भोपाल: अब तक अधिकतर लोग यहीं जानते हैं कि ताजमहल केवल आगरा में है लेकिन हम आपको बताने जा रहे हैं कि भोपाल में भी एक ताजमहल है. जिसका निर्माण भोपाल के मुगल शासक जहांगीर मोहम्मद खान की बेटी शाहजहां बेगम ने सन 1871 से 1884 के बीच कराया था. उस समय तक यह सबसे बड़े महलों में एक था. हालांकि शुरुआत में इसका नाम राजमहल रखा गया था लेकिन बाद में इसकी वास्तुकला से प्रभावित होकर ताजमहल नाम रख दिया गया.
'भोपाल का ताजमहल असली'
इतिहासकार सैयद खालिद गनी बताते हैं कि "मकबरे और महल में फर्क है. भले ही आगरा के ताजमहल को खूबसूरती के कारण सातवें अजूबे में शामिल किया गया है लेकिन हकीकत में तो वो मकबरा है. वहां जाकर बादशाह शाहजहां रहे तो नहीं, वहां तो केवल कब्र ही बनी हुई है. लेकिन भोपाल के ताजमहल में तो शाहजहां बेगम 1884 से 1901 तक रही हैं. उन्होंने यहीं से भोपाल में शासन किया और इसके आसपास एक उपनगर बसाया."
हाथियों के धक्के से भी नहीं खुलता था गेट
इतिहासकार सैयद खालिद गनी बताते हैं कि "ताजमहल में तीन द्वार थे. शाहजहां बेगम के जमाने में नागपुर और उत्तर से हमला होने का खतरा काफी ज्यादा होता था. इस कारण से बेगम ने महल के गेट को इतना वजनदार बना दिया कि ये हाथी के वजन को भी टक्कर ना दे पाए. इस गेट के ऊपर लोहे की कीलें लगी हैं, जिसकी वजह से ये गेट हाथी से भी अधिक वजनी हो गया था."
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खिड़कियों के कांच में चढ़ा था सोने का पानी
भोपाल के ताजमहल को लेकर एक और किस्सा है. लोग बताते हैं, जब यहां एक अंग्रेज आया, तो किसी बात को लेकर उसे गुस्सा आ गया. जिसके बाद उसने महल में गोली चला दी. ये गोली कांच में लगी, लेकिन उसमें कोई खरोच तक नहीं आई. खालिद गनी बताते हैं कि "शाहजहां बेगम ने कांच में सोने की परत चढ़वाई थी. जिससे महल में लगे कांच में काफी मजबूती थी. लेकिन बाद में लोगों ने खिड़कियों के कांच ही गायब कर दिए."
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17 एकड़ में बने महल में 200 से अधिक कमरे
शाहजहां बेगम ने इस भव्य महल का निर्माण खुद के रहने के लिए करवाया था. इस ताजमहल में 120 कमरों के अलावा आठ बड़े हाल भी हैं, जिसमें शीश महल और सावन-भादो मंडप शामिल है. महल की वास्तुकला ब्रिटिश, फ्रेंच, मुगल, अरबी और हिंदू प्रभावों का एक अनूठा संयोजन है. इस खूबसूरत से महल को काफी बारीकी से बनाया गया था. लेकिन अब रख रखाव में कमी की वजह से महल अपनी पुरानी ऐतिहासिक पहचान और खूबसूरती दोनों ही खोता जा रहा है.
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नजर से बचाने के लिए पूर्वी गेट पर लगा शीशा
ताहजमहल में तीन गेट हुआ करते थे, पूर्व की तरफ मौजूद गेट से सुबह के समय बाहरी लोगों का आना जाना हुआ करता था. बाहरी लोगों से ताज की खूबसूरती को नजर ना लगे, इसके लिए बेगम ने पूर्वी गेट के ऊपर एक शीशा लगवा दिया. सूरज की रोशनी इस पर पड़ा करती है और चकाचौंध की वजह से लोग महल का दीदार नहीं कर पाते थे. इस तरह से उन्होंने इसे नजर से बचाए रखा था.
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महफिलों से आबाद महल अब खंडहर
इतिहासकार गनी बताते हैं कि "भले ही भोपाल का ताजमहल आज सरकार की उपेक्षा के कारण खंडहर में तब्दील हो गया है लेकिन शाहजहां बेगम के दौर में यहां शाही अंदाज दिखा करता था. कभी नवाबी महफिलों से आबाद रहने वाला ताजमहल खंडहर की शक्ल ले चुका है." बता दें कि इस ताजमहल में बालीवुड फिल्म स्त्री और स्त्री-टू की शूटिंग भी हो चुकी है.