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शिक्षा का अलख जगा रहे जितेंद्र, भ्रष्टाचार के कारण पंचायत विभाग की छोड़ी थी नौकरी, शिक्षक बन समाज को कर रहे शिक्षित - सोनीपत के शिक्षक जितेन्द्र कुमार

sonipat teacher: शिक्षक, जो भगवान का दूसरा रूप माना गया है. जो ज्ञान का उजियारा फैलाकर अज्ञान का अंधकार दूर कर छात्रों को नई दिशा दिखाता है. शिक्षक छात्रों को शिक्षित करने के साथ-साथ समाज को जागरूक करता है. ऐसे ही एक शिक्षक हैं सोनीपत के मुंडलाना गांव के डॉक्टर जितेंद्र कुमार.

sonipat teacher
शिक्षा का अलख जगा रहे जितेंद्र
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By ETV Bharat Haryana Team

Published : Jan 27, 2024, 2:22 PM IST

सोनीपत: सोनीपत के मुंडलाना गांव के डॉक्टर जितेंन्द्र कुमार पंचायत विभाग में सचिव के पद पर कार्यरत थे. लेकिन विभाग में बढ़ते भ्रष्टाचार को देखते हुए उन्होंने नौकरी छोड़ दी और 2012 में शिक्षा विभाग में प्राध्यापक की नौकरी कर ली, ताकि शिक्षा के माध्यम से समाज के हित में कुछ कर सके.

कैसे हुई शुरुआत: जितेंद्र कुमार ने बताया कि 2012 में उन्होंने समालखा के मछरौली स्थित स्कूल में ज्वाइन किया और वहां के स्कूल के हालात बदल दिए. उन्होंने जरूरतमंद बच्चों की फीस से लेकर उनकी कोचिंग का खर्चा अपनी सैलरी से दिया. जितेन्द्र कुमार स्कूल की छुट्टी होने के बाद भी करीब छह बजे तक बच्चों को पढ़ाते हैं. वह अपनी सैलरी बच्चों की वर्दी, पढ़ाई-लिखाई, कोचिंग फीस और पेड़ पौधे लगाने में खर्च करते हैं. उन्हें अपने स्तर पर कुछ अलग करने का ऐसा जुनून था की उन्होंने शादी करने की नहीं सोची ओर लगातार आगे बढ़ते चले गए. स्कूलों में दाखिले के समय में वे गांव-गांव जाकर लोगों को अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाने के लिए जागरूक करते हैं.

पर्यावरण को बढ़ावा: जितेन्द्र पढ़ाई के साथ-साथ पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए भी लगे हुए हैं. जितेन्द्र खुद पौधे लगाते हैं. वे अब तक करीब 20 हजार पौधे लगा चुके हैं और खुद उनकी देख रेख करते हैं. जिस भी स्कूल में वे रहे हैं उस स्कूल को हरा भरा कर दिया. वहां स्कूल की काया ही पलट दी. सिर्फ स्कूलों में ही नहीं, जहां भी पेड़-पौधे लगाने लायक जमीन दिखती है, वहां वे पौधे लगाते हैं. इसलिए उन्हें कई बार सम्मानित भी किया जा चुका है.

सोनीपत: सोनीपत के मुंडलाना गांव के डॉक्टर जितेंन्द्र कुमार पंचायत विभाग में सचिव के पद पर कार्यरत थे. लेकिन विभाग में बढ़ते भ्रष्टाचार को देखते हुए उन्होंने नौकरी छोड़ दी और 2012 में शिक्षा विभाग में प्राध्यापक की नौकरी कर ली, ताकि शिक्षा के माध्यम से समाज के हित में कुछ कर सके.

कैसे हुई शुरुआत: जितेंद्र कुमार ने बताया कि 2012 में उन्होंने समालखा के मछरौली स्थित स्कूल में ज्वाइन किया और वहां के स्कूल के हालात बदल दिए. उन्होंने जरूरतमंद बच्चों की फीस से लेकर उनकी कोचिंग का खर्चा अपनी सैलरी से दिया. जितेन्द्र कुमार स्कूल की छुट्टी होने के बाद भी करीब छह बजे तक बच्चों को पढ़ाते हैं. वह अपनी सैलरी बच्चों की वर्दी, पढ़ाई-लिखाई, कोचिंग फीस और पेड़ पौधे लगाने में खर्च करते हैं. उन्हें अपने स्तर पर कुछ अलग करने का ऐसा जुनून था की उन्होंने शादी करने की नहीं सोची ओर लगातार आगे बढ़ते चले गए. स्कूलों में दाखिले के समय में वे गांव-गांव जाकर लोगों को अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाने के लिए जागरूक करते हैं.

पर्यावरण को बढ़ावा: जितेन्द्र पढ़ाई के साथ-साथ पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए भी लगे हुए हैं. जितेन्द्र खुद पौधे लगाते हैं. वे अब तक करीब 20 हजार पौधे लगा चुके हैं और खुद उनकी देख रेख करते हैं. जिस भी स्कूल में वे रहे हैं उस स्कूल को हरा भरा कर दिया. वहां स्कूल की काया ही पलट दी. सिर्फ स्कूलों में ही नहीं, जहां भी पेड़-पौधे लगाने लायक जमीन दिखती है, वहां वे पौधे लगाते हैं. इसलिए उन्हें कई बार सम्मानित भी किया जा चुका है.

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