नई दिल्ली: गाजियाबाद के दिल्ली गेट स्थित श्री बाला सुंदरी चतुर्भुजी देवी मंदिर प्राचीन मंदिरों में से एक है. वैसे तो साल भर मंदिर में भक्तों के आने का सिलसिला जारी रहता है. लेकिन शारदीय नवरात्रि में केवल दिल्ली एनसीआर ही नहीं बल्कि देश-विदेश से श्रद्धालु इस मंदिर में बाला सुंदरी चतुर्भुजी देवी के दर्शन के लिए आते हैं. नवरात्रि के दौरान मंदिर में एक अलग रौनक दिखाई देती है. प्राचीन श्री बाला सुंदरी चतुर्भुजी देवी मंदिर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है.
प्राचीन श्री बाला सुंदरी चतुर्भुजी देवी मंदिर को लेकर मान्यता है कि संतान प्राप्ति के लिए मानी गई मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है. संतान प्राप्ति के बाद पति-पत्नी संतान के साथ मंदिर में माता के दर्शन के लिए आते हैं. मंदिर में बाला सुंदरी देवी, संतोषी मां, मीनाक्षी देवी, कादंबरी देवी, बड़ी माता के साथ भगवान श्री राम, लक्ष्मण, माता सीता और भगवान शंकर, माता पार्वती एवं श्री गणेश की मूर्ति स्थापित है.
अष्टमी पर रात्रि 12 बजे मंदिर में विशेष आरती आयोजित: अष्टमी तिथि पर मंदिर में श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ता है. अष्टमी तिथि पर रात्रि 12 बजे मंदिर में विशेष आरती होती है. आरती के बाद मां का खजाना बटता है. खजाना लेने के लिए भक्त शाम 6:00 बजे से ही मंदिर में अपना स्थान ग्रहण कर लेते हैं और आरती की प्रतीक्षा करते हैं. आरती के पश्चात खजाना लेने के बाद ही भक्त अपने घरों को वापस लौटते हैं. माना जाता है कि इस खजाने को अपने घर और कारोबार में रखने से उन्नति होती है.
अष्टमी तिथि को होता है खजाने का वितरण: मंदिर के मुख्य महंत गिरिशानंद गिरी के मुताबिक, मंदिर में चढ़ने वाले श्रृंगार, पैसे (सिक्के और नोट), चूड़ी आदि को वितरित किया जाता है. श्रद्धालुओं द्वारा इसे मां का खजाना कहा जाता है. श्रद्धालुओं में विश्वास है खजाने को घर और कारोबार के स्थान पर रखने से आर्थिक संपन्नता की प्राप्ति होती है. साथ ही सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है. चैत्र और शारदीय नवरात्रि की अष्टमी तिथि को खजाने का वितरण होता है. यही वजह है कि लोग कई महीनों तक इसका इंतजार करते हैं.
प्राचीन काल में मूर्तियां स्वयं प्रकट हुई: महंत गिरिशानंद गिरी आगे बताते हैं कि श्री बाला सुंदरी चतुर्भुज देवी मंदिर काफी प्राचीन मंदिर हैं. बताया जाता है कि मंदिर तकरीबन 550 से 600 साल पुराना है. मंदिर में भगवान शंकर स्वयं विराजमान हैं. मंदिर में मां बाला सुंदरी बाल रूप में विराजमान है. महंत गिरीश आनंद गिरि के मुताबिक, मंदिर में मूर्तियों की स्थापना नहीं हुई बल्कि मंदिर में प्राचीन काल में मूर्तियां स्वयं प्रकट हुई थी. मंदिर में पूर्व में कुल 15 महंत हो चुके हैं. मंदिर परिसर में सभी महंतों की समाधियां मौजूद हैं. पूर्व में रहे सभी महंत द्वारा मंदिर में साधना की गई.
इस मंदिर का इतिहास प्राचीन दूधेश्वर नाथ मंदिर से जुड़ा: महंत कृष्णानंद गिरी बताते हैं कि श्री बाला सुंदरी चतुर्भुज की देवी मंदिर का इतिहास प्राचीन दूधेश्वर नाथ मठ मंदिर से जुड़ा है. मंदिर की काफी मान्यता है यही वजह है कि देश-विदेश से मंदिर में श्रद्धालु आते हैं. मंदिर में मांगी गई मनोकामना अवश्य पूर्ण होती हैं. मां किसी भी भक्त को खाली हाथ वापस नहीं लौटाई हैं. सभी भक्तों पर मां अपनी कृपा बरसाती है.
बता दें, शारदीय नवरात्रि पर प्राचीन मंदिर में 11 ब्राह्मणों द्वारा शतचंडी महायज्ञ का आयोजन किया जाता है. अगर आप शारदीय नवरात्रि के दौरान मंदिर में दर्शन के लिए जा रहे हैं तो ध्यान रखें की मंदिर में घर से बना हुआ प्रसाद लेकर जाएं. दरअसल, मंदिर में बाजार की मिठाई आदि प्रसाद के रूप में चढ़ाने पर प्रतिबंध लगाया गया है. तिरुपति बालाजी मंदिर प्रकरण के बाद गाजियाबाद के कई मंदिरों में बाजार की मिठाई आदि को प्रसाद के रूप में चढ़ाने पर रोक लगा दी गई है.
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