मंडी: पहाड़ी प्रदेश हिमाचल अपनी कला, संस्कृति सभ्यता के लिए विश्व प्रसिद्ध है. यहां कई सालों तक टांकरी लिपि बहुत प्रचलित थी. हिमाचल के इतिहास का उल्लेख भी इस लिपि में देखने को मिलता है. आज भी ऐसे कई प्राचीन लेख मौजूद हैं, जो टांकरी लिपि में लिखे गए हैं. यहां तक कि कई ग्रथों के सार सहित पहाड़ी प्रदेश के देवी-देवताओं का इतिहास भी इसी लिपि में देखने का मिलता है, लेकिन आजादी के बाद हिंदी भाषा के अधिक प्रचलन के बाद आज धीरे धीरे टांकरी लिपि लुप्त होती जा रही है.
आज चंद लोग ही ऐसे हैं जो इस प्राचीन टांकरी लिपि का ज्ञान रखते हैं, इनमें भी अधिकतर बुजुर्ग ही हैं, लेकिन मंडी शहर के पैलेस कॉलोनी निवासी 39 वर्षीय पारूल अरोड़ा लुप्त होती जा रही इस टांकरी लिपि में अपना भविष्य तलाशने की कोशिश में जुटे हुए हैं. पारूल की पहले से ही टांकरी लिपि के प्रति रूचि थी, लेकिन वो इसके लिए समय नहीं निकाल पाते थे. वर्ष 2020 में जब कोरोना के कारण प्राइवेट नौकरी से हाथ धोना पड़ा तो उसके बाद हिमाचल कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी के सौजन्य से ऑनलाइन वर्कशॉप में भाग लेकर एक नई शुरूआत करने की सोची. उसके बाद पारूल ने टांकरी लिपि में ऐसी महारत हासिल कर ली है कि वो अभी तक विभिन्न कार्यशालाओं के माध्यम से 250 से अधिक लोगों को इसका प्रशिक्षण दे चुके हैं.
आजादी से पहले टांकरी में होता था लेखन
इसके साथ ही टांकरी में लिखे कई प्राचीन काव्य और ग्रंथ पारूल के पास अनुवाद के लिए आते हैं. पारूल ने बताया कि, 'आजादी के पहले जब तक राजाओं के राज थे तब तक पहाड़ों में इसी लिपि में लेखन और पठन का कार्य होता था. आज इस लिपि के विस्तार के लिए प्रदेश सरकार को शिक्षण संस्थानों में सर्टिफिकेट कोर्स शुरू करने की जरूरत है. युवाओं की इसके प्रति रूचि है, लेकिन उन्हें सही ढंग से इसे सीखने का रास्ता नहीं मिल पा रहा है. आज केंद्रीय विश्वविद्यालय कांगड़ा में शारदा लिपि का सर्टिफिकेट कोर्स करवाया जा रहा है, ऐसा ही कोर्स टांकरी लिपि पर करवाने की भी जरूरत है. भविष्य में यह हजारों लोगों के लिए रोजगार का माध्यम बन सकती है.'
5 हजार साल पहले हुआ था उदय
बता दें कि आज टांकरी लिपि की पांडुलिपियों में आयुर्वेद, तंत्र-मंत्र, विज्ञान, साहित्य, इतिहास और अन्य तरह के कई ग्रंथ मौजूद हैं, लेकिन उनमें क्या लिख है उसे पढ़ने और लिखने वालों की संख्या नाममात्र भी नहीं है. खुद पारूल के पास कई ऐसे काव्य संग्रह आते हैं जिनका उनसे अनुवाद करवाया जाता है. हिमाचल के देवी-देवताओं का सारा इतिहास इसी लिपि में लिखा गया है. पारूल अरोड़ा के अनुसार टांकरी लिपि का उदय, 'शारदा लिपि से 5 हजार वर्ष पहले हुआ था. शारदा लिपि के संरक्षण के लिए कई प्रयास हो रहे हैं, लेकिन टांकरी लिपि के लिए भी इन प्रयासों को किए जाने की जरूरत है.'
समय के साथ बहुत सी बातें इतिहास बनकर रह गई हैं और उन्हें अब इतिहास की तरह ही देखा जा रहा है. शायद टांकरी लिपि के साथ भी कुछ ऐसा ही किया जा रहा है, लेकिन चिंताजनक बात ये है कि अगर भविष्य में इस लिपि को पढ़ने और लिखने वाला कोई नहीं रहा तो फिर इसमें लिखे इतिहास को कैसे समझा जा सकेगा. यही कारण है कि सरकार को इस लिपि के विस्तार की तरफ ध्यान देने की जरूरत है.