लखनऊ : विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की तरफ से देश के सभी विश्वविद्यालय और डिग्री कॉलेज में साल में दो बार एग्जाम लेने के प्रस्ताव को देश के सामने रखा गया है. इस प्रस्ताव को लेकर शिक्षा जगत में काफी मिले-जुले रिस्पांस मिल रहे हैं. कुछ विशेषज्ञ इस प्रक्रिया को छात्रों के हित में बता रहे हैं तो वहीं कुछ का कहना है, कि इस प्रक्रिया के आने से विश्वविद्यालय और डिग्री कॉलेज में इंफ्रास्ट्रक्चर और पढ़ाई के समय को लेकर काफी परेशानी बढ़ेगी. विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रक्रिया को अगर यूजीसी इस सत्र से लागू कर देता है तो छात्र हित के लिए यह बहुत बड़ा फैसला होगा. इससे छात्रों को अपने पढ़ाई पूरी करने के लिए अपने पसंदीदा शिक्षण संस्थानों में प्रवेश लेने का बेहतर विकल्प मिलेगा. साथ ही साथ उन्हें विश्वविद्यालय की लेट लतीफी का खामियाजा भी नहीं उठाना पड़ेगा.
छात्र को सबसे अधिक फायदा होगा : लखनऊ विश्वविद्यालय और सम्बद्ध डिग्री कॉलेज शिक्षक संघ के पूर्व अध्यक्ष और यूजीसी के नियमों के जानकार प्रो. मौलेंदु मिश्रा ने बताया कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने साल में दो बार प्रवेश करने का जो प्रस्ताव रखा है, यह पश्चिमी देशों में पहले से ही लागू है. इसका सबसे अधिक फायदा छात्रों को होना है. उन्होंने बताया, कि छात्रों को इससे केवल फायदा ही फायदा होना है. छात्र पसंदीदा विश्वविद्यालय या डिग्री कॉलेज में प्रवेश लेना चाहते हैं, उनके पास एक बेहतर विकल्प होगा. जो छात्र जुलाई के महीने में प्रवेश पाने से वंचित रह जाएगे वह जनवरी के सत्र में दोबारा से प्रवेश के लिए आवेदन कर सकते है.
प्रोफेसर मिश्रा ने बताया, कि इसके अलावा उन छात्रों को सबसे अधिक फायदा होगा जो समय पर रिजल्ट ना आने के कारण अपने आगे की पढ़ाई के लिए आवेदन नहीं कर पाते हैं. विशेष तौर पर वह बच्चे, जो इंप्रूवमेंट या बैक पेपर के रिजल्ट के इंतजार में महीना बैठे रहते हैं. इस नियम के लागू होने से उन बच्चों को काफी फायदा होगा और वह अपने सत्र में ही पढ़ाई को पूरा कर सकेंगे और आगे जहां भी प्रवेश लेना चाहे वहां प्रवेश ले सकते हैं.
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परीक्षा में इवेंन और ऑड के नियम का होगा बदलाव : प्रो. मौलेंदु मिश्रा ने बताया कि यूजीसी का यह नियम अगर लागू होता है, तो विश्वविद्यालय में अब तक सेमेस्टर एग्जाम को लेकर जो नियम लागू है उसमें बड़ा बदलाव हो जाएगा. उन्होंने बताया कि अभी तक जुलाई महीने में होने वाले सेमेस्टर परीक्षा को इवेंन सेमेस्टर परीक्षा के नाम से जाना जाता है. वहीं, दिसंबर में होने वाले सेमेस्टर एग्जाम को ऑड सेमेस्टर परीक्षा के नाम से जाना जाता है. अगर साल में दो बार प्रवेश का नियम लागू हो जाता है तो विश्वविद्यालय को अपने सेमेस्टर परीक्षा में एक बड़ा बदलाव करना होगा. उन्हें हर 6 महीने अपने सभी सेमेस्टर की परीक्षा करानी होगी. इसमें इवेंन और ऑड सेमेस्टर के तहत अब तक जो परीक्षा हो रही हैं, यह समाप्त हो जाएगी. इसके अलावा सेमेस्टर एग्जाम के लिए प्रोफेसर पर प्रश्न पत्र बनाने का दबाव बढ़ेगा और उन्हें हर बार सभी सेमेस्टर के पेपर बनाने होंगे.
डिग्री कॉलेज में छात्र संख्या कम होने के कारण शिक्षकों के पद नहीं होंगे समाप्त: प्रोफेसर मिश्रा ने बताया, कि अगर साल में दो बार प्रवेश होगा तो इसका फायदा डिग्री कॉलेज में देखने को मिलेगा. उन्होंने बताया कि मौजूदा समय में प्रदेश के कई डिग्री कॉलेज में छात्र संख्या में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है. इसका असर सीधे तौर पर उन शासकीय डिग्री कॉलेज में सरकार की ओर से जो पद सृजित किए गए हैं. वह छात्र संख्या कम होने के कारण खत्म होने के कगार पर पहुंच गए हैं. ऐसे में अगर साल में दो बार प्रवेश होते हैं तो यह पद समाप्त नहीं होंगे. इससे डिग्री कॉलेज के भविष्य को बेहतर करने का मौका मिलेगा.
डिग्री कॉलेज और विश्वविद्यालय को डिजिटल मेकैनिज्म की तरफ बढ़ना होगा: प्रोफेसर मिश्रा ने बताया, कि साथ में दो बार प्रवेश होने का कॉलेज के ऊपर दबाव बढ़ेगा. उन्हें एक ऐसे डिजिटल मेकैनिज्म को तैयार करना होगा. जिसमें उन्हें हर बच्चे का रिकॉर्ड मेंटेन करना पड़ेगा जो अभी तक प्रदेश के कई विश्वविद्यालय और डिग्री कॉलेज में नहीं है. उन्होंने बताया, कि अगर कोई बच्चा जुलाई के सत्र में एडमिशन लेता है, तो विश्वविद्यालय को यह पता होना चाहिए कि उसे बच्चों ने संबंधित कोर्स में किस कॉलेज से एडमिशन लिया. ऐसे में अगर वह सेमेस्टर एग्जाम में फेल होता है और उसे कोर्स छोड़कर किसी दूसरे विश्वविद्यालय या डिग्री कॉलेज में प्रवेश लेता है, तो उसके वहां पर पंजीकरण करते ही उसका उत्तर विश्वविद्यालय और संबद्ध डिग्री कॉलेज के पास उपलब्ध होगा. जिससे किसी भी तरह के फर्जी वालों को रोका जा सकता है. इसके अलावा जीस डिग्री कॉलेज में शिक्षकों की कमी है और वहां पर बच्चों की संख्या बढ़ती है तो उन डिग्री कॉलेज के शिक्षकों को वहां पढ़ने के लिए भेजा जा सकता है, जहां पर शिक्षकों की संख्या अधिक है. ऐसा मेकैनिज्म प्रदेश के कई राज्यों में लागू है.
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