बेमेतरा: दिवाली के दूसरे दिन आज छत्तीसगढ़ में गोवर्धन पूजा मनाई जा रही है. इस दिन गांव में यदुवंशी गाय के गोबर से गोवर्धन बनाकर पूजा अर्चना करते हैं. इस दिन से राउत नाचा शुरू हो जाता है. जो देवउठनी एकादशी तक मनाया जाता है. गोवर्धन पूजा के दिन यदुवंशी गाय, बैल और भैंसों के गले में खास तरह का आभूषण पहनाते हैं जिसे सोहई और भागर कहा जाता है. इसे पहनकर गाय, बैल और भैंस काफी आकृषित दिखते हैं.
क्या है सोहई: मोर पंख, कौड़ियों, जूट की रस्सी, रंगीन प्लास्टिक की रस्सी और रंगीन कपड़ों के टुकड़ों का इस्तेमाल कर सोहई और भागर बनाया जाता है. इसे गोवर्धन पूजा के दिन गाय, बैल, भैंस को पहनाया जाता है.
राउत अपने हाथों से तैयार करते हैं सोहई: दशहरा के बाद से ही बाजार में सोहई बनाने का सामान बिकना शुरू हो जाता है. राऊत उन्हें खरीदते हैं और गायों के लिए सोहई और बैल, भैंस के लिए भागर तैयार करते हैं. मोर मानकों और रस्सी के बीच में रंगीन कपड़े डालकर माला बनाई जाती है जिसे सोहई कहा जाता है. ये देखने में काफी खूबसूरत होता है. इसी के साथ ही दिवाली के लिए यादव अपनी लाठियों और खुमरी को सजाने की रस्म भी पूरी करते हैं.
राउत नाचा के दिन पहनाया जाता है सोहई: गोवर्धन पूजा के दिन शाम के समय राउतों की टोली रंग बिरंगे पोशाक में गांवों और शहर में भ्रमण करने निकलती है. राउत अपने गौ मालिक के घर जाकर गायों को सोहई व बैल और भैंसों को भागर बांधते हैं. इस दौरान राउत गड़वा बाजा की लय ताल पर दोहे गाकर नाचा करते हैं. राउत नाचा बहुत ही शौर्यपूर्ण व मन मोहक होता है. सोहई और नाचा के बदले गौपालक, राउत को राशि, अन्न और कपड़े भेंट करते हैं. राउत दिए गए अन्न में गोबर की छोटी गोली बनाकर उसे रखते हैं और फिर अन्न मिश्रित उस गोबर गोली को कोठी व कोठा में छापा मारकर दोहा पढ़ते है.
गायों का आभूषण है सोहई: संत राजीव लोचन दास ने बताया कि भारतीय संस्कृति में गौ को मां कहां जाता है. पंचभूतों की जननी मां है. धरती की जननी मां है. बिना गाय के कोई भी मंगल कार्य नहीं हो सकता है. लोचन दास ने कहा कि गोवर्धन पूजा से लेकर देवउठनी एकादशी के बीच छत्तीसगढ़ की परंपरा रही है कि बेटा अपनी मां को सुंदर वस्त्र या कोई आभूषण देकर सुशोभित करता है. नवरात्रि में माता दुर्गा का श्रृंगार कर पूजा अर्चना की जाती है. लक्ष्मी पूजा में माता को पूजा की जाती है. इसी तरह गाय को माता माना गया है. गोवर्धनपूजा में गौ माता को मोर पंख की माला से सजाया जाता है. गाय जिससे सोहने लगे उस माला को सोहई कहा जाता है. गौ रक्षक, गौ सेवक और गौ पालक गोवर्धन पूजा पर यादवों के हाथों गायों को सोहई बंधवाकर सुशोभित करते है. यही मंगलकामना का पर्व सोहई कहलाता है.