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अल्मोड़ा के पटिया में हुआ पाषाण युद्ध, चार गांवों ने लिया हिस्सा, जमकर हुई पत्थरों की 'बारिश' - STONE WAR PLAY ON GOVARDHAN PUJA

अल्मोड़ा के पटिया गांव में चार गांव के लोगों ने पाषाण युद्ध खेला है. ये युद्ध गोवर्धन पूजा के बाद होता है.

STONE WAR PLAY ON GOVARDHAN PUJA
गोवर्धन पूजा पर यहां होता है पाषाण युद्ध (photo- ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Nov 2, 2024, 10:09 PM IST

अल्मोड़ा: सत्ता पर जनता की जीत की अनेक ऐतिहासिक परंपराएं आज भी हमारे समाज में जीवित हैं. ऐसी ही एक अनोखी परंपरा पाटिया गांव में है, जहां पर चार गांव के लोग पाषाण युद्ध खेलकर अपनी परंपरा को निभाते हैं. इसी क्रम में आज गोर्वधन पूजा के दिन ग्रामीणों ने पाषाण युद्ध खेला, जिसे बग्वाल कहा जाता है. यह पाषाण युद्ध सांय काल में खेला जाता है.

पाटिया गांव में हुआ पाषाण युद्ध: कोट्यूली गांव के जयदीप बिष्ट ने बताया कि काश्तकारों ने अपनी फसलों और जानवरों की रक्षा के लिए एक अत्याचारी बग्वाली नामक राजा को पत्थरों से मार-मार कर भगाया था. सदियों पूर्व हुए इस युद्ध में राजा के पांच लोग भी मारे गये थे, तभी से इस स्थान का नाम पचघटिया पड़ गया, जहां आज भी पाटिया और उसके आसपास के लोग काश्तकारों में जोश भरने के लिए चार समूह बनाकर पाषाण युद्ध को लड़ते हैं.

अल्मोड़ा के पटिया में हुआ पाषाण युद्ध (video-ETV Bharat)

नदी में पानी पीकर युद्ध का होता है समापन: उन्होंने कहा कि पाषाण युद्ध चार खाम के बीच खेला जाता है. चार खाम (समूह) में पाण्डे खाम, पिलख्वाल खाम, हरड़िया खाम और कोट्यूली खाम शामिल है. एक तरफ पाण्डे, पिलख्वाल और हरडिया खाम के लोग होते हैं और दूसरी ओर कोट्यूली खाम के लोग शामिल होते हैं. दोनों ओर से एक दूसरे पर पत्थर मार जाते हैं. उन्होंने बताया कि पाषाण युद्ध में रण बांकुरे अधिकतर युवा होते हैं. लगभग आधे घंटे तक चलने वाले इस पाषाण युद्ध का समापन बुजुर्गों के आदेश पर नदी में पानी पीकर और एक दूसरे पर पानी छिड़क कर किया जाता है.

Stone war play on govardhan puja
अल्मोड़ा के पटिया में हुआ पाषाण युद्ध (photo-ETV Bharat)

मिट्टी, घी का लेप लगाने से भरते हैं घाव: युवा रोहन बिष्ट ने बताया कि इस युद्ध में अनेक लोग चोटिल भी होते हैं. अगर चोट लग जाए तो मिट्टी, घी और चीनी का लेप लगाने से घाव 3 दिनों के अंदर भर जाता है. इस पत्थर मार युद्ध के लिए गांव से दूर रहने वाले ग्रामीण भी गांवों में आकर इस परंपरा का निर्वहन करते हैं.

पाषाण युद्ध को देखने के लिए अन्य शहरों से आते हैं लोग: गुणगांव से इस परंपरा का निर्वहन करने आए अमित पांडे और गोवा से आए विशाल पांडे ने बताया कि वह आज इस पाषाण युद्ध को देखने और खेलने के लिए अपने गांव आए हैं. उन्होंने कहा कि गांव में आकर हमने अपनी ऐतिहासिक परंपरा के बारे में जाना और अब हमारा प्रयास रहेगा कि इस परंपरा को हम अपनी अगली पीढ़ी को भी बताए.

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पाटिया गांव में हुआ पाषाण युद्ध: कोट्यूली गांव के जयदीप बिष्ट ने बताया कि काश्तकारों ने अपनी फसलों और जानवरों की रक्षा के लिए एक अत्याचारी बग्वाली नामक राजा को पत्थरों से मार-मार कर भगाया था. सदियों पूर्व हुए इस युद्ध में राजा के पांच लोग भी मारे गये थे, तभी से इस स्थान का नाम पचघटिया पड़ गया, जहां आज भी पाटिया और उसके आसपास के लोग काश्तकारों में जोश भरने के लिए चार समूह बनाकर पाषाण युद्ध को लड़ते हैं.

अल्मोड़ा के पटिया में हुआ पाषाण युद्ध (video-ETV Bharat)

नदी में पानी पीकर युद्ध का होता है समापन: उन्होंने कहा कि पाषाण युद्ध चार खाम के बीच खेला जाता है. चार खाम (समूह) में पाण्डे खाम, पिलख्वाल खाम, हरड़िया खाम और कोट्यूली खाम शामिल है. एक तरफ पाण्डे, पिलख्वाल और हरडिया खाम के लोग होते हैं और दूसरी ओर कोट्यूली खाम के लोग शामिल होते हैं. दोनों ओर से एक दूसरे पर पत्थर मार जाते हैं. उन्होंने बताया कि पाषाण युद्ध में रण बांकुरे अधिकतर युवा होते हैं. लगभग आधे घंटे तक चलने वाले इस पाषाण युद्ध का समापन बुजुर्गों के आदेश पर नदी में पानी पीकर और एक दूसरे पर पानी छिड़क कर किया जाता है.

Stone war play on govardhan puja
अल्मोड़ा के पटिया में हुआ पाषाण युद्ध (photo-ETV Bharat)

मिट्टी, घी का लेप लगाने से भरते हैं घाव: युवा रोहन बिष्ट ने बताया कि इस युद्ध में अनेक लोग चोटिल भी होते हैं. अगर चोट लग जाए तो मिट्टी, घी और चीनी का लेप लगाने से घाव 3 दिनों के अंदर भर जाता है. इस पत्थर मार युद्ध के लिए गांव से दूर रहने वाले ग्रामीण भी गांवों में आकर इस परंपरा का निर्वहन करते हैं.

पाषाण युद्ध को देखने के लिए अन्य शहरों से आते हैं लोग: गुणगांव से इस परंपरा का निर्वहन करने आए अमित पांडे और गोवा से आए विशाल पांडे ने बताया कि वह आज इस पाषाण युद्ध को देखने और खेलने के लिए अपने गांव आए हैं. उन्होंने कहा कि गांव में आकर हमने अपनी ऐतिहासिक परंपरा के बारे में जाना और अब हमारा प्रयास रहेगा कि इस परंपरा को हम अपनी अगली पीढ़ी को भी बताए.

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