नई दिल्ली: कुछ लोगों को आपने अक्सर कहते सुना होगा कि कामयाबी किस्मत से मिलती है, मेहनत तो मजदूर भी करता है. लेकिन इस बात को पूरी तरह से उलट दिया है दिल्ली के 70 साल के उस बुजुर्ग ने जो फुटपाथ से उठकर आज दिल्ली के नामी 5 सितारा होटल में अपनी पहचान बनाये बैठा है. इनकी चाय के साथ-साथ यहां इनकी कलम की भी खूब तारीफ होती है.
नाम है लक्ष्मण राव, उम्र 70 बरस. पेशा-चाय बनाना और कलम की जादूगिरी से पाठकों का मन मोह लेना. 40 बरस की उम्र में 12वीं की, 63 की उम्र में एमए किया और 30 साल से किताबें लिख रहे हैं.
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दिल्ली के आईटीओ के पास फुटपाथ पर चाय बेचने वाले लक्ष्मण राव आज दिल्ली के फाइव स्टार होटल में टी कंसल्टेंट हैं. उनकी इस सफलता के पीछे उनकी साहित्यिक पहचान है. 10वीं पास चाय बेचने वाले लक्ष्मण अब तक 25 कहानी, नाटक, उपन्यास, शोध ग्रंथ लिखे चुके हैं. उनकी किताबें पढ़ना लोग पसंद करते हैं. हालांकि लक्ष्मण राव आज 10वीं पास नहीं है बल्कि उन्होंने किताबें लिखने के साथ साथ बीए और एमए की पढ़ाई भी कर ली है 70 बरस की उम्र में भी लक्ष्मण राव अंग्रेजी में एमए करना चाहते हैं लेकिन किताबों की व्यस्तता में वो अपनी पढ़ाई को वक्त नहीं दे पा रहे.
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लिखने का शौक कैसे पैदा हुआ?
जब किसी ने उनसे पूछा कि आपकी शैक्षिक योग्यता क्या है तो उन्हें लगा कि पढ़ना जरूरी है. इसलिए उन्होंने 40 साल की उम्र में 12वीं की और फिर बीए किया. 63 साल की उम्र में उन्होंने हिंदी साहित्य से एमए की पढ़ाई पूरी की. इसके साथ साथ चाय की दुकान भी चलती रही. लक्ष्मण राव ने फाइव स्टार होटल की नौकरी कोतीन बार ठुकराया, चौथी बार हांगकांग से दिल्ली आए मालिक की अपील पर उन्होंने फाइव स्टार होटल शांगरी-ला होटल में टी कंसल्टेंट की नौकरी ज्वाइन कर ली.
सवालः आप कहां से हैं और दिल्ली कब और कैसे आए ?
जवाबः मेरा नाम लक्ष्मण राव है. मैं महाराष्ट्र के अमरावती जिले के तड़ेगांव दशासर से हूं. आठवीं तक की पढ़ाई गांव में हुई. इसके बाद अमरावती शहर से 10वीं की पढ़ाई की. पहले अमरावती में एक मिल में नौकरी करता था. मिल बंद हो गई तो भोपाल चला गया जहां मजदूरी की. जुलाई 1977 में मैं दिल्ली आया. यहां पर भी काफी संघर्ष करता रहा. पहले पान की दुकान किया. बाद में चाय की दुकान खोल ली. 30 साल तक चाय बेची और किताबें लिखता रहा.
सवालः किताबें लिखने की प्रेरणा कहां से मिली. किस तरह की किताबें लिखते हैं और कितनी किताबें लिख चुके हैं ?
जवाबः मैं गुलशन नंदा के उपन्यास पढ़ता था. जिनसे में बहुत प्रेरित था. मेरे गांव में रामदास नाम का एक लड़का था, जिसकी पानी में डूबकर मौत हो गई थी. रामदास के ऊपर उपन्यास लिखने की जिज्ञासा हुई और मैंने लिखा. वर्ष 1978, 79 में रामदास के साथ एक और उपन्यास को प्रकाशित कराने के लिए प्रकाशक के पास लेकर गया. उन्होंने मुझे भगा दिया. इसके बाद मैने अपने पैसे से अपनी पुस्तकें प्रकाशित करना आरंभ किया.
विदेशों में कैसे मिली पहचान?
लक्ष्मण राव बताते हैं कि अभी तक हमारी 25 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. मेरे बारे में विदेश के अखबारों में भी छपाना शुरू हुआ और प्रसिद्धि मिलनी शुरू हो गई. लोग हमारी किताबें पढ़ना पसंद करने लगे. अभी मैंने हाल में पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू जी के ऊपर किताब लिखी है. जिसका नाम तत्वज्ञान ग्रंथ दि फिलासफर जवाहरलाल नेहरू है. नेहरू ने जो समाज, शिक्षा, टेक्नोलॉजी आदि के लिए किया उसे लोग भूल गए.
सवालः 40 साल की उम्र में 12वीं फिर 63 साल में एमए साहित्य की पढ़ाई का विचार कैसे आया ?
