नई दिल्ली: दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार एक बार फिर सवालों के घेरे में आती नजर आ रही है. सरकारी स्कूलों में बनवाए गए एडिशनल क्लास रूम की योजना अब विजिलेंस विभाग के निशाने पर है. सेंट्रल विजिलेंस कमीशन (सीवीसी) के चीफ टेक्निकल एग्जामिनर (सीटीई) की जांच के बाद दिल्ली सरकार के विजिलेंस विभाग ने भी मामले की इंक्वायरी की है. कई स्तर पर पायी गई वित्तीय व प्रशासनिक अनियमितताओं के चलते लोक निर्माण विभाग के 24 सीनियर अफसरों पर कार्रवाई की गई है.
पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर इन चीफ से लेकर एग्जीक्यूटिव इंजीनियर स्तर तक के तकरीबन 24 सीनियर अफसरों को कारण बताओ नोटिस जारी किए गए हैं. इस पूरे मामले पर उनसे जवाब तलब किया गया है. यह सभी नोटिस दिल्ली सरकार के विजिलेंस निदेशालय के स्पेशल सेक्रेटरी वाईवीवीजे राजशेखर की ओर से 26 जुलाई को जारी किए गए हैं. यह पूरा मामला साल 2015 से जुड़ा है.
2015 का है मामलाः दरअसल, दिल्ली सरकार के शिक्षा सचिव की तरफ से 30 अप्रैल, 2015 को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सामने एक पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन प्रस्तुत किया गया था, जिसमें दिल्ली के सरकारी स्कूलों में छात्र कक्षा अनुपात को काफी ज्यादा पाया गया था. इसके बाद अतिरिक्त कक्षा बनाने की योजना तैयार की गई. सेक्रेट्री एजुकेशन ने 11 मई, 2015 को तत्कालीन सचिव लोक निर्माण विभाग से अतिरिक्त कक्षाओं के निर्माण के लिए सर्वे करने और एक अनुमानित लागत तैयार करने का आग्रह किया. इसके बाद लोक निर्माण विभाग ने इसको लेकर योजना तैयार की, लेकिन इसको लेकर एक कंसोलिडेटेड एस्टीमेट तैयार करने की बजाय इसके लिए 16 प्रीलिमिनरी प्रोजेक्ट्स मंजूर किए, जिनको छोटे-छोटे हिस्सों में बांटकर 63 टेंडर जारी कर डाले. इन सभी प्रोजेक्ट्स के लिए पीडब्ल्यूडी की ओर से कुल अनुमानित लागत 1033.73 करोड़ रुपए निर्धारित की गई, जिसको लेकर रिपोर्ट शिक्षा विभाग को सौंपी गई.
नियमों में हेरफेर का आरोपः विजिलेंस विभाग ने इस मामले में जांच के दौरान पाया है कि इस स्कीम को लेकर खर्च की जाने वाली राशि की मंजूरी लेने में नियमों का घोर उल्लंघन किया गया. जांच रिपोर्ट की माने तो 12 मार्च, 2015 को दिल्ली सरकार के फाइनेंस (अकाउंट्स) विभाग की ओर से जो ऑफिस मेमोरेंडम जारी किया गया था, उसके मुताबिक 100 करोड़ रुपए की लागत तक के प्रोजेक्ट्स वर्क के लिए कंपीटेंट अथॉरिटी से मंजूरी लेना अनिवार्य है. वहीं, इससे ऊपर के कार्यों और सभी संबंधित योजनाओं के लिए कैबिनेट की मंजूरी अनिवार्य है. जांच में पाया गया कि इस मामले में शिक्षा विभाग और पीडब्ल्यूडी ने मिलकर इन सभी प्रोजेक्ट्स को छोटे-छोटे हिस्सों में बांटकर कुल 63 टेंडर जारी कर दिए.
गाइडलाइन को दरकिनार कर 10 दिन में ही सबमिट कर दियाः लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए यह भी सब साफ किया है कि सीपीडब्ल्यूडी वर्क्स मैन्युअल 2014 के मुताबिक 2 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत वाले कार्यों के लिए कम से कम दो सप्ताह यानी 14 दिनों का वक्त इसके पब्लिकेशन और निविदा सबमिट करने के लिए निश्चित है. लेकिन इस मामले में बेहद ही तत्परता दिखाते हुए सभी जरूरी निर्देशों और गाइडलाइंस को दरकिनार करते हुए 7 से 10 दिनों के भीतर निविदा सबमिट कर दी गई. जो भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के एक्सपेंडिचर डिपार्टमेंट की ओर से जारी किए गए दिशा निर्देशों का भी उल्लंघन करती है.
