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आखिर उत्तर प्रदेश में क्यों नहीं रुक रहे अवैध पटाखा फैक्ट्री में धमाके और मौत, कौन है जिम्मेदार?

दीपावली का त्यौहार नजदीक आते ही हर साल होते हैं धमाके, इसके बाद शासन और प्रशासन की खुलती है नींद, निरीक्षण के नाम पर खानापूर्ति

हर वर्ष होते हैं अवैध पटाखा फैक्ट्री में धमाके.
हर वर्ष होते हैं अवैध पटाखा फैक्ट्री में धमाके. (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Oct 8, 2024, 5:19 PM IST

लखनऊ: राजधानी के सिसेंडी गांव में चल रही अवैध पटाखा फैक्ट्री में 20 सितंबर 2014 को ब्लास्ट हुआ था, जिसमे 22 लोगों की मौत हुई थी. इस हादसे के बाद यह दावा किया गया कि राज्य में अब एक भी अवैध पटाखा फैक्ट्री संचालित नहीं होने दी जाएगी. लेकिन इसके बाद मलिहाबाद, हरदोई, शाजहांपुर, कुशीनगर, मेरठ और अन्य जिलों में अवैध पटाखा फैक्ट्री में हुए धमकों में लोगों कि जान जाने का सिलसिला जारी रहा. ऐसे में सवाल उठता है कि इन अवैध पटाखा फैक्ट्रियों के संचालन के लिए कौन-कौन से विभाग जिम्मेदार है.


गौरलब है कि 2 अक्टूबर को बरेली में पटाखा फैक्ट्री में हुए धमाके में सात लोगों की मौत हो गयी थी. 7 अक्टूबर को गोंडा में एक और पटाखा फैक्ट्री में धमाका हुआ, जिसमे तीन लोगों के चीथड़े उड़ गए. इस हादसे के बाद कुशीनगर पुलिस ने पडरौना में चल रही एक अवैध पटाखा फैक्ट्री का भंडाफोड़ किया. गोंडा में भी हादसे स्थल पर ही चल रही दूसरी फैक्ट्री में भारी संख्या में बारूद बरामद किया. पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह कहते है कि यह कोई नई बात नहीं है कि किसी हादसे होने के बाद पुलिस ने संचालित हो रहे अवैध धंधों को उजागर किया हो.

सबसे अधिक पुलिस की भूमिकाः पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह कहते है कि किसी भी राज्य का थाना प्रभारी यह कह दे कि उसके क्षेत्र में कोई गैरकानूनी गतिविधि चल रही है या अवैध धंधा फल फूल रहा और उसे मालूम ही नहीं चला. यह सिर्फ एक भद्दा मज़ाक हो सकता है. ऐसे पुलिसकर्मी को तो थाना प्रभारी बनाना ही नहीं चाहिए. थाना प्रभारी को उसके इलाके में होने वाली हर अवैध धंधों कि जानकारी होती है. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब उसके जिले या अन्य पडोसी जिले में कोई हादसा होता है तो वह कैसे अवैध धंधों को एक ही दिन में ढूंढ लेता है. पूर्व डीजीपी ने बताया कि अवैध पटाखा फैक्ट्री संचालित होने की सबसे अधिक जिम्मेदार स्थानीय पुलिस होती है.

