अलवर/उदयपुर : राजस्थान के वन्यजीव अभ्यारण्य हमेशा से अपनी विविधता और रोमांच के लिए चर्चा में रहे हैं. साल 2024 में इन दो कारणों से यहां के बाघ और बघेरे भी सुर्खियों में रहे. पहला अलवर के सरिस्का टाइगर रिजर्व में बाघों की बढ़ती आबादी और दूसरा दक्षिणी राजस्थान में उदयपुर के गोगुंदा इलाके में एक आदमखोर पैंथर का आतंक.
सरिस्का में बाघों के पुनर्वास की सफलता : राजस्थान के सरिस्का टाइगर रिजर्व ने इस साल अपनी सफलता और ख्याति का परचम लहराया. एक समय ऐसा था जब सरिस्का को बाघ विहीन घोषित करना पड़ा था. वर्ष 2005 में यहां शिकारियों के कारण बाघ खत्म हो गए थे. सरकार को सीबीआई से जांच करानी पड़ी और पुनर्वास योजना के तहत रणथंभौर से बाघों को सरिस्का लाने का निर्णय हुआ. सरकार और नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (NTCA) की कड़ी मेहनत से इस अभयारण्य का कायाकल्प हुआ. 2008 में पहली बार रणथंभौर से बाघों को एयरलिफ्ट कर यहां पुनर्वासित किया गया. धीरे-धीरे 11 बाघों को यहां और बसाया गया और अब सरिस्का में 42 बाघ, बाघिन और शावक हैं.
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सरिस्का के पीसीएफ संग्राम सिंह कटियार और टाइगर फाउंडेशन के निदेशक दिनेश दुर्रानी का कहना है कि यह अभ्यारण्य पर्यटन और संरक्षण दोनों के लिए एक मिसाल बन चुका है. यहां की बाघों की बढ़ती संख्या और पर्यटकों की टाइगर साइटिंग इसे राजस्थान के वन्यजीव पर्यटन में अग्रणी बना रही है. आज सरिस्का टाइगर रिजर्व में 42 बाघ हैं, जिनमें बाघिनें और शावक भी शामिल हैं. बाघों की बढ़ती संख्या ने सरिस्का को देश-विदेश के पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना दिया है.
सरिस्का में हर साल 50,000 से अधिक पर्यटक आकर बाघों की साइटिंग का आनंद लेते हैं. हाल ही में सरिस्का के एक बाघ (एसटी 2303) को रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व में स्थानांतरित किया गया. इसके साथ रामगढ़ में बाघों की संख्या बढ़कर 5 हो गई है. सरिस्का की यह सफलता पर्यटन और वन्यजीव संरक्षण की दिशा में एक मिसाल बन चुकी है.
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गोगुंदा में आदमखोर पैंथर का आतंक : दूसरी तरफ राजस्थान का दक्षिणी इलाका, विशेष रूप से गोगुंदा इस साल पैंथर के आतंक से कांप उठा. सितंबर और अक्टूबर के महीनों में एक आदमखोर पैंथर ने 7 लोगों की जान ले ली. इनमें एक 5 साल की बच्ची और एक मंदिर में सो रहे पुजारी भी शामिल थे. इस पैंथर के हमले ने पूरे इलाके को खौफजदा कर दिया. पूर्व वन अधिकारी राहुल भटनागर ने कहा कि इस भयावह स्थिति के कारण लोग अपने घरों से बाहर निकलने से डरने लगे थे, जो लोग निकलते भी, वे समूह में और हथियारों के साथ चलते थे. 30 किलोमीटर के दायरे में पैंथर के हमलों ने पूरे इलाके को खौफ के साए में डाल दिया. वन विभाग ने पैंथर को पकड़ने के लिए कई पिंजरे लगाए और सीसीटीवी कैमरे लगाए, लेकिन वह बार-बार अपना स्थान बदलता रहा.
पैंथर का एनकाउंटर : स्थिति बिगड़ने पर राज्य सरकार ने इसे सशर्त शूट करने का आदेश दिया. राजस्थान पुलिस, वन विभाग और हैदराबाद से आए विशेषज्ञ शूटरों सहित 200 से अधिक कर्मियों ने मिलकर इस आदमखोर पैंथर को पकड़ने का अभियान चलाया. कड़ी मशक्क के बाद 1 अक्टूबर को विजय बावड़ी ग्राम पंचायत में यह अभियान सफल हुआ और पुलिस और वन विभाग की टीम ने पैंथर का एनकाउंटर किया. इसके बाद आदमखोर पैंथर का अंत हुआ और लोगों ने राहत की सांस ली.
हमलों में 12 लोगों की मौत : साल 2024 में राजस्थान में वन्य जीव और मानव के बीच संघर्ष के 100 से ज्यादा मामले सामने आए. इनमें 12 लोगों की मौत हो गई और करीब 70 लोग घायल हो गए. सबसे चर्चित मामला उदयपुर जिले के गोगुंदा का रहा. इसके अलावा, सवाई माधोपुर में रणथम्भौर के टाइगर ने एक शख्स की जान ले ली और राजसमंद जिले में भी कई घटनाएं सामने आईं, जिनमें पैंथर ने कई लोगों पर हमला किया. सरिस्का और शेखावाटी क्षेत्र में भी बाघों और पैंथरों की गतिविधियों ने लोगों को चिंतित किया.
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एक तरफ विकास, दूसरी तरफ खौफ : सरिस्का की बाघों के पुनर्वास की कहानी और गोगुंदा के पैंथर के आतंक का अंत, दोनों ही घटनाएं राजस्थान के वन्यजीव प्रबंधन की दो अलग-अलग तस्वीरें पेश करती हैं, जहां एक तरफ सरिस्का में बाघों की बढ़ती संख्या ने यह साबित किया कि सही रणनीति और प्रयास से वन्यजीव संरक्षण संभव है. वहीं, गोगुंदा की घटना ने यह दिखाया कि वन्यजीवों और मानव के टकराव के क्या गंभीर परिणाम हो सकते हैं. राजस्थान के लिए यह साल वन्यजीवों के साथ एक संतुलित सहअस्तित्व की दिशा में सीखने और सुधार का रहा है.