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डेढ़ साल में तीन बार JNU छात्र संघ अध्यक्ष बने थे सीताराम येचुरी, JNU स्टूडेंट्स ने दिया आखिरी सलाम, जानें रोचक कहानी - Sitaram Yechury passed away

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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Sep 13, 2024, 6:25 PM IST

CPM नेता सीताराम येचुरी का गुरुवार को दिल्ली एम्स में इलाज के दौरान निधन हो गया. ऐसे में जेएनयू छात्र संघ में येचुरी के सीनियर रहे सुहेल हाश्मी और जूनियर रहे डी रघुनंदन ने सीताराम येचुरी के डेढ़ साल में तीन बार जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष बनने की कहानी बताई.

सीताराम येचुरी का पार्थिव शरीर
JNU में शुक्रवार को लाया गया सीताराम येचुरी का पार्थिव शरीर. (Etv Bharat)

नई दिल्ली: सीपीआई (एम) के महासचिव सीताराम येचुरी का 72 वर्ष की आयु में दिल्ली एम्स में निधन हो गया. सीताराम येचुरी के राजनीतिक करियर की शुरुआत छात्र राजनीति से हुई थी. उनकी जेएनयू से शुरू की गई छात्र राजनीति के दिनों को लेकर 1974 एसएफआई के सेक्रेटरी और काउंसलर रहे सुहेल हाश्मी ने बताया कि सीताराम येचुरी 1973 में एमए अर्थशास्त्र के छात्र के रूप में जेएनयू में दाखिल हुए. तब मैं 1972 से जेएनयू का छात्र था और एसएफआई का कार्यकर्ता भी था.

1974 में जब सीताराम येचुरी एसएफआई के सदस्य बने उस समय मैं एसएफआई की जेएनयू इकाई का सेक्रेटरी था. साथ ही स्कूल ऑफ सोशल साइंस का काउंसलर भी था. सोहेल ने बताया कि सीताराम बहुत ही मिलनसार सरल और सहज स्वभाव के व्यक्ति थे. जेएनयू ने सीताराम येचुरी के रूप में एक ऐसा नेता पैदा किया जिसने भारतीय राजनीति में अपनी एक अलग ही जगह बनाई. उन्होंने बताया कि सीताराम की सक्रियता और छात्रों के हक की लड़ाई को पुरजोर तरीके से लड़ने के कारण ही जेएनयू में एसएफआई लगातार मजबूत होती चली गई. येचुरी ने आपातकाल के खिलाफ भी जेएनयू में छात्र आंदोलन का बढ़-चढ़कर नेतृत्व किया. इमरजेंसी खत्म होने के बाद इमरजेंसी के दौरान छात्रों के खिलाफ काम करने वाले जेएनयू के तत्कालीन वाइस चांसलर, रजिस्ट्रार और दो अन्य पदाधिकारियों के खिलाफ मुखर आंदोलन चलाया.

डेढ़ साल में तीन बार चुने गए जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष: येचुरी के जेएनयू में ही जूनियर रहे डी रघुनंदन ने उनको याद करते हुए बताया कि सीताराम येचुरी जेएनयू छात्रसंघ के ऐसे एकमात्र अध्यक्ष रहे जिनको डेढ़ साल के अंदर तीन बार अध्यक्ष के रूप में चुना गया. उस समय घटित हुए दोनों घटनाक्रम अपने आप में अजीबोगरीब थे. लेकिन उन घटनाक्रम से उस समय के छात्र संघ की शक्ति और छात्र-छात्राओं की राजनीतिक समझ का भी पता चलता था. रघुनंदन ने बताया कि फरवरी 1977 में आपातकाल हटने के बाद जेएनयू में फिर से छात्र संघ चुनाव कराने की मांग तेज हो चली थी. वैसे जेएनयू में आमतौर पर चुनाव अक्टूबर के महीने में होता था. लेकिन, 1974 में छात्र संघ का चुनाव होने के बाद इमरजेंसी लग गई और तत्कालीन जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष देवी प्रसाद त्रिपाठी को भी आपातकाल में गिरफ्तार का जेल भेजा गया.

