नई दिल्ली: देश के किसी भी चुनाव में जातिगत पॉलिटिक्स का आकलन अहम होता है. राजनीतिक दल हर जाति और समुदाय के वोट बैंक का आकलन कर अपनी जीत-हार के दावे करते हैं. अब जबकि लोकसभा चुनावों का दौर जारी है, दिल्ली की सात संसदीय सीटों पर किस विधानसभा में किस समुदाय का सबसे ज्यादा वर्चस्व है. इसका गुणा भाग हो रहा है.
खासकर अब जब दिल्ली कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष पद से अरविंदर सिंह लवली ने इस्तीफा देकर भूचाल मचा दिया है, तो सिख और पंजाबी वोटर्स की चर्चा सबसे ज्यादा हो रही है. इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि दिल्ली की सात लोकसभा वाली 70 विधानसभाओं में से करीब 30 विधानसभाओं में सिख और पंजाबी वोटरों का अच्छा दबदबा है.
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राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि सात लोकसभा सीटों में से अकेले वेस्ट दिल्ली संसदीय क्षेत्र ऐसा है जहां सिख वोटरों की संख्या सबसे 10 फीसदी ज्यादा मानी जाती है. इसके अलावा साउथ दिल्ली, पूर्वी दिल्ली संसदीय क्षेत्र में भी इनकी अच्छी तादाद है. इन संसदीय क्षेत्रों की कई विधानसभाओं में सिख वोटर अच्छी संख्या में हैं. पश्चिमी दिल्ली संसदीय सीट के सिख बहुल इलाकों की बात करें तो राजौरी गार्डन, सुभाष नगर, तिलक नगर और हरि नगर आदि प्रमुख रूप से शामिल हैं.
इसके अलावा विकासपुरी, उत्तम नगर, द्वारका, पालम और मटियाला जैसी विधानसभाओं की बात करते तो यहां अनधिकृत कॉलोनियां ज्यादा होने की वजह से बिहार, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड आदि राज्यों से आए प्रवासी लोगों की घनी आबादी भी है. सिख वोटरों के साथ यह आबादी भी किसी पार्टी की जीत हार में बड़ी भूमिका निभाती आई है.
कई विधानसभा सीटों में पंजाबी वोटर 25 फीसदी
दिल्ली में करीब 10-12 फीसदी पंजाबी वोटर हैं. यह वोट बैंक हर छोटे बड़े चुनाव में बड़ी निर्णायक भूमिका निभाता है. देश विभाजन के बाद बड़ी संख्या में पंजाबी समुदाय दिल्ली में आया था. अगर दिल्ली विधानसभा की बात करें तो यहां करीब 20 असेंबली ऐसी हैं जहां पंजाबी वोटर्स का अच्छा दबदबा माना जाता है जबकि आठ असेंबली में इनकी तादाद करीब एक चौथाई यानी 25 फीसदी के करीब है. सिख बहुल क्षेत्रों की बात करें तो वेस्ट, साउथ और ईस्ट दिल्ली संसदीय क्षेत्रों की राजौरी गार्डन, हरि नगर, तिलक नगर, विकासपुरी, जनकपुरी, कालकाजी, जंगपुरा, कृष्णा नगर, गांधी नगर, शाहदरा असेंबली सीट प्रमुख रूप से
शामिल हैं.
सिख समुदाय के चरणजीत सिंह ने पहली बार जीता था साउथ दिल्ली से 1980 में चुनाव
दिल्ली में सिखों का कुल वोट 3 से 4 फीसदी है. आम चुनावों के इतिहास पर नजर डाली जाए तो सिर्फ साल 1980 में ही एक बार कांग्रेस के चरणजीत सिंह ने साउथ दिल्ली सीट से संसदीय चुनाव में जीत हासिल की थी. सातवीं लोकसभा के लिए हुए आम चुनाव में चरणजीत सिंह ने बीजेपी के प्रत्याशी प्रोफेसर विजय कुमार मल्होत्रा को शिकस्त दी थी. इससे पहले और बाद में कभी कोई सिख कैंडिडेट जीत हासिल नहीं कर पाया. यहां तक कि 2004 से 2014 तक दो बार यूपीए सरकार में प्रधानमंत्री रहे डॉ. मनमोहन सिंह भी 1999 में चुनाव हार गए थे. मनमोहन सिंह को वीके मल्होत्रा ने मात दी थी.
लवली की सिख-पंजाबी समुदाय में अच्छी पकड़
इस बीच देखा जाए तो अरविंदर सिंह लवली के दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को इस वोट बैंक से कुछ नुकसान होने की भी उम्मीद जताई जा रही है. दरअसल, कांग्रेस नेता लवली की पंजाबी और सिख समुदाय में बड़ी अपील मानी जाती है. लवली को बड़े सिख नेता के तौर पर जाना जाता है. दूसरी तरफ राजनीतिक पंडितों का यह भी मानना है कि उनकी वजह से कोई बड़ा नुकसान नहीं होने वाला है. आने वाले समय में दिल्ली की सियासत किस करवट बैठती है, यह देखना होगा.
दिल्ली में वोटरों की कुल संख्या 1.51 करोड़ के पार
दिल्ली में 22 जनवरी तक कुल वोटरों की संख्या 14718119 थी जिसमें पुरूष मतदाता 7986572 और महिला वोटर 6730371 हैं. वहीं, ट्रांसजेंडर मतदाताओं की संख्या 1176 है. लेकिन अब कुल मतदाताओं की संख्या में इजाफा हुआ है. 22 अप्रैल तक दिल्ली में 3.84 लाख नए मतदाता वोटर लिस्ट में और जुड़े हैं जिसके बाद कुल वोटरों की संख्या अब 1.51 करोड़ हो गई है. 26 अप्रैल के बाद इस लिस्ट में और मतदाताओं के भी जुड़ने की संभावना जताई जा रही है जिन्होंने वोटर बनने के लिए अप्लाई किया था.
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