विजिलेंस विभाग का मानना है कि एडिशनल क्लासरूम के निर्माण के दौरान तमाम स्कूलों में जगह को भी शिफ्ट किया गया, जो संबंधित पीडब्ल्यूडी के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर की ओर से दलील देने के बाद किया गया. अधिकारियों की ओर से कई जगहों पर इस तरह से अतिरिक्त कक्षाओं का निर्माण करना उचित नहीं समझा.
नहीं किया फिजिबिलिटी सर्वेः विजिलेंस विभाग ने ये भी माना है कि एडिशनल क्लासरूम निर्माण करने से पहले पीडब्ल्यूडी की ओर से किसी तरह का कोई फिजिबिलिटी सर्वे नहीं किया. इसका पता लगाना जरूरी नहीं समझा कि जहां पर कक्षा बनाए जाने हैं, वहां की जमीन की ताकत कैसी है. इस तरह के कक्षों का निर्माण करने के लिए लोकल अथॉरिटीज से किसी प्रकार की कोई अनुमति नहीं ली गई. जांच पड़ताल के दौरान यह भी सामने आया है कि स्कूल में बनाए जाने वाले कक्षा कक्ष को शिफ्ट करने का निर्णय शिक्षा विभाग के डिप्टी डायरेक्टर लेवल के अधिकारी खुद ले रहे थे.
2016 में आर्किटेक्ट मैसर्स की सिफारिश से बढ़ी लागत: रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि 21 जून 2016 को पीडब्ल्यूडी मिनिस्टर की अध्यक्षता में हुई मीटिंग में आर्किटेक्ट मैसर्स बब्बर और बब्बर एसोसिएट्स की ओर से कुछ रिचर स्पेसिफिकेशन दी गई, जिनको मंजूर कर लिया गया. इन सिफारिशों को एग्जीक्यूटिव इंजीनियर की ओर से चीफ इंजीनियर की सहमति से अगले दिन 22 जून, 2016 को एक सर्कुलर जारी कर लागू कर दिया गया. इस सर्कुलर पर पीडब्ल्यूडी के सेक्रेटरी-कम-इंजीनियर इन चीफ और प्रिंसिपल चीफ इंजीनियर (मेंटेनेंस) और अन्य किसी भी अफसर की तरफ से कोई आपत्ति नहीं जताई गई. इसको सभी ठेकेदारों के लिए जारी कर दिया गया.
इस सर्कुलर के जारी होने के बाद रिचर स्पेसिफिकेशन अडॉप्ट करने की वजह से कंस्ट्रक्शन की लागत 326.25 करोड़ रुपए तक बढ़ गई. जबकि बिना कंपीटेंट अथॉरिटी मंजूरी और बिना फ्रेश टेंडर जारी किए इस बड़ी लागत को मंजूर नहीं किया जा सकता. इस तरह की प्रक्रिया को प्राइवेट ठेकेदारों को अनुचित तरीके से सीधे लाभ पहुंचाने के रूप में देखा गया है. इस कार्य में प्रतिस्पर्धा रखने वाले ठेकेदार को पहले ही बाहर कर दिया गया क्योंकि पहले वाले ठेकेदारों को यह नई सिफारिशों वाला काम सौंप दिया गया.
पीडब्ल्यूडी ने बताए 29 रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम मिले सिर्फ दो: इस पूरे मामले में विजिलेंस कमिशन के चीफ टेक्निकल एग्जामिनर ने जांच पड़ताल में तमाम कमियां और अनियमिताएं पाई हैं. विजिलेंस विभाग ने पाया है कि आर्किटेक्ट मैसर्स बब्बर की ओर से जो खास विशेषताएं क्लासरूम निर्माण को लेकर बताई थी, उनको लागू करने की वजह से पूर्व में जो राशि इस योजना के लिए निर्धारित की गई थी उसमें 326.25 करोड़ रुपए की वृद्धि हो गई जोकि प्रथम दृष्टया जनरल फाइनेंस रूल 129 सीपीडब्ल्यूडी वर्क्स मैन्युअल की वित्तीय अनियमितताओं और वायलेशन को दर्शाती है. इसके अतिरिक्त पता चला कि पीडब्ल्यूडी ने 29 रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने का दावा किया था. जबकि सिर्फ 2 रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम ही लगाए गए हैं. इसी तरह से सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स के मामले में भी कमियां पाई गई हैं.