सीताराम येचुरी ने जेएनयू की चांसलर इंदिरा गांधी के जेएनयू में एक कार्यक्रम में आने का तीखा विरोध किया. उनके नेतृत्व में छात्रों ने ऐलान किया कि इंदिरा गांधी को जेएनयू में नहीं घुसने देंगे. छात्रों के विरोध के चलते कार्यक्रम को रद्द करना पड़ा. इंदिरा गांधी जेएनयू नहीं आईं.
सीताराम येचुरी ने जेएनयू की चांसलर इंदिरा गांधी के जेएनयू में एक कार्यक्रम में आने का तीखा विरोध किया. उनके नेतृत्व में छात्रों ने ऐलान किया कि इंदिरा गांधी को जेएनयू में नहीं घुसने देंगे. छात्रों के विरोध के चलते कार्यक्रम को रद्द करना पड़ा. इंदिरा गांधी जेएनयू नहीं आईं. (ETV BHARAT)

1975-76 में इमरजेंसी लगी रहने के कारण नहीं हुए चुनाव: इमरजेंसी लगी रहने के कारण 75 और 76 में छात्र संघ चुनाव नहीं हुए. इसलिए तब तक देवी प्रसाद त्रिपाठी ही छात्र संघ के अध्यक्ष रहे. लेकिन, जब 1977 को फरवरी के महीने में इमरजेंसी खत्म हो गई तो छात्रों ने पुरजोर तरीके से छात्र संघ चुनाव कराने की मांग उठानी शुरू कर दी. एसएफआई के विरोधी छात्र संगठनों का कहना था कि इमरजेंसी खत्म हो गई है तो छात्र संघ का चुनाव लंबित है. अब चुनाव होना चाहिए. लेकिन, एसएफआई का मानना था कि देवी प्रसाद त्रिपाठी छात्र संघ के अध्यक्ष हैं. वह अभी जेल में हैं, जब तक वह जेल से छूटकर नहीं आते हैं तब तक उनको अध्यक्ष मानना चाहिए और तब तक चुनाव नहीं कराया जाना चाहिए. वैसे भी जेएनयू में चुनाव का समय अक्टूबर का होता है तो चुनाव अक्टूबर में कराया जाना ही ठीक रहेगा. लेकिन, उस समय के विरोधी छात्र संगठन इस बात को नहीं माना और उन्होंने जीबीएम की मांग उठानी शुरू कर दी.

उस समय छात्र दो धड़ों में बंट गए. एक धड़े का कहना था कि इलेक्शन होना चाहिए तो दूसरे धड़े का कहना था इलेक्शन नहीं होना चाहिए. लेकिन, अंत में जीबीएम बुलाने का निर्णय लिया गया. पूरे जेएनयू की जीबीएम बुलाई गई. जीबीएम में छात्र संघ के विरोधी धड़े के द्वारा मौजूदा छात्र संघ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया और उस अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग हुई. जिसमें एसएफआई और देवी प्रसाद त्रिपाठी के नेतृत्व में चुने हुए छात्र संघ की हार हुई. जीबीएम में हार के बाद चुनाव होना तय हो गया. फिर से फरवरी के महीने में जेएनयू छात्र संघ का चुनाव हुआ, जिसमें एसएफआई की ओर से सीताराम येचुरी अध्यक्ष पद के प्रत्याशी थे. सीताराम ने अध्यक्ष पद पर जीत दर्ज की.

सीताराम येचुरी जेएनयू छात्रसंघ के ऐसे एकमात्र अध्यक्ष रहे जिनको डेढ़ साल के अंदर तीन बार अध्यक्ष के रूप में चुना गया.
सीताराम येचुरी जेएनयू छात्रसंघ के ऐसे एकमात्र अध्यक्ष रहे जिनको डेढ़ साल के अंदर तीन बार अध्यक्ष के रूप में चुना गया. (ETV BHARAT)

छात्र संघ अध्यक्ष रहते हुए अविश्वास प्रस्ताव पास हुआ तो दिया इस्तीफा: फिर चुनाव के 3 महीने बीतने के बाद छात्रों के बीच में इमरजेंसी के दौरान जेएनयू के कुलपति, कुलसचिव और दो अन्य पदाधिकारियों के खिलाफ गुस्सा बढ़ने लगा. छात्र संघ का कहना था कि इन चार पद पर बैठे हुए लोगों ने इमरजेंसी के दौरान हमारा जमकर शोषण किया. हमारे खिलाफ कार्रवाई की. ऐसे में इमरजेंसी खत्म होने के बाद इन लोगों को इन पदों पर नहीं रहना चाहिए. लेकिन, छात्रों का एक दूसरा विरोधी धड़ा यह कहता था कि यह सिर्फ चार ही लोग क्यों आपने चुने हैं. इन चार से ज्यादा लोग ऐसे थे जिन्होंने छात्रों के खिलाफ कार्रवाई की ऐसे में अन्य लोगों को हटाने की मांग आपको करनी चाहिए.