जवाबः मैं अखबार व किताबें पहले से पढ़ता था, जब मैंने अपनी किताबें लिखकर बेचना शुरू किया तो लोग पूछते थे कि आपकी शैक्षिक योग्यता क्या है. तब मुझे लगा कि पढ़ाई जरूरी है. अगर पढ़ाई नहीं करेंगे तो लोग तो पूछेंगे ही कि लेखक बने तो कैसे बने. मैंने फार्म भरा और 40 साल की उम्र में 12वीं की पढ़ाई की. 50 साल की उम्र में दिल्ली विश्वविद्यालय से कॉरेसपॉन्डेंट से बीए किया. इसके बाद 63 साल की उम्र में इग्नू से हिंदी साहित्य में एमए पूरा किया. अभी मैं एमए इन इंग्लिश करने की सोच रहा हूं. लेकिन समय निकालना थोड़ा मुश्किल हो रहा है. आगे के लक्ष्य पर लक्ष्मण राव ने कहा कि वह अपने आप को साहित्यकार के रूप में आगे बढ़ा रहे हैं. चाय बेचना मेरा रोजगार था. किताबें लिखना उपलब्धि है.
सवालः चाय की दुकान से फाइव स्टार होटल कैसे पहुंचे. कितना संघर्ष किया ?
जवाबः 30 साल तक मैंने आईटीओ पर दिल्ली भवन के सामने फुटपाथ पर चाय की दुकान लगाई. इस दौरान मैं किताबें लिखता और उन्हें प्रकाशित कर बेचता रहा. इससे मुझे साहित्यकार के रूप में पहचान मिली. विदेशों की मैगजीन में मेरे आर्टिकल प्रकाशित हुए. इसके बाद शांगरी-ला होटल के हांगकांग में रह रहे मालिक को मेरे बारे में पता चला. उन्होंने तीन बार नौकरी का प्रस्ताव भेजा लेकिन मैं होटल में नौकरी करने के लिए नहीं जाना चाहता था. हांगकांग से होटल के मालिक दिल्ली आए तो उन्होंने मेरे पास अपना स्टाफ भेजा. स्टाफ ने कहा कि एक बार आप होटल चलो भले ही नौकरी करने से मना कर देना. मैं गया और नौकरी के लिए हां कर दिया. तीन साल से नौकरी कर रहा हूं. अच्छी सुविधा से साथ सभी का सहयोग मिलता है. होटल में मेरी किताबें लगी हैं. लोग खरीदकर ले जाते हैं. कई जगह कटआउट लगाकर मेरे में प्रदर्शित किया गया है.
सवालः फुटपाथ पर काम करते थे और आज फाइव स्टार होटल में काम करते हैं. दोनों के बीच में क्या अंतर देखते हैं और क्या अनुभव करते हैं?
जवाबः दोनों के बीच में सुंदरता का अंतर है. फुटपाथ पर गरीबी दिखाई देती थी लेकिन उस गरीबी में बेचिंता के लोग थे. बिना चिंता के लोग जीवन जी रहे थे. यहां मैं देख पाता हूं कि धनी लोग चिंता में दिखाई देते हैं. हालांकि हम यहां पर अपने काम पर पूरा ध्यान देते हैं. किसी से ज्यादा बात नहीं कर सकते हैं. क्लीन शेव हो, कपड़े साफ हों, नाखून कटे हों. अच्छे तरीके से दूसरों से बात करें यह सब यहां देखा जाता है. और इन सभी चीजों को मैं बखूबी फॉलो करता हूं. सभी से खूब सम्मान मिलता है. लोग मेरी चाय भी खूब पसंद कर रहे हैं. यूरोपियन लोग भी मेरी चाय पसंद करते हैं.
आखिरी सवालः दूसरे लोगों से क्या कहना चाहेंगे जो अपने जीवन में संघर्ष कर रहे हैं ?
जवाबः मैं लोगों से कहना चाहता हूं कि मेरी उम्र 70 साल है. मैं लोगों को कुछ नहीं दे रहा हूं. अपेक्षा मत करो, प्रतीक्षा मत करो, अपने लक्ष्य की ओर देखो और अपना काम करते जाओ. उपलब्धियां जरूर मिलेगी. लक्ष्मण राव ने कहा कि फुटपाथ पर जिस जगह मैंने 30 साल संघर्ष किया और आज उसी के बदौलत यहां हूं. मैं उस जगह को भूला नहीं हूं. हर शनिवार को जाकर वहां दीपक जलाता हूं. किताबें खरीदने वाले या मिलने वाले लोग भी वहां पर आते हैं.
परिवार में कौन-कौन है?
लक्ष्मण राव के परिवार में पत्नी और दो बेटे हैं, दोनों बेटे निजी बैंक में काम कर रहे हैं और परिवार की तरह से लक्ष्मण राव को पूरा सपोर्ट मिलता है. उनके परिवार को उनकी इस कामयाबी पर फक्र महसूस होता है.
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