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दुष्कर्म आरोपियों को बरी करने का फैसला बरकरार, हाईकोर्ट ने पीड़िता की शिकायत का माना संदिग्ध

न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता और न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की खंडपीठ ने प्रदेश सरकार की अपील खारिज कर दी.

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इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश (Photo Credit- ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : 3 hours ago

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दुष्कर्म के एक मामले में चार लोगों को बरी करने के ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही करार देते हुए उसे बरकरार रखा है. कोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है कि जो कुछ हुआ उसमें पीड़िता की सहमति थी. मेडिकल जांच में भी यौन उत्पीड़न के आरोप साबित नहीं हो रहे हैं. बिना उचित कारण दिए एफआईआर 15 दिन की देरी से दर्ज कराई गई. पीड़िता 25-26 दिन आरोपी के साथ रही, लेकिन उसने अपने बचाव के लिए किसी से मदद नहीं मांगी. इन तथ्यों के आधार पर न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता और न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की खंडपीठ ने प्रदेश सरकार की अपील खारिज कर दी.

कानपुर देहात के थाने में 22 अप्रैल 2009 को शिकायतकर्ता ने नाबालिग बेटी के साथ दुष्कर्म और अपहरण का मुकदमा दर्ज कराया. उसने आरोप लगाया कि 7 अप्रैल 2009 को आरोपी बलवान सिंह, अखिलेश, सिया राम और विमल चंद्र तिवारी ने उसकी बेटी का अपहरण किया. पुलिस ने पीड़िता को 3 मई 2009 को आरोपी बलवान सिंह के साथ ​बरामद कर लिया.

ट्रायल कोर्ट ने सबूतों के आधार पर पाया कि पीड़िता बालिग है. उसने आरोपी के साथ अपनी मर्जी से अपना घर छोड़ दिया था. मदद मांगने का अवसर मिलने के बावजूद उसने किसी से मदद नहीं मांगी. ऐसे में अपहरण की बात उचित नहीं लगती. इससे साबित हुआ कि वह स्वेच्छा से आरोपी के साथ गई थी. उसकी इच्छा के विरुद्ध संबंध बनाए गए, यह भी साबित नहीं होता है. आरोपियों को आरोपों से बरी कर दिया गया. राज्य सरकार ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी.

खंडपीठ ने मामले के तथ्यों की जांच की, तो पाया कि घटना के 15 दिन बाद एफआईआर दर्ज की गई थी. अभियोजन पक्ष ने इस देरी का उचित कारण नहीं बताया. अदालत ने कहा कि पीड़िता अपनी गवाही के अनुसार 25-26 दिनों तक आरोपी बलवान के साथ रही. फिर भी, उसने यात्रा के दौरान राहगीरों से सहायता मांगने के लिए कभी भी को​शिश नहीं की. मेडिको-लीगल जांच रिपोर्ट यौन उत्पीड़न के आरोपों की पु​ष्टि नहीं करती. अदालत ने ट्रायल कोर्ट के फैसले पर संदेह करने का कोई कारण नहीं पाते हुए राज्य की अपील को खारिज कर दिया.

ये भी पढ़ें- हाईकोर्ट ने हरदोई डीएम मंगला प्रसाद सिंह को 24x7 मोबाइल ऑन रखने को कहा, जानें वजह

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दुष्कर्म के एक मामले में चार लोगों को बरी करने के ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही करार देते हुए उसे बरकरार रखा है. कोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है कि जो कुछ हुआ उसमें पीड़िता की सहमति थी. मेडिकल जांच में भी यौन उत्पीड़न के आरोप साबित नहीं हो रहे हैं. बिना उचित कारण दिए एफआईआर 15 दिन की देरी से दर्ज कराई गई. पीड़िता 25-26 दिन आरोपी के साथ रही, लेकिन उसने अपने बचाव के लिए किसी से मदद नहीं मांगी. इन तथ्यों के आधार पर न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता और न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की खंडपीठ ने प्रदेश सरकार की अपील खारिज कर दी.

कानपुर देहात के थाने में 22 अप्रैल 2009 को शिकायतकर्ता ने नाबालिग बेटी के साथ दुष्कर्म और अपहरण का मुकदमा दर्ज कराया. उसने आरोप लगाया कि 7 अप्रैल 2009 को आरोपी बलवान सिंह, अखिलेश, सिया राम और विमल चंद्र तिवारी ने उसकी बेटी का अपहरण किया. पुलिस ने पीड़िता को 3 मई 2009 को आरोपी बलवान सिंह के साथ ​बरामद कर लिया.

ट्रायल कोर्ट ने सबूतों के आधार पर पाया कि पीड़िता बालिग है. उसने आरोपी के साथ अपनी मर्जी से अपना घर छोड़ दिया था. मदद मांगने का अवसर मिलने के बावजूद उसने किसी से मदद नहीं मांगी. ऐसे में अपहरण की बात उचित नहीं लगती. इससे साबित हुआ कि वह स्वेच्छा से आरोपी के साथ गई थी. उसकी इच्छा के विरुद्ध संबंध बनाए गए, यह भी साबित नहीं होता है. आरोपियों को आरोपों से बरी कर दिया गया. राज्य सरकार ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी.

खंडपीठ ने मामले के तथ्यों की जांच की, तो पाया कि घटना के 15 दिन बाद एफआईआर दर्ज की गई थी. अभियोजन पक्ष ने इस देरी का उचित कारण नहीं बताया. अदालत ने कहा कि पीड़िता अपनी गवाही के अनुसार 25-26 दिनों तक आरोपी बलवान के साथ रही. फिर भी, उसने यात्रा के दौरान राहगीरों से सहायता मांगने के लिए कभी भी को​शिश नहीं की. मेडिको-लीगल जांच रिपोर्ट यौन उत्पीड़न के आरोपों की पु​ष्टि नहीं करती. अदालत ने ट्रायल कोर्ट के फैसले पर संदेह करने का कोई कारण नहीं पाते हुए राज्य की अपील को खारिज कर दिया.

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