नई दिल्ली: दिल्ली एनसीआर में सर्दियों में प्रदूषण बढ़ने पर पराली जलाने को लेकर राजनीति तेज हो जाती है, लेकिन आंकड़ों पर गौर करें तो 2020 से अब तक पराली जलाने के मामलों में करीब 50 प्रतिशत तक की कमी दर्ज की गई है. वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) के मुताबिक, 2020 में जहां 87,600 मामले पराली जलाने के दर्ज किए गए थे. वहीं, 2023 में 39,186 पराली जलाने के मामले सामने आए. इसके बाद भी दिल्ली एनसीआर के लोगों को प्रदूषण से राहत नहीं मिल पा रही है.
2022 की तुलना में 2023 में पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में 27 प्रतिशत, जबकि हरियाणा में 37 प्रतिशत तक की कमी आई है. सीएक्यूएम के अनुसार, वर्ष 2022 की तुलना में पंजाब के तीन और हरियाणा के पांच जिले ऐसे रहे थे, जहां 2023 में पराली जलाने की घटनाएं बढ़ी थीं. सीएक्यूएम सूत्रों के मुताबिक इसके चलते इन आठों जिलों पर इस बार विशेष निगरानी बरती जा रही है. यहां पर लोगों को जागरुक करने, पराली प्रबंधन के अन्य तरीके बताने के साथ बाध्यकारी कदम भी उठाने की तैयारी है.
15 अक्टूबर से 25 नवंबर के बीच जलती है सर्वाधिक परालीः पंजाब और हरियाणा के खेतों में धान की कटाई के बाद ही कृषि अवशेष जलाने लगते हैं, हालांकि 15 अक्टूबर से 25 नवंबर तक पराली जलाने की सबसे ज्यादा घटनाएं होती हैं. इसी दौरान दीपावली भी आता है और हवा की गति बहुत धीमी होती है, पराली और दीवाली का धुआं मिलकर प्रदूषण की स्थिति को और खतरनाक बना देते हैं.
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ग्रीन वार रूम से होगी निगरानी: दिल्ली सरकार में पर्यावरण मंत्री गोपाल राय का कहना है कि पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए इस बार पहले से ही वहां के मुख्यमंत्री भगवंत मान से मुलाकात कर बात की है. दिल्ली में पराली जलाने के मामले न हों इसके लिए धान की कटाई के बाद अवशेष पर बायो डिकॉम्पोज़र का छिड़काव किया जाएगा. पराली जलाने की घटनाओं की निगरानी के लिए दिल्ली सचिवालय में ग्रीन वार रूम तैयार किया गया है.
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