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कन्नौज लोकसभा सीट: आखिर चुनाव मैदान में खुद अखिलेश को क्यों उतरना पड़ा? सपा में खींचतान, वोट बैंक की टेंशन या पत्नी की हार का मलाल - lok sabha election 2024

तमाम कयासों, संशय को खत्म कर आखिरकार सपा मुखिया अखिलेश यादव ने कन्नौज लोकसभा सीट से नामांकन दाखिल कर दिया. अखिलेश के चुनाव मैदान में उतरने के पीछे तमाम कारण हैं.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Apr 25, 2024, 5:31 PM IST

आखिरकार सपा मुखिया अखिलेश यादव ने कन्नौज सीट से नामांकन दाखिल कर दिया है.

लखनऊ: तमाम कयासों, संशय को खत्म कर आखिरकार सपा मुखिया अखिलेश यादव ने कन्नौज लोकसभा सीट से नामांकन दाखिल कर दिया. अखिलेश के चुनाव मैदान में उतरने के पीछे तमाम कारण हैं. 1998 से सपा के कब्जे में रही कन्नौज सीट को भाजपा ने 2019 में उससे छीन लिया था. हार भी सपा मुखिया की पत्नी डिंपल यादव की हुई थी. यह सपा के लिए तगड़ा झटका था. इस बार फिर से चुनाव आया तो कन्नौज सीट चर्चा में आ गई. अखिलेश के कन्नौज से चुनाव लड़ने के पीछे कई कारण हैं, जो सिर्फ इसी सीट के लिए मायने नहीं रखते. कन्नौज से एक संदेश भी जाता है. जानिए क्यों अखिलेश को इस सीट से अंतत: चुनाव मैदान में उतरना पड़ा.

1. भाजपा की चुनौती खड़ी कर रही थी परेशानी

अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव कन्नौज लोकसभा सीट पर 2019 में चुनाव हार गई थीं. BJP के सुब्रत पाठक ने डिंपल को शिकस्त दी थी. इस बार भी लगातार सुब्रत पाठक की तरफ से यह चैलेंज किया जा रहा था कि अखिलेश खुद चुनाव लड़ें तो उन्हें भी हराकर भेजा जाएगा. अखिलेश ने अपने भतीजे तेजप्रताप को टिकट दिया था, लेकिन कन्नौज से उनके खुद न लड़ने से भाजपा लगातार उन पर सियासी हमला कर रही थी. इस बीच राहुल गांधी की तरफ से अखिलेश के चुनाव लड़ने की बात कही गई. माहौल और मौजूदा सियासत को देखते हुए आखिरकार अखिलेश ने भाजपा की चुनौती स्वीकार की और मैदान में उतरे.

2. तेजप्रताप को नहीं मिल रही थी स्वीकार्यता

कन्नौज लोकसभा सीट पर आखिर समय में चुनाव लड़ने के फैसले के पीछे एक अहम कारण तेजप्रताप को स्वीकार्यता न मिलना भी है. यही वजह है कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के दामाद और अखिलेश के भतीजे तेज प्रताप यादव का टिकट काटना पड़ा. अखिलेश शुरू से कन्नौज सीट से परिवार के ही सदस्य तेज प्रताप यादव चुनाव लड़ाना चाहते थे. लेकिन तेज प्रताप यादव को स्थानीय नेता स्वीकार नहीं कर रहे थे. इन्होंने अखिलेश यादव से मुलाकात कर हुए खुद उन्हें चुनाव मैदान में उतरने के लिए कहा. स्थानीय इकाई ने स्पष्ट रूप से कहा कि अगर अखिलेश चुनाव नहीं लड़ेंगे यह चुनाव जीतना संभव नहीं है. अखिलेश पर स्थानीय स्तर पर बनाया गया दबाव काम आया और अब वह खुद चुनाव मैदान में हैं.

