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क्या था हिमाचल का संसदीय सचिव एक्ट? हाईकोर्ट ने कर दिया है अमान्य, अब सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा मामला

हिमाचल प्रदेश में हाईकोर्ट ने संसदीय सचिव एक्ट को अमान्य करार दिया है. जिसके खिलाफ सुक्खू सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है.

PARLIAMENTARY SECRETARIES ACT 2006
हिमाचल प्रदेश विधानसभा (File Photo)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Nov 21, 2024, 1:21 PM IST

शिमला: छोटे पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में इस समय राजनीतिक घमासान मचा हुआ है. ये घमासान सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में छह मुख्य संसदीय सचिवों यानी सीपीएस की नियुक्ति को लेकर है. सीपीएस की नियुक्ति से जुड़े एक्ट को हिमाचल हाईकोर्ट ने अमान्य करार दिया है. साथ ही सभी मुख्य संसदीय सचिवों को भी उनके पदों से तुरंत प्रभाव से हटा दिया. उसके बाद से ही हिमाचल प्रदेश का ये एक्ट चर्चा में है. आखिर ये एक्ट क्या था और इसके प्रावधान क्या थे? इसकी पड़ताल आगे की जा रही है.

हिमाचल प्रदेश में वीरभद्र सिंह सरकार के समय ये एक्ट अस्तित्व में आया था. इस एक्ट का नाम हिमाचल प्रदेश संसदीय सचिव (नियुक्ति, वेतन, भत्ते, शक्तियां, विशेषाधिकार और सुविधाएं) अधिनियम, 2006 रखा गया था. इस एक्ट के अनुसार मुख्यमंत्री अपने विशेषाधिकार से सरकार में मुख्य संसदीय सचिव व संसदीय सचिवों की नियुक्ति कर सकते हैं. इन्हें शपथ दिलाना भी मुख्यमंत्री के अधिकार क्षेत्र में रखा गया था. एक्ट में संसदीय सचिवों की शक्तियों, वेतन-भत्ते आदि सहित कार्य का ब्यौरा दर्ज किया गया था. इस एक्ट को 23 जनवरी 2007 में राज्यपाल की मंजूरी मिली थी. एक्ट को 27 दिसंबर 2006 को पास किया गया था.

PARLIAMENTARY SECRETARIES ACT 2006
संसदीय सचिव एक्ट 2006 (ETV Bharat)

एक्ट में क्या थी संसदीय सचिवों की शक्तियां?

हालांकि एक्ट के नाम में संसदीय सचिव है, लेकिन सीएम चाहे तो मुख्य संसदीय सचिव व संसदीय सचिव या फिर इन दोनों में से किसी एक की नियुक्ति कर सकता था. वीरभद्र सिंह सरकार के समय सीपीएस व पीएस नियुक्त थे. प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार में भी सीपीएस की नियुक्ति की गई थी. बाद में जयराम सरकार के समय सीपीएस की नियुक्ति से परहेज किया गया. सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार ने छह सीपीएस बनाए. सुक्खू सरकार ने पीएस यानी संसदीय सचिव नहीं बनाए.

PARLIAMENTARY SECRETARIES ACT 2006
संसदीय सचिव एक्ट 2006 (ETV Bharat)

सीपीएस के पास किसी भी प्रशासनिक सचिव के प्रस्ताव को मंजूर करने की शक्तियां नहीं रखी गई थी. अलबत्ता वो फाइल पर विभाग विशेष के मिनिस्टर इंचार्ज के ध्यानार्थ नोट लिख सकता था. सीपीएस को मूल वेतन के तौर पर 65 हजार रुपए मिलते थे. संसदीय सचिव के लिए ये वेतन 60 हजार रुपए था. कुल वेतन व भत्तों के तौर पर सीपीएस को 2.25 लाख रुपए मिलते थे. इसके अलावा सरकारी मकान, गाड़ी, स्टाफ आदि की सुविधा रखी गई थी. राजनीतिक रूप से देखें तो मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति किसी भी सरकार में अपने करीबी लोगों को एडजस्ट करने के लिए की जाती रही है. हिमाचल में मंत्रिमंडल का आकार सीएम सहित 12 का है. अन्य विधायकों को सीपीएस के तौर पर एडजस्ट किया जाता था. सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार में सीएम के छह करीबियों को सीपीएस बनाया गया था. इसे भाजपा नेताओं व एक महिला याची कल्पना देवी ने चैलेंज किया था, जिस पर हाईकोर्ट ने उन्हें हटाने का फैसला सुनाया और साथ ही एक्ट को भी अमान्य कर दिया. अब मामला सुप्रीम कोर्ट में है और इस पर कल सुनवाई होगी.

