श्रीनगर गढ़वाल: कांडा में आयोजित दो दिवसीय मंजूघोष मेले का का आज समापन हो गया. मेले में दिन भर ग्रामीण ढोल दमाऊं के साथ निशाण लेकर मंदिर में पहुंचते रहे. मेले का अंतिम दिन होने के कारण यहां श्रद्धालुओं व मेलार्थियों का तांता लगा रहा. जिससे पुलिस को व्यवस्था बनाने में खासी मशक्कत करनी पड़ी. कांडा मंजूघोष मेले में 41 निशाण (देव प्रतीक) चढे़. मेले के अंतिम दिन बड़ा कांडा के दौरान 15 निशाण चढे़. पहले दिन छोटा कांडा के दौरान 26 निशाण चढे़. इसी के साथ अब एक माह के लिए मंजूघोषेश्वर मंदिर के कपाट बंद कर दिए गए हैं.
मंदिर के पुजारी द्वारिका प्रसाद भट्ट ने बताया मां भगवती एक माह तक महादेव के साथ मंदिर में एकांतवास में रहेंगी. इस दौरान मंदिर में कोई पूजा अर्चना भी नहीं की जाएगी. एक माह बाद मां भगवती की डोली फिर वापस कांडा गांव स्थित मंदिर में जाएगी.
पौड़ी विधायक ने लिया आशीर्वाद: पौड़ी विधायक राजकुमार पोरी ने सिद्धपीठ मंजूघोषश्वर महादेव मंदिर पहुंचकर मां भगवती का आशीर्वाद लिया. इस दौरान उन्होंने अपने परिवार और क्षेत्र के सुख समृद्धि की कामना भी की. उन्होंने कहा कांडा में मेले के दौरान लोगों को पीने के पानी की सुविधा नहीं मिल पाती है. साथ ही पार्किंग न होने के कारण लोगों को वाहन लगाने की जगह नहीं मिल पाती है. उन्होंने कहा अगले कांडा मेला होने तक वह कांडा गांव में पानी का टैंक, पार्किंग और मंदिर को जाने वाले सड़क का सुधारीकरण करने का प्रयास करेंगे.
पहले पशु बलि के लिए जाना जाता था कांडा मेला: करीब डेढ़ दशक पूर्व मंजूघोष मेले के दौरान पशु बलि चढ़ाई जाती थी, लेकिन अब यहां पशु बलि पूर्ण रूप से बंद हो गई है. अब श्रद्धालु केवल निशाण (देव प्रतीक) ही चढ़ाते हैं. मंदिर समिति के अध्यक्ष द्वारिका प्रसाद भट्ट ने बताया कांडा मेला पूर्व में पशु बलि के लिए विख्यात रहा है. पशु बलि विरोधी सामाजिक संगठनों सहित प्रशासन और मंदिर समिति और पुजारियों के प्रयासों से वर्ष 2003 से यहां पशु बलि नहीं हो रही है. पशु बलि प्रथा बंद होने के बाद अब श्रद्धालु यहां निशान चढ़ाकर मनौती मांगते हैं.
यह है मान्यता: मंजूघोष महादेव मंदिर कामदाह डांडा पर स्थित है. शिव पुराण के अनुसार इस पर्वत पर भगवान शंकर ने घोर तपस्या की थी. कामदेव ने उनकी तपस्या को भंग करने के लिए फूलों के बांण चलाकर उनके अंदर कामशक्ति को जागृत किया था. भगवान शंकर ने क्रोधित होकर कामदेव को भष्म कर दिया. तबसे इस पर्वत को कामदाह पर्वत कहा जाता है. बाद में ये कांडा हो गया. एक और अन्य कथा प्रचलित है कि मंजू नाम की एक अप्सरा ने शक्ति प्राप्त करने के लिए भगवान शिव की तपस्या की थी. मंजू पर श्रीनगर का राजा कोलासुर मोहित हो गया. जब वह अपने मकसद में सफल नहीं हुआ, तो उसने भैंसे का रूप धरकर ग्रामीणों पर हमला कर दिया. मंजूदेवी को यह सहन नहीं हुआ. उन्होंने महाकाली का रूप धारण कर कोलासुर का वध कर दिया. तब से कांडा मेला मनाया जाता है.
पढे़ं- मंजूघोषेश्वर महादेव मंदिर की महिमा है खास, अप्सरा पर मोहित हो गया था राक्षस, मां काली ने किया अंत