हाल ही में कई जिले में हुए धमाके.
हाल ही में कई जिले में हुए धमाके. (Photo Credit; ETV Bharat)
स्थानीय प्राधिकरण भी जिम्मेदारः स्थानीय प्राधिकरण यानिकि नगर निगम, नगर पालिका, ग्राम पंचायत भी अपने क्षेत्र की हर गतिविधियों पर नजर रखते है. रिटायर्ड ब्लॉक डेवलोपमेन्ट अधिकारी महेन्द्र शुक्ला कहते हैं कि अधिकांश पटाखा फैक्ट्री ग्रामीण इलाको में ही होती हैं, जहाँ ग्राम पंचायत या फिर नगर पंचायत होती है. ऐसे में गांव में अवैध फैक्ट्री चल रही हो और प्रधान या नगर पंचायत से जुड़े किसी अधिकारी प्रतिनिधि को ना पता हो, यह हो ही नहीं सकता है. इन्ही के संरक्षण में यह सब अवैध कार्य हो रहे होते है. लखनऊ में हुए सिसेंडी हादसे में तो जिस घर में विस्फोट हुआ, उससे चार घर दूर ग्राम प्रधान का ही घर था. जिसे भलीभांति पता था कि उस घर में पटाखे बनाये जा रहे है. ऐसे में स्थानीय प्राधिकरण भी लोगों को खतरे में डालने के लिए भी जिम्मेदार है. निरीक्षण करना एसडीएम का कार्यः नियमानुसार आतिशबाजी भण्डारण के लिए छोटे व्यापारी को डीएम और 2500 किलो से ऊपर के कारोबारी को मुख्य विस्फोटक नियंत्रक से लाइसेंस लेना जरुरी होता है. ऐसे में एक एसडीएम को यह जानकारी रहती है कि उसके क्षेत्र में कितने लोगों को पटाखा बनाने का लाइसेंस दिया गया है और उसके लिए क्या मानक निर्धारित किये गए है. यदि एसडीएम समय-समय पर पटाखों की फैक्ट्री कि जांच करें तो शायद कार्रवाई के डर से अवैध फैक्ट्री संचालित ना हो सके. लेकिन आमतौर पर एसडीएम तब ही जांच करता है जब किसी जिले में विस्फोट हादसा हुआ हो और शीर्ष स्तर से जांच के लिए आदेश न हो.


अफसरों को निर्देश दिए गए हैं कि जिन पटाखा फैक्ट्रियों को लाइसेंस दिया गया है, वहां सम्बंधित सीओ, एसडीएम, और सम्बंधित थाना प्रभारी व फायर सर्विस की संयुक्त टीम जाकर निरीक्षण करें. इस दौरान मौके की वीडियोग्राफी की जाये. इसके बाद जिले के बड़े अफसर भी क्रॉस चेक करें ताकि निरीक्षण के बाद भी कोई हादसा हो तो जिम्मेदारी व जवाबदेही तय की जा सके.- प्रशांत कुमार, डीजीपी



गोंडा में अवैध पटाखा फैक्ट्री में जबरदस्त विस्फोट, 2 युवकों की मौत, 5 की हालत नाजुक
बरेली में अवैध पटाखा फैक्ट्री में धमाका; 4 मकान जमींदोज, 2 बच्चों समेत 6 लोगों की मौत, एक आरोपी गिरफ्तार
झांसी में अवैध पटाखा फैक्ट्री में धमाके से दहला इलाका, 6 महिलाएं समेत सात लोग झुलसे

लखनऊ: राजधानी के सिसेंडी गांव में चल रही अवैध पटाखा फैक्ट्री में 20 सितंबर 2014 को ब्लास्ट हुआ था, जिसमे 22 लोगों की मौत हुई थी. इस हादसे के बाद यह दावा किया गया कि राज्य में अब एक भी अवैध पटाखा फैक्ट्री संचालित नहीं होने दी जाएगी. लेकिन इसके बाद मलिहाबाद, हरदोई, शाजहांपुर, कुशीनगर, मेरठ और अन्य जिलों में अवैध पटाखा फैक्ट्री में हुए धमकों में लोगों कि जान जाने का सिलसिला जारी रहा. ऐसे में सवाल उठता है कि इन अवैध पटाखा फैक्ट्रियों के संचालन के लिए कौन-कौन से विभाग जिम्मेदार है.


गौरलब है कि 2 अक्टूबर को बरेली में पटाखा फैक्ट्री में हुए धमाके में सात लोगों की मौत हो गयी थी. 7 अक्टूबर को गोंडा में एक और पटाखा फैक्ट्री में धमाका हुआ, जिसमे तीन लोगों के चीथड़े उड़ गए. इस हादसे के बाद कुशीनगर पुलिस ने पडरौना में चल रही एक अवैध पटाखा फैक्ट्री का भंडाफोड़ किया. गोंडा में भी हादसे स्थल पर ही चल रही दूसरी फैक्ट्री में भारी संख्या में बारूद बरामद किया. पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह कहते है कि यह कोई नई बात नहीं है कि किसी हादसे होने के बाद पुलिस ने संचालित हो रहे अवैध धंधों को उजागर किया हो.

