देहरादून: विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले उत्तराखंड में 5 तरह की जनजातियां निवास करती हैं. जिसमें से एक जनजाति वनराजी समुदाय है. जो कि अब विलुप्ति की कगार पर है. बावजूद इसके इस समुदाय के लोग अब मुख्यधारा में शामिल होने के लिए शिक्षा ग्रहण करने पर जोर दे रहे हैं.
वनराजी समुदाय के बच्चे कर रहे जागरूक: राष्ट्रीय मतदाता दिवस के अवसर पर वनराजी समुदाय के तमाम बच्चों ने मतदान करने के प्रति लोगों को जागरूक किया. हैरानी की बात ये है कि उत्तराखंड में जहां एक ओर 82 लाख से ज्यादा मतदाता हैं तो वहीं इनमें से मात्र 867 मतदाता वनराजी समुदाय से आते हैं.
उत्तराखंड में वनराजी जनजाति की जनसंख्या मात्र 1279: बता दें कि उत्तराखंड में पांच जनजातीय निवास कर रही हैं. जिसमें से वनराजी जनजाति इसलिए भी खास है. क्योंकि, यह जनजाति अब विलुप्त होने के कगार पर है. प्रदेश में वनराजी समुदाय के मात्र 235 परिवार हैं. पिथौरागढ़ और चंपावत जिले के सुदूर क्षेत्रों में रहते हैं. वनराजी समुदाय की कुल जनसंख्या 1279 है. जिसमें 658 महिला और 621 पुरुष हैं.
वनराजी जनजाति के 867 वोटर: निर्वाचन आयोग के अनुसार वनराजी समुदाय के मतदाता कुल 867 हैं, जिसमें 431 महिला और 436 पुरुष मतदाता हैं. प्रदेश के जंगलों में रह रहे वनराजी समुदाय के लोग अब मुख्यधारा से जुड़ना चाहते हैं. क्योंकि, इनके जीवन यापन में कठिनाइयां लगातार बढ़ती जा रही हैं.
मूलभूत सुविधाओं से महरूम वनराजी जनजाति: वनराजी समुदाय की बोली और भाषा उत्तराखंड में बोले जाने वाली मुख्य भाषा से काफी अलग है. बावजूद इसके इस समुदाय के बच्चे मुख्यधारा में शामिल होने के लिए न सिर्फ 5-6 किलोमीटर पहाड़ से उतरकर सड़क पर आते हैं. बल्कि सड़क मार्ग से कई किलोमीटर चलकर पढ़ाई करने जाते हैं.
इसके अलावा हिंदी भाषा का भी बढ़चढ़ कर इस्तेमाल कर रहे हैं. राष्ट्रीय मतदाता दिवस के अवसर पर देहरादून के गांधी पार्क में आयोजित कार्यक्रम में पिथौरागढ़ जिले की ओर से स्टॉल लगाया गया. जिसमें वनराजी समुदाय के बच्चे भी शामिल हुए. इस दौरान बच्चों ने लोगों को मतदान के प्रति जागरूक भी किया.
विलुप्ति की कगार पर वनराजी जनजाति: वहीं, पिथौरागढ़ जिले के स्वीप जिला समन्वय एआर दताल ने बताया कि उत्तराखंड में इस जनजाति के लोगों की कुल जनसंख्या 1279 है. जिसमें से 837 वोटर हैं. प्रदेश में मौजूद पांचों जनजातियों में से वनराजी जनजाति विलुप्ति की कगार पर है. हालांकि, साल 2009 से पहले इस जनजाति की जनसंख्या करीब 450 थी.
वहीं, अब बड़े प्रयासों के बाद इनकी जनसंख्या बढ़नी शुरू हुई है. इन समुदाय का रहन सहन सब प्राचीन युग का ही है. ये समुदाय सभी सुविधाओं से कटी हुई हैं. क्योंकि, ये समुदाय जहां रहता है. वहां मूलभूत सुविधाओं का पूरी तरह से अभाव है. वनराजी समुदाय के लोग राजी भाषा का इस्तेमाल करते हैं. प्रदेश में सिर्फ इस समुदाय के जो 235 परिवार हैं. वही इस भाषा को जानते हैं.
ईटीवी भारत पर बबीता ने राजी भाषा में सुनाया मतदान शपथ: वनराजी समुदाय की बच्ची बबीता ने ईटीवी भारत पर अपने राजी भाषा में मतदाता शपथ सुनाया. साथ ही बबीता ने बताया कि स्कूल जाने के लिए 5 से 6 किलोमीटर पहाड़ी से नीचे आना पड़ता है, फिर सड़क मार्ग से कुछ किलोमीटर चलकर स्कूल जाना पड़ता है. हालांकि, उनके गांव से 6 बच्चे ही इतना दूर स्कूल जाते हैं.
इसके अलावा वनराजी जनजाति को शिक्षा दिए जाने के लिए दो जगहों पर आवासीय विद्यालय भी बनाया गया है. जहां बच्चे रहकर पढ़ाई करते हैं. बबीता ने बताया कि उन्हें और उनके परिजनों को वहां रहने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. क्योंकि, उनके परिजनों को राशन लेने के लिए काफी दूर जाना पड़ता है. इसके बाद सड़क से करीब 6 किलोमीटर ऊपर पहाड़ी पर राशन ले जाना पड़ता है.
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