वाराणसी : लक्खा मेले में शुमार चेतगंज की विश्व प्रसिद्ध नक्कटैया मेले का आयोजन रविवार की रात को किया गया. यह मेला कई मायने में खास माना जाता है. रविवार को दौरे पर आए पीएम मोदी ने भी अपने भाषण में इस मेले का जिक्र किया था. उन्होंने भोजपुरी लहजे में कहा था कि 'आज चेतगंज का नक्कटैया मेला भी हौ, काशी के लिए आज का दिन बहुत शुभ है'. ऐतिहासिक महत्व का यह मेला करवाचौथ के दिन मनाया जाता है. पिछले 138 साल से यह मेला हर साल लगता चला आ रहा है. इसकी शुरुआत अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए हुईं थी. अब इस मेले के जरिए समसामयिक घटनाओं के प्रति लोगों को जागरूक किया जाता है.
श्री चेतगंज रामलीला समिति के अध्यक्ष अजय गुप्ता ने बताया कि धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से यह मेला काफी खास है. गाजीपुर से लेकर गाजियाबाद तक के लोग इस मेले में शामिल होते हैं. नक्कटैया मेले की शुरुआत स्वामी बाबा फतेह राम ने की थी. यह वाराणसी की समृद्ध धार्मिक परंपरा का हिस्सा है. यह मेला स्थानीय जनता, व्यापारी समुदाय और दूर-दराज के श्रद्धालुओं के बीच विशेष स्थान रखता है. हर बार की तरह इस बार भी मेले में रामलीला भी हुई. इसके अलावा इजराइल-हमास युद्ध पर बना लाग विमान (प्रतीकात्मक झांकी) भी आकर्षण का केंद्र रहा.
मेले का उद्घाटन आधिकारिक तौर पर बनारस के पुलिस आयुक्त मोहित अग्रवाल की ओर से आधी रात को किया गया. इसके बाद, मेला रथ यात्रा निकाली गई. यह शहर के विभिन्न मार्गों से होते हुए अपने गंतव्य तक पहुंची. मेले में प्रतीकात्मक विमानों की झांकियों का परेड भी हुआ. इसमें मध्य प्रदेश, प्रयागराज, मेजा के क्षेत्रों से आने वाली टुकड़ियों ने हिस्सा लिया. पारंपरिक रास्तों से होकर लाग विमान गुजरे. इसके बाद रामलीला के बाद मंगलवार की तड़के नक्कटैया स्थल पर मेला का समापन हो गया.
बनारस के पारंपरिक लक्खा मेलों में शुमार चेतगंज की नक्कटैया को भव्य रूप देने की शुरुआत अंग्रेजों की मुखालफत से हुई थी. बाबा फतेह राम अंग्रेजों के दमन पर आधारित लाग विमान नक्कटैया मेले में शामिल करते थे. तत्कालीन अंग्रेज कलेक्टर से ही नक्कटैया के जुलूस का उद्घाटन कराते थे. अब भी कलेक्टर से ही जुलूस का उद्घाटन रात के 12 बजे कराया जाता है. महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद ने भी नक्कैटया मेले को क्रांतिकारियों के वार्षिक सम्मेलन की जगह बनाई थी.
चंद्रशेखर आजाद और उनके सभी क्रांतिकारी साथी मेलार्थी बनकर नक्कटैया में शामिल होते थे. चेतगंज क्षेत्र स्थित सरस्वती वाचनालय उनके मिलने की जगह हुआ करता था. इस मेले में क्रांतिकारी साथी पर्ची के माध्यम से अपने अगले योजना की सूचना देते थे, जो अंग्रेजों को पता नहीं चल पाती थी. यह एक धार्मिक अनुष्ठान होने के कारण इस पर अंकुश लगाने में भी असमर्थ थे. उस दौरान देश के कोने-कोने से लोग अपनी झांकियों के साथ मेले में हिस्सा लेते थे.
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