इन चीजों को लेकर के छात्रों के मतभेद जेएनयूएसयू के साथ बढ़ने लगे. ऐसे में एक बार फिर जीबीएम में छात्र संघ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया. फिर से वोटिंग के द्वारा छात्र संघ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पास हो गया. ऐसे में सीताराम येचुरी को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा. 3 महीने के बाद ही फिर से करीब जून के महीने में छात्र संघ चुनाव फिर से हुआ और सीताराम येचुरी फिर से दूसरी बार जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए. फिर वह अक्टूबर 1977 तक जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष रहे. इसके बाद उनके उस कार्यकाल को पूर्ण माना गया.

तीसरी बार पूरे एक साल के लिए चुने गए छात्र संघ अध्यक्ष: फिर अक्टूबर के महीने में हर साल की तरह जैसे छात्र संघ का आम चुनाव होता था उस तरीके से चुनाव कराया गया और उसमें फिर से सीताराम येचुरी को ही एसएफआई की ओर से अध्यक्ष पद का प्रत्याशी बनाया गया. उन्होंने फिर लगातार तीसरी बार जीत दर्ज की. फिर अक्टूबर 1977 से लेकर अक्टूबर 1978 तक सीताराम येचुरी जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे. डी रघुनंदन ने बताया कि सीताराम येचुरी ने जेएनयू की चांसलर इंदिरा गांधी के जेएनयू में एक कार्यक्रम में आने का तीखा विरोध किया. उनके नेतृत्व में छात्रों ने ऐलान किया कि इंदिरा गांधी को जेएनयू में नहीं घुसने देंगे. छात्रों के विरोध के चलते कार्यक्रम को रद्द करना पड़ा. इंदिरा गांधी जेएनयू नहीं आईं.

सीताराम येचुरी के बाद एसएफआई को मिली चुनाव में हार: डी रघुनंदन ने बताया कि फिर 1978 में जब छात्र संघ का चुनाव हुआ उस चुनाव में एसएफआई की ओर से सीताराम येचुरी की जगह दूसरे व्यक्ति को अध्यक्ष पद का प्रत्याशी बनाया गया जिसकी हार हुई. उस समय एबीवीपी और एनएसयूआई के गिने चुने सदस्य होते थे. इनका कोई वजूद नहीं होता था.

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नई दिल्ली: सीपीआई (एम) के महासचिव सीताराम येचुरी का 72 वर्ष की आयु में दिल्ली एम्स में निधन हो गया. सीताराम येचुरी के राजनीतिक करियर की शुरुआत छात्र राजनीति से हुई थी. उनकी जेएनयू से शुरू की गई छात्र राजनीति के दिनों को लेकर 1974 एसएफआई के सेक्रेटरी और काउंसलर रहे सुहेल हाश्मी ने बताया कि सीताराम येचुरी 1973 में एमए अर्थशास्त्र के छात्र के रूप में जेएनयू में दाखिल हुए. तब मैं 1972 से जेएनयू का छात्र था और एसएफआई का कार्यकर्ता भी था.

1974 में जब सीताराम येचुरी एसएफआई के सदस्य बने उस समय मैं एसएफआई की जेएनयू इकाई का सेक्रेटरी था. साथ ही स्कूल ऑफ सोशल साइंस का काउंसलर भी था. सोहेल ने बताया कि सीताराम बहुत ही मिलनसार सरल और सहज स्वभाव के व्यक्ति थे. जेएनयू ने सीताराम येचुरी के रूप में एक ऐसा नेता पैदा किया जिसने भारतीय राजनीति में अपनी एक अलग ही जगह बनाई. उन्होंने बताया कि सीताराम की सक्रियता और छात्रों के हक की लड़ाई को पुरजोर तरीके से लड़ने के कारण ही जेएनयू में एसएफआई लगातार मजबूत होती चली गई. येचुरी ने आपातकाल के खिलाफ भी जेएनयू में छात्र आंदोलन का बढ़-चढ़कर नेतृत्व किया. इमरजेंसी खत्म होने के बाद इमरजेंसी के दौरान छात्रों के खिलाफ काम करने वाले जेएनयू के तत्कालीन वाइस चांसलर, रजिस्ट्रार और दो अन्य पदाधिकारियों के खिलाफ मुखर आंदोलन चलाया.

