नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) से संबद्ध दिल्ली सरकार द्वारा वित्तपोषित 12 कॉलेजों को फंड नहीं मिलने से यहां कार्यरत शिक्षकों और कर्मचारियों को करीब तीन महीने से वेतन नहीं मिला है. इन कॉलेजों के कर्मचारियों को पिछली बार दीवाली के समय नवंबर में रुका हुआ वेतन दिया गया था. इसके बाद अब फिर से शिक्षकों और कर्मचारियों का फरवरी तक तीन महीने का वेतन बकाया हो जाएगा. इसको लेकर शिक्षकों ने दिल्ली विधानसभा के बाहर भी दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) के नेतृत्व में धरना प्रदर्शन किया था.
डूटा के अध्यक्ष प्रोफेसर अजय कुमार भागी ने बताया कि इन कॉलेजों का फंड रोके जाने से सिर्फ शिक्षक ही नहीं यहां के कर्मचारी और बड़ी संख्या में अध्ययनरत छात्र छात्राएं भी प्रभावित हो रहे हैं. इन 12 कॉलेजों में 20 हजार से अधिक छात्र-छात्राएं अध्ययनरत हैं. कॉलेजों को फंड न मिलने से उनकी बिल्डिंग रख रखाव व उनके शौचालयों की साफ सफाई का काम भी प्रभावित हो रहा है. इतना ही नहीं इनमें दो प्रमुख महिला कालेजों अदिति महाविद्यालय और भगिनी निवेदिता महाविद्यालय की बिल्डिगें भी जर्जर हालत में हैं. इनको मरम्मत की सख्त जरूरत है. प्रोफेसर भागी ने बताया कि 12 कालेजों में 600 शिक्षक व 300 अन्य कर्मचारी कार्यरत हैं. इन सभी का करीब तीन महीने का वेतन बकाया है. ऐसे में इनके लिए अपने परिवारों का भरण-पोषण करना मुश्किल हो रहा है.
क्या है 12 कॉलेजों का संकट: दिल्ली विश्वविद्यालय से संबद्ध 12 कॉलेजों आचार्य नरेंद्र देव कालेज, अदिति कालेज, भगिनी निवेदिता कॉलेज, भास्कराचार्य कॉलेज, दीन दयाल उपाध्याय कॉलेज, डा. भीम राव अंबेडकर कॉलेज, इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ फिजिकल एजुकेशन एंड स्पोर्ट्स साइंसेज, केशव कॉलेज, महाराजा अग्रसेन कॉलेज, महर्ष वाल्मीकि कॉलेज, शहीद राजगुरू कॉलेज, शहीद सुखदेव कालेज ऑफ बिजनेस स्टडीज को दिल्ली सरकार पूरा पैसा देती है.
डूटा सचिव डॉ. अनिल कुमार ने बताया कि पिछले नौ सालों से जब से आम आदमी पार्टी की दिल्ली में सरकार आई है तभी से सरकार ने इन कॉलेजों का पैसा रोकना शुरू कर दिया. जबकि इससे पहले 15 साल तक रही शीला दीक्षित की सरकार ने कभी इन कॉलेजों का पैसा नहीं रोका. अब केजरीवाल सरकार चाहती है कि इन कॉलेजों को डीयू से अलग करके अंबेडकर विश्वविद्यालय से संबद्ध कर दिया जाए और इनमें भी मोटी फीस वसूली जाए. दिल्ली सरकार इन कॉलेजों का निजीकरण करना चाहती है. लेकिन, डूटा सरकार की इस मनमानी को नहीं चलने देगा. हम इस संबंध में एलजी से भी मिलेंगे.
आतिशी के पत्र को बताया अवैध: डूटा अध्यक्ष प्रोफेसर अजय कुमार भागी ने कहा कि दिल्ली के मुखिया एलजी हैं. दिल्ली सरकार के पास इन कॉलेजों का पैसा रोकने की ताकत नहीं है. इन्होंने अवैध तरीके से यह पैसा रोक रखा है. इसके लिए हम एलजी से मिलकर बात करेंगे. दिल्ली सरकार इन कॉलेजों को दिल्ली विश्वविद्यालय से अलग भी नहीं कर सकती है. उन्होंने कहा कि शिक्षा मंत्री आतिशी ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को अवैध तरीके से पत्र लिखा है. आतिशी द्वारा पत्र में यह लिखना कि हम दिल्ली सरकार के इस बजट से इस बार इन कॉलेजों को फंड देना बंद कर देंगे. यह अवैध है. दिल्ली में किसको पैसा आवंटित करना है इस पर अंतिम मोहर एलजी ही लगाते हैं. इस तरह के निर्णय लेने का अधिकार एलजी के पास है. इसलिए आतिशी ने पत्र में फंड रोकने की बात गलत तरीके से लिखी है.
नहीं हुआ गवर्निंग बॉडी का गठन: पिछले करीब डेढ़ साल से इन 12 कॉलेजों की गवर्निंग बॉडी का भी गठन नहीं हो पाया है. इन कॉलेजों की गवर्निंग बॉडी गठन को लेकर दिल्ली सरकार और दिल्ली विश्वविद्यालय के बीच खींचतान जारी है. दिल्ली सरकार की ओर से गवर्निंग बॉडी के गठन के लिए जो नाम भेजे गए थे उनको डीयू ने अभी तक स्वीकार नहीं किया है. दरअसल, खुद के द्वारा फंड देने के कारण दिल्ली सरकार चाहती है कि कॉलेजों पर उनका नियंत्रण रहे. लेकिन, दिल्ली विश्वविद्यालय से संबद्ध होने के चलते इनमें अधिकतर दखल दिल्ली विश्वविद्यालय का ही रहता है.
कॉलेजों में नहीं शुरू हो सकी शिक्षकों की नियुक्ति की प्रक्रिया: इन 12 कॉलेजों में पूर्ण रूप से गवर्निंग बॉडी का गठन न होने के चलते अभी तक 600 पदों पर स्थाई शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया भी शुरू नहीं हो पाई है. जबकि डीयू के बहुत सारे कॉलेजों में नियुक्ति प्रक्रिया पूरी हो चुकी है.
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दिल्ली सरकार छात्रों की फीस से वेतन देना चाहती: डूटा अध्यक्ष ने कहा की दिल्ली सरकार कहती है छात्रों से आने वाली फीस से शिक्षकों और कर्मचारियों को वेतन दिया जाए. साथ ही कॉलेज की मरम्मत और अन्य कार्य में भी इसी पैसे का इस्तेमाल हो. लेकिन, यूजीसी का नियम है कि छात्रों की फीस के पैसे का इस्तेमाल शिक्षकों को वेतन देने में नहीं कर सकते.