सबसे अधिक पुलिस की भूमिकाः पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह कहते है कि किसी भी राज्य का थाना प्रभारी यह कह दे कि उसके क्षेत्र में कोई गैरकानूनी गतिविधि चल रही है या अवैध धंधा फल फूल रहा और उसे मालूम ही नहीं चला. यह सिर्फ एक भद्दा मज़ाक हो सकता है. ऐसे पुलिसकर्मी को तो थाना प्रभारी बनाना ही नहीं चाहिए. थाना प्रभारी को उसके इलाके में होने वाली हर अवैध धंधों कि जानकारी होती है. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब उसके जिले या अन्य पडोसी जिले में कोई हादसा होता है तो वह कैसे अवैध धंधों को एक ही दिन में ढूंढ लेता है. पूर्व डीजीपी ने बताया कि अवैध पटाखा फैक्ट्री संचालित होने की सबसे अधिक जिम्मेदार स्थानीय पुलिस होती है.

हाल ही में कई जिले में हुए धमाके.
हाल ही में कई जिले में हुए धमाके. (Photo Credit; ETV Bharat)
स्थानीय प्राधिकरण भी जिम्मेदारः स्थानीय प्राधिकरण यानिकि नगर निगम, नगर पालिका, ग्राम पंचायत भी अपने क्षेत्र की हर गतिविधियों पर नजर रखते है. रिटायर्ड ब्लॉक डेवलोपमेन्ट अधिकारी महेन्द्र शुक्ला कहते हैं कि अधिकांश पटाखा फैक्ट्री ग्रामीण इलाको में ही होती हैं, जहाँ ग्राम पंचायत या फिर नगर पंचायत होती है. ऐसे में गांव में अवैध फैक्ट्री चल रही हो और प्रधान या नगर पंचायत से जुड़े किसी अधिकारी प्रतिनिधि को ना पता हो, यह हो ही नहीं सकता है. इन्ही के संरक्षण में यह सब अवैध कार्य हो रहे होते है. लखनऊ में हुए सिसेंडी हादसे में तो जिस घर में विस्फोट हुआ, उससे चार घर दूर ग्राम प्रधान का ही घर था. जिसे भलीभांति पता था कि उस घर में पटाखे बनाये जा रहे है. ऐसे में स्थानीय प्राधिकरण भी लोगों को खतरे में डालने के लिए भी जिम्मेदार है. निरीक्षण करना एसडीएम का कार्यः नियमानुसार आतिशबाजी भण्डारण के लिए छोटे व्यापारी को डीएम और 2500 किलो से ऊपर के कारोबारी को मुख्य विस्फोटक नियंत्रक से लाइसेंस लेना जरुरी होता है. ऐसे में एक एसडीएम को यह जानकारी रहती है कि उसके क्षेत्र में कितने लोगों को पटाखा बनाने का लाइसेंस दिया गया है और उसके लिए क्या मानक निर्धारित किये गए है. यदि एसडीएम समय-समय पर पटाखों की फैक्ट्री कि जांच करें तो शायद कार्रवाई के डर से अवैध फैक्ट्री संचालित ना हो सके. लेकिन आमतौर पर एसडीएम तब ही जांच करता है जब किसी जिले में विस्फोट हादसा हुआ हो और शीर्ष स्तर से जांच के लिए आदेश न हो.


अफसरों को निर्देश दिए गए हैं कि जिन पटाखा फैक्ट्रियों को लाइसेंस दिया गया है, वहां सम्बंधित सीओ, एसडीएम, और सम्बंधित थाना प्रभारी व फायर सर्विस की संयुक्त टीम जाकर निरीक्षण करें. इस दौरान मौके की वीडियोग्राफी की जाये. इसके बाद जिले के बड़े अफसर भी क्रॉस चेक करें ताकि निरीक्षण के बाद भी कोई हादसा हो तो जिम्मेदारी व जवाबदेही तय की जा सके.- प्रशांत कुमार, डीजीपी



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