ये भी पढ़ें: आठ साल पहले दी थी सीपीएस नियुक्ति को चुनौती, उस याचिका पर भी आया एक्ट को असंवैधानिक बताने वाला फैसला

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शिमला: छोटे पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में इस समय राजनीतिक घमासान मचा हुआ है. ये घमासान सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में छह मुख्य संसदीय सचिवों यानी सीपीएस की नियुक्ति को लेकर है. सीपीएस की नियुक्ति से जुड़े एक्ट को हिमाचल हाईकोर्ट ने अमान्य करार दिया है. साथ ही सभी मुख्य संसदीय सचिवों को भी उनके पदों से तुरंत प्रभाव से हटा दिया. उसके बाद से ही हिमाचल प्रदेश का ये एक्ट चर्चा में है. आखिर ये एक्ट क्या था और इसके प्रावधान क्या थे? इसकी पड़ताल आगे की जा रही है.

हिमाचल प्रदेश में वीरभद्र सिंह सरकार के समय ये एक्ट अस्तित्व में आया था. इस एक्ट का नाम हिमाचल प्रदेश संसदीय सचिव (नियुक्ति, वेतन, भत्ते, शक्तियां, विशेषाधिकार और सुविधाएं) अधिनियम, 2006 रखा गया था. इस एक्ट के अनुसार मुख्यमंत्री अपने विशेषाधिकार से सरकार में मुख्य संसदीय सचिव व संसदीय सचिवों की नियुक्ति कर सकते हैं. इन्हें शपथ दिलाना भी मुख्यमंत्री के अधिकार क्षेत्र में रखा गया था. एक्ट में संसदीय सचिवों की शक्तियों, वेतन-भत्ते आदि सहित कार्य का ब्यौरा दर्ज किया गया था. इस एक्ट को 23 जनवरी 2007 में राज्यपाल की मंजूरी मिली थी. एक्ट को 27 दिसंबर 2006 को पास किया गया था.

PARLIAMENTARY SECRETARIES ACT 2006
संसदीय सचिव एक्ट 2006 (ETV Bharat)

एक्ट में क्या थी संसदीय सचिवों की शक्तियां?

हालांकि एक्ट के नाम में संसदीय सचिव है, लेकिन सीएम चाहे तो मुख्य संसदीय सचिव व संसदीय सचिव या फिर इन दोनों में से किसी एक की नियुक्ति कर सकता था. वीरभद्र सिंह सरकार के समय सीपीएस व पीएस नियुक्त थे. प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार में भी सीपीएस की नियुक्ति की गई थी. बाद में जयराम सरकार के समय सीपीएस की नियुक्ति से परहेज किया गया. सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार ने छह सीपीएस बनाए. सुक्खू सरकार ने पीएस यानी संसदीय सचिव नहीं बनाए.

PARLIAMENTARY SECRETARIES ACT 2006
संसदीय सचिव एक्ट 2006 (ETV Bharat)

सीपीएस के पास किसी भी प्रशासनिक सचिव के प्रस्ताव को मंजूर करने की शक्तियां नहीं रखी गई थी. अलबत्ता वो फाइल पर विभाग विशेष के मिनिस्टर इंचार्ज के ध्यानार्थ नोट लिख सकता था. सीपीएस को मूल वेतन के तौर पर 65 हजार रुपए मिलते थे. संसदीय सचिव के लिए ये वेतन 60 हजार रुपए था. कुल वेतन व भत्तों के तौर पर सीपीएस को 2.25 लाख रुपए मिलते थे. इसके अलावा सरकारी मकान, गाड़ी, स्टाफ आदि की सुविधा रखी गई थी. राजनीतिक रूप से देखें तो मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति किसी भी सरकार में अपने करीबी लोगों को एडजस्ट करने के लिए की जाती रही है. हिमाचल में मंत्रिमंडल का आकार सीएम सहित 12 का है. अन्य विधायकों को सीपीएस के तौर पर एडजस्ट किया जाता था. सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार में सीएम के छह करीबियों को सीपीएस बनाया गया था. इसे भाजपा नेताओं व एक महिला याची कल्पना देवी ने चैलेंज किया था, जिस पर हाईकोर्ट ने उन्हें हटाने का फैसला सुनाया और साथ ही एक्ट को भी अमान्य कर दिया. अब मामला सुप्रीम कोर्ट में है और इस पर कल सुनवाई होगी.

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