लखनऊ: बलिया लोकसभा सीट हमेशा से सपा और भाजपा में सीधी टक्कर रहती है. इस सीट का एक रिकॉर्ड ये भी है कि यहां से पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर 8 बार सांसद रहे. 1977 से 2007 के बीच में सिर्फ एक बार उनको हार का सामना करना पड़ा था. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति लहर में कांग्रेस प्रत्याशी ने जीत दर्ज की थी.
चंद्रशेखर 8 बार बलिया से जीते थे, इस बार उनके बेटे नीरज शेखर मैदान में: फिर 2009 में चंद्रशेखर के बेटे नीरज शेखर ने सपा के टिकट पर इस सीट से जीत दर्ज की थी. लेकिन, 2014 में मोदी लहर में सपा अपनी सीट नहीं बचा पाई और भाजपा के भरत सिंह ने नीरज को हराकर पहली बार यहां पर कमल खिलाया था. इसके बाद 2019 में वीरेंद्र सिंह मस्त ने भी कमल खिलाया.
भाजपा ने काटा था मस्त का टिकट: लेकिन, भाजपा ने 2024 में मस्त का टिकट काटकर चंद्रशेखर के बेटे को उतार दिया है. सपा ने पिछला चुनाव मात्र साढ़े 15 हजार वोटों से हारने वाले सनातन पांडेय को इस बार फिर से मैदान में उतारा है. भाजपा जहां इस सीट से हैट्रिक लगाने के लिए पूरा जोर लगा रही है, वहीं सपा अपनी खोई सीट पाने के लिए जी जान से जुटी हुई है. बसपा लल्लन यादव के सहारे है.
बलिया में त्रिकोणीय मुकाबला: इससे यहां की लड़ाई और रोचक हो गई है. वैसे तो तीन तरफ से नदियों से घिरे बगावती तेवर वाले बलिया में समस्याएं बहुत हैं. लेकिन, बात जब मतदान की आती है तो हार-जीत का गणित जातीय गोलबंदी पर आकर टिक जाती है. जातीगत आंकड़े देखें तो बलिया में ब्राह्मण वोट सबसे ज्यादा हैं. उसके बाद ओबीसी और राजपूत आते हैं.
बलिया का जातीय समीकरण: बलिया में ब्राह्मण 15.5 प्रतिशत, अनुसूचित जाति 15.3 प्रतिशत, राजपूत 13.8 प्रतिशत, यादव 12.3 प्रतिशत, भूमिहार 8.9 प्रतिशत, मुसलमान 6.59 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति 3.4 प्रतिशत, कुर्मी 3.4 प्रतिशत, कुशवाहा 4.1 प्रतिशत, पाल व बघेल 2.4 प्रतिशत, निषाद 3.3 प्रतिशत, राजभर 4.90 प्रतिशत हैं. बलिया में निर्णायक भूमिका में ब्राह्मण, अनुसूचित जाति और राजपूत मतदाता रहते हैं. इनको साधने में सभी पार्टियां लगी हुई हैं.
ये भी पढ़ेंः यूपी की 13 सीटों पर आखिरी जंग; 9 पर BJP का कब्जा, मोदी-अनुप्रिया और अफजाल को इस बार कितनी चुनौती?