डेढ़ साल में तीन बार चुने गए जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष: येचुरी के जेएनयू में ही जूनियर रहे डी रघुनंदन ने उनको याद करते हुए बताया कि सीताराम येचुरी जेएनयू छात्रसंघ के ऐसे एकमात्र अध्यक्ष रहे जिनको डेढ़ साल के अंदर तीन बार अध्यक्ष के रूप में चुना गया. उस समय घटित हुए दोनों घटनाक्रम अपने आप में अजीबोगरीब थे. लेकिन उन घटनाक्रम से उस समय के छात्र संघ की शक्ति और छात्र-छात्राओं की राजनीतिक समझ का भी पता चलता था. रघुनंदन ने बताया कि फरवरी 1977 में आपातकाल हटने के बाद जेएनयू में फिर से छात्र संघ चुनाव कराने की मांग तेज हो चली थी. वैसे जेएनयू में आमतौर पर चुनाव अक्टूबर के महीने में होता था. लेकिन, 1974 में छात्र संघ का चुनाव होने के बाद इमरजेंसी लग गई और तत्कालीन जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष देवी प्रसाद त्रिपाठी को भी आपातकाल में गिरफ्तार का जेल भेजा गया.

सीताराम येचुरी ने जेएनयू की चांसलर इंदिरा गांधी के जेएनयू में एक कार्यक्रम में आने का तीखा विरोध किया. उनके नेतृत्व में छात्रों ने ऐलान किया कि इंदिरा गांधी को जेएनयू में नहीं घुसने देंगे. छात्रों के विरोध के चलते कार्यक्रम को रद्द करना पड़ा. इंदिरा गांधी जेएनयू नहीं आईं.
सीताराम येचुरी ने जेएनयू की चांसलर इंदिरा गांधी के जेएनयू में एक कार्यक्रम में आने का तीखा विरोध किया. उनके नेतृत्व में छात्रों ने ऐलान किया कि इंदिरा गांधी को जेएनयू में नहीं घुसने देंगे. छात्रों के विरोध के चलते कार्यक्रम को रद्द करना पड़ा. इंदिरा गांधी जेएनयू नहीं आईं. (ETV BHARAT)

1975-76 में इमरजेंसी लगी रहने के कारण नहीं हुए चुनाव: इमरजेंसी लगी रहने के कारण 75 और 76 में छात्र संघ चुनाव नहीं हुए. इसलिए तब तक देवी प्रसाद त्रिपाठी ही छात्र संघ के अध्यक्ष रहे. लेकिन, जब 1977 को फरवरी के महीने में इमरजेंसी खत्म हो गई तो छात्रों ने पुरजोर तरीके से छात्र संघ चुनाव कराने की मांग उठानी शुरू कर दी. एसएफआई के विरोधी छात्र संगठनों का कहना था कि इमरजेंसी खत्म हो गई है तो छात्र संघ का चुनाव लंबित है. अब चुनाव होना चाहिए. लेकिन, एसएफआई का मानना था कि देवी प्रसाद त्रिपाठी छात्र संघ के अध्यक्ष हैं. वह अभी जेल में हैं, जब तक वह जेल से छूटकर नहीं आते हैं तब तक उनको अध्यक्ष मानना चाहिए और तब तक चुनाव नहीं कराया जाना चाहिए. वैसे भी जेएनयू में चुनाव का समय अक्टूबर का होता है तो चुनाव अक्टूबर में कराया जाना ही ठीक रहेगा. लेकिन, उस समय के विरोधी छात्र संगठन इस बात को नहीं माना और उन्होंने जीबीएम की मांग उठानी शुरू कर दी.