160 टॉयलेट्स ब्लॉक की जगह बना दिए 1214 टॉयलेट ब्लॉक: वहीं, 160 टॉयलेट्स ब्लॉक की जरूरत थी लेकिन 1214 टॉयलेट ब्लॉक का निर्माण किया गया जिसकी वजह से 37 करोड़ रुपए एक्स्ट्रा खर्च किए गए हैं. टेक्निकल एग्जामिनर की ओर से सिविल वर्क को भी अच्छा नहीं बताया गया है. पांच स्कूलों में बिना टेंडर के 42.5 करोड़ रुपए के कार्य भी कर डाले जो मूल योजना हिस्सा ही नहीं थे जिसको सीपीडब्ल्यूडी वर्क्स मैन्युअल का खुलेतौर पर उल्लंघन बताया गया है.
मूल प्रस्ताव से अलग हटकर कराया पूरा कंस्ट्रक्शन वर्क: विजिलेंस जांच पड़ताल के बाद यह सब भी सामने आया है कि दिल्ली सरकार की ओर से 194 स्कूलों में 7180 इक्विवेलेंट क्लास रूम बनाए जाने की योजना पर काम किया गया. जिससे कि स्कूलों में हर कक्षा रूम में 50 बच्चों से कम की स्ट्रेंथ रहे, लेकिन जिन 141 स्कूलों में 7137 इक्विवेलेंट क्लास रूम का निर्माण किया गया है, वह बिना मंजूरी के बनाए गए हैं. इसी प्रकार अपग्रेडेशन वाले 53 स्कूल पूरी तरीके से इस स्कीम से बाहर रहे हैं, जिनको कैबिनेट की तरफ से मंजूर किए गए प्रस्ताव में शामिल नहीं किया गया था.
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इन 24 अफसरों को भेजा गए कारण बताओ नोटिस: विजिलेंस विभाग की ओर से इंजीनियर इन चीफ, प्रिंसिपल चीफ इंजीनियर, चीफ इंजीनियर, सुपरिंटेंडेंट इंजीनियर, प्रोजेक्ट मैनेजर और 19 एक्जीक्यूटिव इंजीनियर्स को कारण बताओ नोटिस जारी किए हैं. इनमें एग्जीक्यूटिव इंजीनियर अमृतपाल सिंह, धर्मवीर सिंह, दिगंबर सिंह, हरि सिंह मीणा, इंद्रजीत, के सी बाजपेई, कृष्ण पाल, माखनलाल मीणा, कृष्णा पाल, नंदलाल (मेंटेनेंस) (ईस्ट), ओपी शर्मा (मेंटेनेंस) (ईस्ट), पीसी मीणा, प्रमोद कुमार, प्रताप सिंह, सीताराम मीणा, सुखदेव सिंह भाटिया, यू सी मिश्रा (मेंटेनेंस) (ईस्ट), उदयवीर सिंह, विजय कुमार गुप्ता आदि अधिशासी अभियंता प्रमुख रूप से शामिल हैं.
इसके अलावा इंजीनियर इन चीफ मुकुंद जोशी, प्रिंसिपल चीफ इंजीनियर जयेश कुमार, चीफ इंजीनियर एनके गर्ग, प्रोजेक्ट मैनेजर एमके मल्लिक, सुपरिंटेंडेंट इंजीनियर रमेश कुमार को भी सतर्कता निदेशालय की ओर से कारण बताओ नोटिस भेजा गया है. इन नोटिस का जवाब सभी संबंधित अधिकारियों को अगले 15 दिनों के भीतर देना होगा. अगर अधिकारियों की ओर से इस नोटिस को जवाब तय समय सीमा के भीतर नहीं दिया जाता है तो उनके खिलाफ बिना कोई अगला नोटिस दिए आगे की कार्रवाई की जाएगी.