शिमला: हिमाचल प्रदेश में मंडी जिला के नेरचौक में बना लाल बहादुर शास्त्री मेडिकल कॉलेज इन दिनों जमीनी विवाद के चलते सुर्खियों में है. जमीनी विवाद को लेकर प्रदेश सरकार और जमीन के मालिक मीर बख्श के बीच खींचतान चली हुई है. मीर बख्श का परिवार जमीन की इस लड़ाई को लगभग पिछले 70 सालों से लड़ रहा है. हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक इस मामले में अपना फैसला मीर बख्श के हक में सुना चुके हैं.
नेरचौक मेडिकल कॉलेज केंद्र सरकार के सहयोग से 765 करोड़ रुपए की लागत से बनाया गया है. साल 2009 में हिमाचल सरकार ने ईएसआई को एक रुपए लीज पर डेढ़ सौ बीघा जमीन मेडिकल कॉलेज अस्पताल के लिए दी थी. यूपीए सरकार के समय ये प्रोजेक्ट अस्तित्व में आया और तब हिमाचल में प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में भाजपा सरकार सत्ता में थी. साल 2014 में छह मार्च को यूपीए सरकार के केंद्रीय श्रम व रोजगार मंत्री आस्कर फर्नांडीज ने मंडी जिला के नेरचौक में ईएसआईसी यानी इम्पलाइज स्टेट इंश्योरेंस कॉरपोरेशन के तहत बनने वाले मेडिकल कॉलेज अस्पताल का उद्घाटन किया. उस समय हिमाचल में वीरभद्र सिंह सीएम थे. उस समय ये मालूम नहीं था कि यही जमीन दस साल बाद एक हजार करोड़ रुपए के मुआवजे का कारण बनेगी.
ये कॉलेज आरंभ में ईएसआई मेडिकल कॉलेज नेरचौक के नाम से जाना जाता था. ESI ने साल 2017-18 में ये मेडिकल कॉलेज और अस्पताल हिमाचल सरकार को इस शर्त के साथ सौंपा कि सरकार यहां एमबीबीएस की कक्षाएं बिठाएगी. केंद्र व राज्य के सहयोग से 765 करोड़ रुपए की लागत से विशाल परिसर बनकर तैयार हुआ था. अब एक दशक बाद ये मेडिकल कॉलेज सुर्खियों में आ गया है.
कई सालों पुरानी है विवाद की जड़
आजादी के समय नेरचौक के इलाके में कई मुस्लिम परिवार रहते थे. ये परिवार विभाजन के समय पाकिस्तान चले गए. भारत सरकार ने ये मान लिया था कि वर्ष 1947 में सुल्तान मोहम्मद भी परिवार सहित पाकिस्तान चले गए हैं. साल 1957 में सुल्तान मोहम्मद की 110 बीघा जमीन को इवेक्यूइ संपत्ति घोषित किया गया था. इसके बाद कुछ भूमि की नीलामी करने का निर्णय लिया गया, जबकि कुछ भूमि सरकार ने अपने पास रख ली. इस जमीन में से ही 8 बीघा सुल्तान मुहम्मद ने नीलामी में खुद ही खरीद ली थी. साल 1952-53 की जमाबंदी के कागजों के अनुसार ये जमीन सुल्तान मोहम्मद के पूर्वजों दीन मोहम्मद आदि की थी. ये जमीन भंगरोटू और नेरचौक इलाके में स्थित है.
1957 से शुरू हुई जमीन की लड़ाई
सुल्तान मोहम्मद 1957 से ही अपनी 110 बीघा जमीन के लिए लड़ाई शुरू की थी. सुल्तान मोहम्मद ने दिल्ली में इवेक्यूइ प्रॉपर्टी अपीलेट अथॉरिटी जिसे कस्टोडियन कहा जाता था में अपील दाखिल की. उन्हें इसमें कामयाबी नहीं मिली. बार-बार मामले को लेकर सुल्तान मोहम्मद ने अपील की थी और अंतिम बार अपील साल 1967 में रिजेक्ट हो गई. 1983 को सुल्तान मोहम्मद का देहांत हो गया. उसके बाद साल 1992 से उनके बेटे मीर बख्श ने इस लड़ाई को जारी रखा.
