ग्वालियर: आने वाले 18 से 21 दिसंबर को ग्वालियर में तानसेन समारोह का आगाज होने जा रहा है और ग्वालियर तो है ही संगीत नगरी. यहां संगीत सम्राट तानसेन की कृतियां उनका भाव हवा में घुला हुआ है. 500 से अधिक वर्षों से इस क्षेत्र में संगीत के अनेकों स्वरूप कलाकार और प्रकार देखने को मिले हैं. इस संगीत विरासत को अब एक साथ सहेजकर देश दुनिया के सामने लाने के लिए तानसेन समारोह से पहले एक अनोखा प्रयास किया जा रहा है. इसकी जिम्मेदारी ग्वालियर में स्थित राजा मानसिंह संगीत विश्व विद्यालय को दी गई है.
म्यूजिक यूनिवर्सिटी को दी गई डॉक्यूमेंट्री की जिम्मेदारी
राजा मानसिंह संगीत विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. एस नेता सहस्त्रबुद्धे ने बताया, "जिला प्रशासन की ओर से संगीत विश्वविद्यालय को एक विशेष कार्यक्रम के लिए जिम्मेदारी दी गई है, जिसमें ग्वालियर का सांगीतिक वैभव दिखाई देगा. इसमें 15वीं शताब्दी से लेकर वर्तमान तक की गीत शैलियों का प्रस्तुतीकरण होगा और उनके बारे में जानकारी दी जाएगी. वादन की शैलियों को लिया जाएगा. वे नृत्य शैलियां जो ग्वालियर में रही और किसी न किसी रूप में संगीत से जुड़ी रहीं.''
कई गीत शैलियां का जनक रहा ग्वालियर
इस प्रोजेक्ट की खास बात यह भी है कि इसमें ग्वालियर से जुड़ी कई संगीत विधाएं ली गई है. यहां इनके बारे में बात होगी. साथ ही बताया जाएगा कि इसे कैसे गाया जाता है और गाया भी जाएगा. इसके बाद भी कई शैलियां ग्वालियर में हुईं. जैसे रास या त्रिवट फिर जयदेव कृत गीत गोविंद हैं, जिसे अष्टपदि कहा जाता है. इसके अलावा ग्वालियर की एक और शैली है चतुरंग यानि चार अंगों से सजा. इस दौरान यहां इस शैली की भी प्रस्तुति दी जाएगी.
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गायन ही नहीं वादन और नृत्य विधाएं भी ग्वालियर में रहीं
गायन ही नहीं वादन की शैलियां भी इस डॉक्यूमेंट्री में नजर आने वाली हैं. प्रोफेसर स्मिता सहस्त्रबुद्धे ने बताया, ''ग्वालियर में वादन की परंपरा रही है. उस्ताद हाफिज अली खान साहब द्वारा सरोद वादन की परंपरा दिखाई जाएगी. तबला और पखावज की परंपरा रही पर्वत सिंह जी को कुदउ सिंह की परंपरा दिखाएंगे. साथ ही यहां नृत्य की परंपरा भी दिखाई जाएगी. अध्ययन के दौरान हमें यह भी पता चला कि 1951 में ग्वालियर में भरतनाट्यम की विधा भी यहां रही है. साथ ही इसमें हम लोक विधा को भी लेंगे. इस तरह बहुत सारी विधाओं को इस विशेष प्रोजेक्ट में समाहित किया जाएगा.''