायक हो जाता है.

यह भी पढ़ें : शहीदों की याद में तैयार कर दी आम की खास प्रजाति, नाम रखा '15 अगस्त मैंगो', खूबियों से है भरपूर, अगले साल ले सकेंगे स्वाद

अवध आम उत्पादक बागवानी समिति के महासचिव उपेंद्र कुमार सिंह (Video Credit; ETV Bharat)

लखनऊ: आम को फलो का राजा कहा जाता है. दुनिया भर में करीब 1500 किस्मों के आम के वेरायटी मिलते हैं और सभी का टेस्ट अलग होता है. लेकिन जो स्वाद लखनऊ के मलिहाबाद के दशहरी आम की है. वो किसी और में कहां है. इसीलिए आम के शौखिनों को मलिहाबादी दशहरी आम का इंतजार रहता है. हर साल की अपेक्षा इस साल मलिहाबाद का आम उत्पादक किसान खुश हैं. क्योंकि इस साल उन्होंने लाखों का मुनाफा कमाया है. दरअसल किसानों के बंपर मुनाफे के पीछे पेपर बैगिंग तकनीक का इस्तेमाल है. इस खास किस्म के पेपर से किसानों ने इस साल आम की बंपर पैदावार की है. जिससे उनके चेहरे खिल उठे हैं.

अवध आम उत्पादक बागवानी समिति के महासचिव उपेंद्र कुमार सिंह ने बताया कि, इस सीजन में उत्तर प्रदेश में किसानों ने 50 लाख पेपर बैग का इस्तेमाल किया. जिससे डेढ़ हजार हेक्टेयर में लगे दशहरी आम के पैदावार पर असर दिखा. पेपर लगे आम में ना तो कीड़े लगे. ना ही उनके साइज छोटे हुए और ना ही उनका रंग फीका पड़ा. जिससे मार्केट में अच्छे दाम मिले. वहीं नान पेपर बैगिंग वाले आम की कीमत मार्केट में कम मिली.

मलिहाबाद के आम की डिमांड
मलिहाबाद के आम की डिमांड (Photo Credit; ETV Bharat)

उपेंद्र कुमार सिंह ने कार्बाइड से पकाया आम और दूसरा पेपर बैगिंग वाला आम के बीच के अंतर को बताते हुए कहा कि, जब कार्बाइड से पकाया हुआ आम हम काटते हैं तो यह अंदर से पिलपिला होता है और गुठली के आसपास जेली जमी होती है, जो आम को ज्यादा दिन तक टिकने नहीं देती है. इसीलिए की वजह से अभी तक दशहरी को देश के बाहर नहीं भेजा जा रहा था, लेकिन बैगिंग वाले आम में जेली नहीं होती है. अंदर से पिलपिला नहीं होता है, जिस वजह से यह ज्यादा दिन तक चल सकता है. इसलिए दशहरी आम को विदेशों में भी भेजा जा रहा है, जिसका सीधा फायदा किसानों को हो रहा है.

आम के प्रगतिशील किसान उपेंद्र सिंह ने कहा कि, सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर सबट्रॉपिकल हॉर्टीकल्चर (CISH) लखनऊ छोटे आम उत्पादक किसानों को ट्रेनिंग दे रही है. हम 2016 से CISH से जुड़े हैं. यहां इंटरक्रॉपिंग, मिनिमम पेस्टीसाइड, बैगिंग के तरीके सिखाए जाते हैं. बैगिंग टेकनीक अपनाने से आम की कीमत 4 गुना ज्यादा मिली है. हमने 18-25 रुपये के आम को 100 रुपये किलो में भी बेचा. CISH में आम की 775 से ज्यादा किस्मों का संरक्षण किया गया है. पुरानी किस्मों को सहेजने के साथ ही नई वैराइटी विकसित की जा रही है. इसके लिए किसानों को ट्रेनिंग दी जाती है.

आम या अन्य फलों में बैगिंग से फल में फंगल संक्रमण, मक्खी और कीट से होने वाले नुकसान के साथ ही मौसम के दुष्प्रभाव से बचाव होता है. आम निर्यातक अकरम बेग ने कहा कि, आम की फसल की अच्छी कीमत पाने के लिए किसान आम पर बैगिंग जरूर लगाएं. उन्होंने कहा कि एक पेपर बैग की कीमत 2 रुपये होती है. एक किलो में चार से पांच आम चढ़ते हैं. यानी 10 रूपये खर्च पर चार से पांच आम को क्वालिटीयुक्त बनाया जा सकता है. बैगिंग अपनाने से आम का स्वाद, स्किन कलर और साइज बेहतर होता है, जिससे फल एक्सपोर्ट लायक हो जाता है.

यह भी पढ़ें : शहीदों की याद में तैयार कर दी आम की खास प्रजाति, नाम रखा '15 अगस्त मैंगो', खूबियों से है भरपूर, अगले साल ले सकेंगे स्वाद

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