हरिद्वार: हरिद्वार अपने आप में एक खास संसदीय क्षेत्र है. यहां से रामविलास पासवान और मायावती जैसे दिग्गज नेता भी लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं. हालांकि हर 5 सालों के बाद आने वाले चुनाव में हारने और जीतने वाले नेताओं को याद रखा जाता है, लेकिन इन चुनावों में नेताओं के समर्थकों और कार्यकर्ताओं का जीवन भी कई बार नया मोड़ ले लेता है. ऐसी ही कुछ कहानी हरिद्वार लोकसभा सीट पर दिवंगत नेता रामविलास पासवान को चुनाव लड़ाने वाले कार्यकर्ताओं की है.
हरिद्वार लोकसभा सीट पर साल 1987 में उपचुनाव हुआ था. इस चुनाव को लड़ने के लिए दिग्गज राजनेता रहे रामविलास पासवान बिहार के हाजीपुर से हरिद्वार पहुंचे थे. साथ ही अपने साथ कई कार्यकर्ताओं और समर्थकों की फौज भी लाए थे. पासवान तो चुनाव नहीं जीत सके और बिहार वापस लौट गए, लेकिन उन्हें चुनाव लड़ाने के लिए बिहार से हरिद्वार आए दर्जनों कार्यकर्ता हरिद्वार में ही बस गए. हरिद्वार के बीएचईएल क्षेत्र में बनी विष्णु लोक कॉलोनी के एक छोटे से मकान में रहने वाले वशिष्ठ पासवान भी उन्ही कार्यकर्ताओं में से एक हैं, जो 1987 में बिहार से आए थे.
बिहार से आए कार्यकर्ता वशिष्ठ पासवान ने बताया कि उस समय उन्होंने और उनके साथियों ने खूब चुनाव प्रचार किया था, लेकिन उनके नेता को जीत नहीं मिल सकी. उन्होंने कहा कि ज्यादातर लोग हरिद्वार में ही बस गए और यहीं रोजगार करने लगे.वरिष्ठ पत्रकार आदेश त्यागी बताते हैं कि 1987 में हरिद्वार लोकसभा में तत्कालीन सांसद सुंदरलाल का निधन हो गया था, इसलिए उपचुनाव कराया गया था. ये उपचुनाव कई मामलों में खास था. इस चुनाव में एक तरफ बिहार के दिग्गज नेता रामविलास पासवान जेएनपी के टिकट पर और बसपा प्रमुख मायावती भी चुनाव लड़ रही थी. उन्होंने कहा कि चुनाव में दोनों दिग्गज नेताओं को हार का मुंह देखना पड़ा और कांग्रेस के राम सिंह की जीत हुई. हरिद्वार में स्थानीय लोगों के बीच कहावत प्रचलित है 'जिसने देखा हरिद्वार उनसे छोड़ दिया घरबार' 1987 में बिहार से आए पासवान समर्थकों की कहानी भी इससे मिलती जुलती नजर आती है.
ये भी पढ़ें-