बलौदाबाजार: शुक्लाभाठा में देवउठनी एकादशी पर गौरा गौरी विसर्जन की अनोखी परंपरा निभाई गई. धूमधाम के साथ तुलसी विवाह का गांववालों ने आयोजन किया. गौरा गौरी विसर्जन के दौरान लोक कलाकारों और लोक परंपरा का अनोखा रंग भी देखने को मिला. देवउठनी एकादशी के दिन को लोग छोटी दिवाली भी कहते हैं. परंपरा के मुताबिक गौरा गौरी की प्रतिमा को सिर पर रखकर भक्त नाचते गाते गांव की गलियों से निकलते हैं. लोक परंपरा से जुड़े कलाकार इस मौके पर एक से बढ़कर एक लोक रंग पेश करते हैं. गांव की पूरी टोली लोक परंपरा के कलाकारों का हौसला बढ़ाने के लिए मौके पर मौजूद रहता है.
तुलसी विवाह और गौरा गौरी की शादी: देवउठनी एकादशी के दिन हिंदू मान्यता अनुसार भगवान निंद्रा से जागते हैं. आज से सभी शुभ काम शुरु हो जाते हैं. मुख्य रुप से विवाह के आयोजन आज के दिन से शुभ माना जाता है. तुलसी और गौरा गौरी विवाह का आयोजन होने के बाद लोग घर में सुख शांति की कामना करते हैं. पूजा पाठ खत्म होने के बाद गौरा गौरी की बनाई प्रतिमा का धार्मिक रीति रिवाज के साथ विसर्जन किया जाता है.
तुलसी विवाह की मान्यता: देवउठनी एकादशी का त्योहार कार्तिक मास की शुक्ल एकादशी को मनाया जाता है. हिंदू धर्म में मान्यता है कि तुलसी का पौधा देवी तुलसी यानि वृंदा का रुप होता है. इस दिन तुलसी के पौधे को हल्दी, सिंदूर और कुमकुम लगाया जाता है, पौधे की पूजा की जाती है. पूजा के बाद उनका विवाद भगवान कृष्ण जो विष्णु जी के अवतार माने जाते हैं उनसे कराया जाता है. इस पूरी प्रक्रिया को तुसली विवाह के नाम से जाना जाता है.
गौरी गौरा की शादी: देवउठनी एकादशी के दिन गौरा गौरी की पूजा भी होती है. महिलाएं मंगलगीत गाते हुए गौरा गौरी की पूजा करती हैं फिर उनका विवाह कराया जाता है. आयोजन ऐसा होता है जैसे वो अपनी बेटी को शादी के बाद ससुराल के लिए विदा कर रही हों. मां पार्वती को गौरी और भगवान शिव को गोरा का रुप माना जाता है. गांव और परिवार में इस तरह का आयोजन किए जाने से मान्यता है कि सुख और समृद्धि आती है.