उस समय छात्र दो धड़ों में बंट गए. एक धड़े का कहना था कि इलेक्शन होना चाहिए तो दूसरे धड़े का कहना था इलेक्शन नहीं होना चाहिए. लेकिन, अंत में जीबीएम बुलाने का निर्णय लिया गया. पूरे जेएनयू की जीबीएम बुलाई गई. जीबीएम में छात्र संघ के विरोधी धड़े के द्वारा मौजूदा छात्र संघ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया और उस अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग हुई. जिसमें एसएफआई और देवी प्रसाद त्रिपाठी के नेतृत्व में चुने हुए छात्र संघ की हार हुई. जीबीएम में हार के बाद चुनाव होना तय हो गया. फिर से फरवरी के महीने में जेएनयू छात्र संघ का चुनाव हुआ, जिसमें एसएफआई की ओर से सीताराम येचुरी अध्यक्ष पद के प्रत्याशी थे. सीताराम ने अध्यक्ष पद पर जीत दर्ज की.

सीताराम येचुरी जेएनयू छात्रसंघ के ऐसे एकमात्र अध्यक्ष रहे जिनको डेढ़ साल के अंदर तीन बार अध्यक्ष के रूप में चुना गया.
सीताराम येचुरी जेएनयू छात्रसंघ के ऐसे एकमात्र अध्यक्ष रहे जिनको डेढ़ साल के अंदर तीन बार अध्यक्ष के रूप में चुना गया. (ETV BHARAT)

छात्र संघ अध्यक्ष रहते हुए अविश्वास प्रस्ताव पास हुआ तो दिया इस्तीफा: फिर चुनाव के 3 महीने बीतने के बाद छात्रों के बीच में इमरजेंसी के दौरान जेएनयू के कुलपति, कुलसचिव और दो अन्य पदाधिकारियों के खिलाफ गुस्सा बढ़ने लगा. छात्र संघ का कहना था कि इन चार पद पर बैठे हुए लोगों ने इमरजेंसी के दौरान हमारा जमकर शोषण किया. हमारे खिलाफ कार्रवाई की. ऐसे में इमरजेंसी खत्म होने के बाद इन लोगों को इन पदों पर नहीं रहना चाहिए. लेकिन, छात्रों का एक दूसरा विरोधी धड़ा यह कहता था कि यह सिर्फ चार ही लोग क्यों आपने चुने हैं. इन चार से ज्यादा लोग ऐसे थे जिन्होंने छात्रों के खिलाफ कार्रवाई की ऐसे में अन्य लोगों को हटाने की मांग आपको करनी चाहिए.

इन चीजों को लेकर के छात्रों के मतभेद जेएनयूएसयू के साथ बढ़ने लगे. ऐसे में एक बार फिर जीबीएम में छात्र संघ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया. फिर से वोटिंग के द्वारा छात्र संघ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पास हो गया. ऐसे में सीताराम येचुरी को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा. 3 महीने के बाद ही फिर से करीब जून के महीने में छात्र संघ चुनाव फिर से हुआ और सीताराम येचुरी फिर से दूसरी बार जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए. फिर वह अक्टूबर 1977 तक जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष रहे. इसके बाद उनके उस कार्यकाल को पूर्ण माना गया.

तीसरी बार पूरे एक साल के लिए चुने गए छात्र संघ अध्यक्ष: फिर अक्टूबर के महीने में हर साल की तरह जैसे छात्र संघ का आम चुनाव होता था उस तरीके से चुनाव कराया गया और उसमें फिर से सीताराम येचुरी को ही एसएफआई की ओर से अध्यक्ष पद का प्रत्याशी बनाया गया. उन्होंने फिर लगातार तीसरी बार जीत दर्ज की. फिर अक्टूबर 1977 से लेकर अक्टूबर 1978 तक सीताराम येचुरी जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे. डी रघुनंदन ने बताया कि सीताराम येचुरी ने जेएनयू की चांसलर इंदिरा गांधी के जेएनयू में एक कार्यक्रम में आने का तीखा विरोध किया. उनके नेतृत्व में छात्रों ने ऐलान किया कि इंदिरा गांधी को जेएनयू में नहीं घुसने देंगे. छात्रों के विरोध के चलते कार्यक्रम को रद्द करना पड़ा. इंदिरा गांधी जेएनयू नहीं आईं.

सीताराम येचुरी के बाद एसएफआई को मिली चुनाव में हार: डी रघुनंदन ने बताया कि फिर 1978 में जब छात्र संघ का चुनाव हुआ उस चुनाव में एसएफआई की ओर से सीताराम येचुरी की जगह दूसरे व्यक्ति को अध्यक्ष पद का प्रत्याशी बनाया गया जिसकी हार हुई. उस समय एबीवीपी और एनएसयूआई के गिने चुने सदस्य होते थे. इनका कोई वजूद नहीं होता था.

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