3. परंपरागत सीट को खोने की टीस

2019 के चुनाव से पहले कन्नौज समाजवादी पार्टी की परंपरागत सीट रही है. जब बीजेपी के सुब्रत पाठक से 2019 के चुनाव में डिंपल यादव को हराया तो इस सीट पर सपा का वर्चस्व टूट गया. इस बार जब तेज प्रताप को चुनाव मैदान उतारा गया तो अखिलेश को लगा कि वह चुनाव जीत जाएंगे लेकिन जब माहौल उन्हें समझ में नहीं आया तो खुद चुनाव लड़ने का फैसला किया. वर्ष 1967 में कन्नौज से राम मनोहर लोहिया ने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव जीता. इसके बाद इस सीट पर जनता पार्टी का भी दो बार कब्जा रहा. फिर यह सीट 1998 से समाजवादी पार्टी के संरक्षक संस्थापक मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में हमेशा पार्टी के कब्जे में रही.

4. राहुल और प्रियंका ने चुनाव लड़ने को कहा

अखिलेश यादव से जुड़े सूत्रों का कहना है कि राहुल व प्रियंका गांधी की तरफ से भी कहा गया था कि कन्नौज से सपा मुखिया स्वयं चुनाव लड़ें. तर्क दिया गया था कि जब बड़े नेता अपनी सीटों पर चुनाव लड़ेंगे तो आसपास की सीटों पर बेहतर माहौल बनेगा और इससे अच्छा संदेश जाएगा. पार्टी के कार्यकर्ताओं और समर्थक नेताओं में भी उत्साह रहेगा. सूत्र बताते हैं कि अखिलेश की तरफ से भी राहुल व प्रियंका के लिए अमेठी और रायबरेली से लड़ने का प्रस्ताव रखा गया. इन दोनों सीटों पर गांधी परिवार के ही चुनाव लड़ने से आसपास की तमाम सीटों पर अच्छा माहौल बनाया जा सकेगा. अब चर्चा है कि आखिर समय में इन दोनों सीटों पर राहुल और प्रियंका नामांकन करने वाले हैं.

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कन्नौज की परंपरागत सीट पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है. ऐतिहासिक वोटों के साथ अखिलेश यादव चुनाव जीतने में सफल होंगे और भारतीय जनता पार्टी के अहंकार को चकनाचूर करने का काम कन्नौज की जनता करने वाली है. कन्नौज सीट पर अखिलेश के चुनाव लड़ने से आसपास के क्षेत्र पर भी अच्छा चुनावी माहौल बनेगा.

यह भी पढ़ें : कन्नौज लोकसभा सीट से नामांकन के बाद अखिलेश बोले- हथौड़ा तभी मारना चाहिए, जब लोहा गरम हो - AKHILESH YADAV NOMINATION

यह भी पढ़ें : कन्नौज पहुंचे अखिलेश यादव, बोले- पहले ईवीएम से हराएंगे फिर ईवीएम हटाएंगे, भाजपा पर भी साधा निशाना - Lok Sabha Election 2024

आखिरकार सपा मुखिया अखिलेश यादव ने कन्नौज सीट से नामांकन दाखिल कर दिया है.

लखनऊ: तमाम कयासों, संशय को खत्म कर आखिरकार सपा मुखिया अखिलेश यादव ने कन्नौज लोकसभा सीट से नामांकन दाखिल कर दिया. अखिलेश के चुनाव मैदान में उतरने के पीछे तमाम कारण हैं. 1998 से सपा के कब्जे में रही कन्नौज सीट को भाजपा ने 2019 में उससे छीन लिया था. हार भी सपा मुखिया की पत्नी डिंपल यादव की हुई थी. यह सपा के लिए तगड़ा झटका था. इस बार फिर से चुनाव आया तो कन्नौज सीट चर्चा में आ गई. अखिलेश के कन्नौज से चुनाव लड़ने के पीछे कई कारण हैं, जो सिर्फ इसी सीट के लिए मायने नहीं रखते. कन्नौज से एक संदेश भी जाता है. जानिए क्यों अखिलेश को इस सीट से अंतत: चुनाव मैदान में उतरना पड़ा.

1. भाजपा की चुनौती खड़ी कर रही थी परेशानी

अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव कन्नौज लोकसभा सीट पर 2019 में चुनाव हार गई थीं. BJP के सुब्रत पाठक ने डिंपल को शिकस्त दी थी. इस बार भी लगातार सुब्रत पाठक की तरफ से यह चैलेंज किया जा रहा था कि अखिलेश खुद चुनाव लड़ें तो उन्हें भी हराकर भेजा जाएगा. अखिलेश ने अपने भतीजे तेजप्रताप को टिकट दिया था, लेकिन कन्नौज से उनके खुद न लड़ने से भाजपा लगातार उन पर सियासी हमला कर रही थी. इस बीच राहुल गांधी की तरफ से अखिलेश के चुनाव लड़ने की बात कही गई. माहौल और मौजूदा सियासत को देखते हुए आखिरकार अखिलेश ने भाजपा की चुनौती स्वीकार की और मैदान में उतरे.

