कोरबा : अगर आप यह सोच रहे हैं कि जिस घी का इस्तेमाल सामान्य लोग अपने भोजन में करते हैं, वही घी पूजा अनुष्ठान करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. तो आप गलत हैं. कोरबा जिले के सर्वमंगला मंदिर प्रबंधन समिति ने खुद यह जानकारी दी है कि जिस घी का इस्तेमाल पूजा अनुष्ठान में इस्तेमाल होता है, वह भोजन के लिए इस्तेमाल होने वाले घी से अलग होता है.
तिरुपति लड्डू विवाद के बाद सवालों में मंदिर का घी : जिले के सर्वमंगला मंदिर में मनोकामना दीप प्रज्वलित करने और पूजा के लिए अलग तरह के घी का इस्तेमाल किया जा रहा है. मंदिर प्रबंधन का कहना है कि पूजा अनुष्ठान में इस्तेमाल होने वाले घी भोजन के लिए इस्तेमाल होने वाले घी से अलग होता है. अब यह कितना शुद्ध है, इसकी जानकारी मंदिर प्रबंधन समिति को भी नहीं है.
घी की खरीदी डिमांड के अनुसार दुकान से की जाती है. दुकान से जो घी हम खरीदते हैं, उस पर शुद्धता का टैग लगा होता है. वह पूरी तरह से पूजा अनुष्ठानों के लिए ही इस्तेमाल करने के लिए बनाया जाता है, जिसे शुद्ध मानकर ही इसका उपयोग करते हैं. : सर्वमंगला मंदिर समिति, कोरबा
मंदिर का घी खाने वाले घी से कितना अलग : मंदिर प्रबंधन समिति से मिली जानकारी के मुताबिक, तेल और घी की खरीदी दुकान से की जाती है. दुकान से जिस घी को खरीदा जाता है, उस पर लिखा होता है कि इसका उपयोग खाने के लिए ना किया जाए. मतलब की जिस घी का इस्तेमाल पूजा और अनुष्ठान में किया जाता है, उससे भोजन तैयार नहीं किया जा सकता. भोजन के लिए इसका उपयोग पूरी तरह से वर्जित है.
भक्त आस्था से आते हैं मंदिर, भावना से खिलवाड़ : सर्वमंगला मंदिर पहुंचे श्रद्धालु राहुल तिवारी का कहा, यह मंदिर शहर में आस्था का केंद्र है. नवरात्रि शुरू होने के पहले ही यहां भक्तों की भीड़ आनी शुरू हो गई है. लोग बड़ी आस्था से यहां आते हैं. मैंने सुना और पढ़ा है कि बड़े मंदिरों में घी और प्रसाद में मिलावट किया जा रहा है. जो घी मंदिर में नहीं बन रहा है, उसमें मिलावट की संभावना बनी रहती है.
मंदिर में घी का निर्माण तो हो नहीं रहा है. इसे कहीं ना कहीं से खरीदा जाता है. जहां से खरीदा जा रहा है, उसके पास किसी न किसी का सपोर्ट होगा, तभी वह मिलावट करते हैं. घी का निर्माण जहां हो रहा है, उस प्लांट को हम देख नहीं रहे. फैक्ट्री में जो हो रहा है, उसका हम कुछ कर नहीं सकते. हम सिर्फ अपनी आस्था ही प्रकट कर सकते हैं. हम सच्चे मन से पूजा करते हैं. लेकिन मिलावट करना लोगों के स्वास्थ्य और भावना दोनों से ही खिलवाड़ है. : राहुल तिवारी, श्रद्धालु
"मिलावट का जमाना, शुद्ध मानकर करते हैं पूजा" : मंदिर प्रबंधन समिति के पुजारी अशोक शास्त्री कहा, पूजा में घी का उपयोग सुख, समृद्धि और शांति के लिए किया जाता है. गाय के दूध से बना घी पवित्र माना गया है. लेकिन आज कल तो सभी जानते हैं, मिलावट भी करते होंगे. बाजार वाले ज्यादातर पूजा, पाठ, अनुष्ठान, हवन, यज्ञ इन सबके लिए अलग तरह का घी बेचते हैं और शुद्ध घी का उपयोग हम खाने के लिए करते हैं. हम जिस घी का उपयोग करते हैं, उसे हम दुकान से लेकर आते हैं.
खपत के अनुसार हम दुकान से घी खरीद कर मंगाते हैं. अब हम जहां से इसे लाते हैं, वह इसे शुद्ध बताकर ही हमें बेचते हैं. ना तो वह घी का निर्माण कर रहे हैं, ना हम इस घी का निर्माण करते हैं. इसलिए इसकी शुद्धता कितने प्रतिशत है, यह पता लगा पाना मुश्किल है. शुद्ध घी से इत्र की तरह खुशबू आती है, मिलावटी में खुशबू नहीं आती. पूजा वाले घी में उतनी खुशबू नहीं आती. : अशोक शास्त्री, पुजारी, सर्वमंगला मंदिर समिति कोरबा
घी वाले ज्योति कलश का मूल्य 2100 रुपये : अभी मंदिर में 9000 तेल के और 1000 घी के दीये के रसीद कटे हैं. मां सर्वमंगला मंदिर में इस साल लगभग 10000 मनोकामना ज्योति कलश प्रज्वलित किए जा रहे हैं. भक्त मंदिर समिति को पैसे देकर अपने नाम की पर्ची कटवाते हैं. फिर नवरात्रि के नौ दिनों तक जिस नाम से रसीद कटी है, उसी नाम से मनोकामना ज्योति कलश स्थापित कर 9 दिनों तक प्रज्वलित किया जाता है. तेल वाले दीप का दाम 701 रुपए है. जबकि घी वाले दीये का दाम मंदिर प्रबंधन समिति ने 2100 रुपए तय किया है.
ज्योति कलश के लिए विदेशों से आए नाम : सर्वमंगला मंदिर में इस साल ज्योति कलश के लिए विदेश से भी नाम आए हैं. ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका से लगभग 10 रसीद काटी गई है, जिनके नाम पर मनोकामना दीप प्रज्वलित किया जाएगा. मंदिर प्रबंधन ने इसकी तैयारी पूरी कर ली है. नवरात्रि के पहले दिन से ही ज्योति कलश को प्रज्वलित किया जाएगा.
घी में शुद्धता हो ना हो, आस्था में मिलावट नहीं : सर्वमंगला मंदिर हो या फिर अन्य मंदिर, भक्त यहां अपनी पूरी आस्था से भगवान के दर्शन करने जाते हैं. नवरात्रि के 9 दिन उत्सव की तरह होता है. मंदिर प्रबंधन समिति ज्योति कलश में इस्तेमाल होने वाले तेल और घी की शुद्धता की गारंटी नहीं देती, लेकिन भक्तों की आस्था में कोई मिलावट नहीं होती है. वह सच्चे मन से ईश्वर को याद करते हैं और अपनी भावनाओं को प्रकट करते हैं. मंदिर समिति पर उनका अटूट विश्वास है. इसलिए भक्त मंदिर प्रबंधन को पूरी रकम चुका कर अपने नाम पर आस्था का दीप प्रज्वलित कराता है.