2002 में हाईकोर्ट में दायर की अपील
कई सालों की लड़ाई के बाद मीर बख्श 2002 में हाईकोर्ट में पहुंचे. उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर न्याय की गुहार लगाई. साल 2009 में हाईकोर्ट के तत्कालीन न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा ने मीर बख्श के हक में फैसला सुनाते हुए प्रदेश सरकार को उन्हें जमीन लौटाने के आदेश जारी किए थे. इस आदेश के खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की अपील को खारिज किया था, साथ ही सरकार पर 25 हजार रुपए की कॉस्ट भी लगाई थी.
राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि मीर बख्श द्वारा रखी गई संपत्ति निष्क्रांत संपत्ति प्रशासन अधिनियम, 1950 (संक्षेप में 1950 अधिनियम) की धारा 2(एफ) के अर्थ में निष्क्रांत संपत्ति है. इसे Evacuee Property Act, 1950 (for short "the 1950 Act") कहा जाता है. राज्य का तर्क था कि जमीन का मालिक सुल्तान मोहम्मद (जिनके वारिस मीर बख्श ने केस किया) उक्त कानून धारा 2 के खंड (डी) के अर्थ में निष्क्रांत व्यक्ति था. मामले में राज्य सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में स्वीकार किया था कि सुल्तान मोहम्मद 1983 में अपनी मृत्यु तक हिमाचल में ही रह रहा था. सुल्तान मोहम्मद कभी भारत से बाहर नहीं गए थे. सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई जस्टिस अभय ओका व जस्टिस संजय करोल ने की थी.
सरकार ने किसी भी प्रकार की वार्ता के लिए नहीं बुलाया
मीर बख्श ने कहा कि, 'ये मामला 1947 से चलता आ रहा है. हमारी जमीन केंद्र सरकार के पास चली गई थी. हमारे पिता ने दिल्ली में इवेक्यूइ प्रॉपर्टी अपीलेट अथॉरिटी में भी गुहार लगाई, उन्होंने गवर्नर से लेकर हर जगह इस मामले को उठाया था, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला, लेकिन 2009 में हाईकोर्ट, 2014 में हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच का भी फैसला उनके हक में आया. 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने भी फैसला उनके पक्ष में सुनाया. इसके बाद भी सरकार ने उन्हें किसी भी प्रकार की वार्ता के लिए नहीं बुलाया था.'
मीर बख्श ने दायर की है अनुपालना याचिका
अब मीर बख्श ने हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में अनुपालना याचिका दाखिल की हुई है. इसी याचिका की सुनवाई पर बीते कल हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को 12 हफ्ते के भीतर कार्रवाई करने के आदेश दिए हैं. मामले की सुनवाई के दौरान सरकार ने कहा कि प्रार्थी को मुआवजे के तौर पर भूमि देने के लिए भूमि का चयन करने की कार्रवाई जारी है.
मीर बख्श ने 10 अरब बताई जमीन की कीमत
मीर बख्श ने अपनी भूमि का मुआवजा आंकते हुए इसकी कीमत 10 अरब 61 करोड़ रुपए बताई है. अब प्रार्थी ने 500 करोड़ रुपए मूल्य की भूमि और 500 करोड़ रुपए की मुआवजा राशि की मांग की है. मीर बख्श का कहना है कि उनके पूर्वजों की जमीन नेरचौक में मुख्य मार्ग के दोनों तरफ है और उसका वर्तमान रेट 15 लाख रुपए बिस्वां बनता है. कुल जमीन की वर्तमान कीमत 10 अरब रुपए के करीब है. मीर बख्श का दावा है कि नेरचौक मेडिकल कॉलेज अस्पताल व कुछ अन्य सरकारी कार्यालय उसके पुरखों की जमीन पर बने हैं. इसके लिए मीर बख्श के परिवार ने बरसों तक अदालती लड़ाई लड़ी है.
2009 में हाईकोर्ट के आदेश पर राज्य सरकार ने मंडी जिला प्रशासन को 90 बीघा से अधिक जमीन तलाशने के लिए कहा. मंडी जिला प्रशासन ने केस बनाकर सरकार को भेजा. जोगेंद्र नगर के समीप पद्धर सब डिविजन में 91 बीघा भूमि एक साथ मिली, लेकिन स्थानीय लोग इस भूमि को देने के विरोध में हैं.
ये भी पढ़ें: निजी जमीन पर बना है नेरचौक मेडिकल कॉलेज, मालिक ने मांगे ₹10.61 अरब