प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि घटना के कथन, तथ्य व साक्ष्य का खुलासा होने पर एक ही घटना की दूसरी एफआईआर दर्ज की जा सकती है. घटनाक्रम भिन्न है और अलग तथ्य का खुलासा हुआ है तो दूसरी एफआईआर जायज है. यह आदेश न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान ने संगीता मिश्रा की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है. इसी के साथ कोर्ट ने पति की हत्या व षड्यंत्र की एफआईआर दर्ज कराने से इनकार करने के मजिस्ट्रेट के आदेश और इसके विरुद्ध पुनरीक्षण अदालत से अर्जी निरस्त करने के आदेश को रद्द कर दिया है. और सीजेएम मथुरा को सीआरपीसी की धारा 156(3) की याची की अर्जी पर नए सिरे से आदेश करने का निर्देश दिया है.
मामले के तथ्यों के अनुसार मथुरा में पुलिस ने तीन मई 2020 को एक लावारिस लाश बरामद की. दरोगा ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर गला दबाकर हत्या करने व साक्ष्य मिटाने के आरोप में एफआईआर दर्ज की. उसके बाद जुर्म स्वीकार करने के आधार पर चार्जशीट दाखिल कर याची को जेल भेज दिया गया. जब याची जेल से बाहर आई तो उसने हत्या की उसी घटना की एफआईआर दर्ज करने के लिए अर्जी दी. मजिस्ट्रेट ने अर्जी और पुनरीक्षण अर्जी भी निरस्त कर दी गई तो यह याचिका दाखिल की गई.
कहा गया कि याची व उसके पति की जानकारी के बगैर याची के ससुर ने अपनी संपत्ति का बेटों में बंटवारा कर दिया. पता चलने पर विवाद हुआ. तीन मई 2020 को विवाद खत्म करने के लिए पति के भाई आए और पति को ले गए. इसके बाद वह लौटकर नहीं आए. याची ने दूसरे दिन लापता होने की शिकायत की लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की. बाद में रिपोर्ट दर्ज की गई. लेकिन पुलिस की एफआईआर के तथ्य अलग थे. जिसमें पत्नी को ही गला दबाकर पति की हत्या करने का आरोप लगाया गया. पत्नी याची ने जेल से छूटने के बाद हत्या की घटना की अलग ही षड्यंत्र की कहानी दी, जो पहली एफआईआर से बिल्कुल अलग है.
कोर्ट ने कहा कि एक घटना की दो एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती. लेकिन उसी घटना के दो भिन्न कथन, तथ्य व सबूत के खुलासों के साथ शिकायत की गई हो तो एक ही घटना की दूसरी एफआईआर की जा सकती है.
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