2. तेजप्रताप को नहीं मिल रही थी स्वीकार्यता

कन्नौज लोकसभा सीट पर आखिर समय में चुनाव लड़ने के फैसले के पीछे एक अहम कारण तेजप्रताप को स्वीकार्यता न मिलना भी है. यही वजह है कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के दामाद और अखिलेश के भतीजे तेज प्रताप यादव का टिकट काटना पड़ा. अखिलेश शुरू से कन्नौज सीट से परिवार के ही सदस्य तेज प्रताप यादव चुनाव लड़ाना चाहते थे. लेकिन तेज प्रताप यादव को स्थानीय नेता स्वीकार नहीं कर रहे थे. इन्होंने अखिलेश यादव से मुलाकात कर हुए खुद उन्हें चुनाव मैदान में उतरने के लिए कहा. स्थानीय इकाई ने स्पष्ट रूप से कहा कि अगर अखिलेश चुनाव नहीं लड़ेंगे यह चुनाव जीतना संभव नहीं है. अखिलेश पर स्थानीय स्तर पर बनाया गया दबाव काम आया और अब वह खुद चुनाव मैदान में हैं.

3. परंपरागत सीट को खोने की टीस

2019 के चुनाव से पहले कन्नौज समाजवादी पार्टी की परंपरागत सीट रही है. जब बीजेपी के सुब्रत पाठक से 2019 के चुनाव में डिंपल यादव को हराया तो इस सीट पर सपा का वर्चस्व टूट गया. इस बार जब तेज प्रताप को चुनाव मैदान उतारा गया तो अखिलेश को लगा कि वह चुनाव जीत जाएंगे लेकिन जब माहौल उन्हें समझ में नहीं आया तो खुद चुनाव लड़ने का फैसला किया. वर्ष 1967 में कन्नौज से राम मनोहर लोहिया ने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव जीता. इसके बाद इस सीट पर जनता पार्टी का भी दो बार कब्जा रहा. फिर यह सीट 1998 से समाजवादी पार्टी के संरक्षक संस्थापक मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में हमेशा पार्टी के कब्जे में रही.

4. राहुल और प्रियंका ने चुनाव लड़ने को कहा

अखिलेश यादव से जुड़े सूत्रों का कहना है कि राहुल व प्रियंका गांधी की तरफ से भी कहा गया था कि कन्नौज से सपा मुखिया स्वयं चुनाव लड़ें. तर्क दिया गया था कि जब बड़े नेता अपनी सीटों पर चुनाव लड़ेंगे तो आसपास की सीटों पर बेहतर माहौल बनेगा और इससे अच्छा संदेश जाएगा. पार्टी के कार्यकर्ताओं और समर्थक नेताओं में भी उत्साह रहेगा. सूत्र बताते हैं कि अखिलेश की तरफ से भी राहुल व प्रियंका के लिए अमेठी और रायबरेली से लड़ने का प्रस्ताव रखा गया. इन दोनों सीटों पर गांधी परिवार के ही चुनाव लड़ने से आसपास की तमाम सीटों पर अच्छा माहौल बनाया जा सकेगा. अब चर्चा है कि आखिर समय में इन दोनों सीटों पर राहुल और प्रियंका नामांकन करने वाले हैं.

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कन्नौज की परंपरागत सीट पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है. ऐतिहासिक वोटों के साथ अखिलेश यादव चुनाव जीतने में सफल होंगे और भारतीय जनता पार्टी के अहंकार को चकनाचूर करने का काम कन्नौज की जनता करने वाली है. कन्नौज सीट पर अखिलेश के चुनाव लड़ने से आसपास के क्षेत्र पर भी अच्छा चुनावी माहौल बनेगा.

यह भी पढ़ें : कन्नौज लोकसभा सीट से नामांकन के बाद अखिलेश बोले- हथौड़ा तभी मारना चाहिए, जब लोहा गरम हो - AKHILESH YADAV NOMINATION

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