लखनऊ: राजधानी के सिसेंडी गांव में चल रही अवैध पटाखा फैक्ट्री में 20 सितंबर 2014 को ब्लास्ट हुआ था, जिसमे 22 लोगों की मौत हुई थी. इस हादसे के बाद यह दावा किया गया कि राज्य में अब एक भी अवैध पटाखा फैक्ट्री संचालित नहीं होने दी जाएगी. लेकिन इसके बाद मलिहाबाद, हरदोई, शाजहांपुर, कुशीनगर, मेरठ और अन्य जिलों में अवैध पटाखा फैक्ट्री में हुए धमकों में लोगों कि जान जाने का सिलसिला जारी रहा. ऐसे में सवाल उठता है कि इन अवैध पटाखा फैक्ट्रियों के संचालन के लिए कौन-कौन से विभाग जिम्मेदार है.
गौरलब है कि 2 अक्टूबर को बरेली में पटाखा फैक्ट्री में हुए धमाके में सात लोगों की मौत हो गयी थी. 7 अक्टूबर को गोंडा में एक और पटाखा फैक्ट्री में धमाका हुआ, जिसमे तीन लोगों के चीथड़े उड़ गए. इस हादसे के बाद कुशीनगर पुलिस ने पडरौना में चल रही एक अवैध पटाखा फैक्ट्री का भंडाफोड़ किया. गोंडा में भी हादसे स्थल पर ही चल रही दूसरी फैक्ट्री में भारी संख्या में बारूद बरामद किया. पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह कहते है कि यह कोई नई बात नहीं है कि किसी हादसे होने के बाद पुलिस ने संचालित हो रहे अवैध धंधों को उजागर किया हो.
सबसे अधिक पुलिस की भूमिकाः पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह कहते है कि किसी भी राज्य का थाना प्रभारी यह कह दे कि उसके क्षेत्र में कोई गैरकानूनी गतिविधि चल रही है या अवैध धंधा फल फूल रहा और उसे मालूम ही नहीं चला. यह सिर्फ एक भद्दा मज़ाक हो सकता है. ऐसे पुलिसकर्मी को तो थाना प्रभारी बनाना ही नहीं चाहिए. थाना प्रभारी को उसके इलाके में होने वाली हर अवैध धंधों कि जानकारी होती है. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब उसके जिले या अन्य पडोसी जिले में कोई हादसा होता है तो वह कैसे अवैध धंधों को एक ही दिन में ढूंढ लेता है. पूर्व डीजीपी ने बताया कि अवैध पटाखा फैक्ट्री संचालित होने की सबसे अधिक जिम्मेदार स्थानीय पुलिस होती है.
अफसरों को निर्देश दिए गए हैं कि जिन पटाखा फैक्ट्रियों को लाइसेंस दिया गया है, वहां सम्बंधित सीओ, एसडीएम, और सम्बंधित थाना प्रभारी व फायर सर्विस की संयुक्त टीम जाकर निरीक्षण करें. इस दौरान मौके की वीडियोग्राफी की जाये. इसके बाद जिले के बड़े अफसर भी क्रॉस चेक करें ताकि निरीक्षण के बाद भी कोई हादसा हो तो जिम्मेदारी व जवाबदेही तय की जा सके.- प्रशांत कुमार, डीजीपी
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